शासन व्यवस्था में ईमानदारी का महत्व

प्रश्न: शासन व्यवस्था में ईमानदारी (शुचिता) के महत्व की व्याख्या कीजिए। भारत में शासन व्यवस्था में ईमानदारी को सुनिश्चित करने के लिए क्या उपाय किए गए हैं?

दृष्टिकोण

  • ईमानदारी (शुचिता) शब्द की संक्षिप्त रुप से व्याख्या कीजिए। 
  • शासन व्यवस्था में ईमानदारी के महत्व पर चर्चा कीजिए।
  • शासन व्यवस्था में ईमानदारी सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

ईमानदारी (शुचिता); सुदृढ़ नैतिक सिद्धांत धारण करने तथा कठोरता से उनका पालन करने का गुण है। इसमें सत्यता, सत्यनिष्ठा, शुचिता, पारदर्शिता और सच्चरित्रता (incorruptibility) जैसे सिद्धांत सम्मिलित हैं। ईमानदारी का अर्थ है सुनिश्चित सत्यनिष्ठा। इसे सामान्यतया सच्चरित्र होने के रूप में भी माना जाता है।

शासन में ईमानदारी सरकार के विभिन्न अंगों के औचित्य और प्रकृति से संबंधित होती है अर्थात् यह इस तथ्य से सम्बंधित है कि क्या ये इनको प्रबंधित करने वाले व्यक्तियों से निरपेक्ष होकर प्रक्रियात्मक शुचिता को बनाये रखते हैं? इसके अंतर्गत नैतिक और पारदर्शी दृष्टिकोण को अपनाना शामिल है ताकि प्रक्रिया को संवीक्षा के दायरे में रखा जा सके। शासन में ईमानदारी का उद्देश्य प्रक्रियात्मक सत्यनिष्ठा को सुनिश्चित करना है। इसका संबंध प्रक्रमों, प्रक्रियाओं और प्रणालियों से है।

राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग (NCRWC) के अनुसार भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति शासन में ईमानदारी सुनिश्चित करने हेतु एक पूर्व-आवश्यक शर्त है। अन्य आवश्यकताओं के अंतर्गत सार्वजनिक जीवन के प्रत्येक पहलू को नियंत्रित करने हेतु प्रभावी कानून, नियम और विनियम तथा इन कानूनों का निष्पक्ष कार्यान्वयन शामिल है। इसके अतिरिक्त शासन में ईमानदारी यह सुनिश्चित करती है कि शासन प्रणाली पारदर्शी, जवाबदेह, उत्तरदायी और संवीक्षा हेतु खुली है।

शासन में ईमानदारी (शुचिता) का महत्व: 

  • यह राज्य की वैधता और इसके संस्थानों में विश्वास बनाए रखने में सहायता करती है। यह एक विश्वास उत्पन्न करती है कि राज्य की कार्यवाहियाँ लाभार्थियों के कल्याण के लिए हैं।
  • यह विवेकपूर्ण और नैतिक परिणामों को प्रोत्साहित करती है तथा साथ ही समय के साथ विश्वास का निर्माण करती है।
  • यह उप-इष्टतम (निम्नस्तरीय) परिणामों, भ्रष्टाचार और ख़राब धारणाओं का परिहार करती है।
  • यह प्रक्रिया की निष्पक्षता पर एक तार्किक और स्वतंत्र दृष्टिकोण प्रदान करती है।
  • यह सरकार के विभिन्न अंगों द्वारा दुर्व्यवहार और शक्ति के दुरुपयोग पर नियंत्रण रखने में सहायक है।
  • यह दक्ष और प्रभावी प्रशासन प्रणाली और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

शासन में ईमानदारी सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार द्वारा किए गए उपाय निम्नलिखित हैं:

  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988: यह अधिनियम, एक सिविल सेवक और भ्रष्टाचार/रिश्वत के अंतर्गत आने वाले अपराधों को परिभाषित करता है।-
  • इस अधिनियम में 2018 में किए गए संशोधन के माध्यम से सिविल सेवक को उपहार/रिश्वत देने के कार्य को दंडनीय अपराध के रूप में शामिल किया गया है। 
  • इसके साथ ही इसमें संशोधन के द्वारा आपराधिक दुर्व्यवहार को और अधिक स्पष्ट कर दिया गया है। साथ ही ईमानदार नौकरशाहों की सुरक्षा हेतु उनके विरुद्ध जांच शुरू करने से पूर्व सक्षम प्राधिकारी से पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने का प्रावधान जोड़ा गया है। 
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005: यह नागरिक सक्रियता के माध्यम से शासन में ईमानदारी को प्रोत्साहित करने में सहायता करता है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने RTI को सुशासन की प्रमुख कुंजी माना है।
  • व्हिसल-ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट, 2014: यह अधिनियम सिविल सेवकों के भ्रष्टाचार से संबंधित कार्यों, शक्तियों/विवेकाधिकारों के दुरुपयोग या आपराधिक कृत्यों के मामलों में सार्वजनिक हित में हुए प्रकटीकरण से जुड़े साक्ष्यों को प्राप्त करने एवं जांच करने हेतु एक तंत्र प्रदान करता है।
  • बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम,1988 और 2016 में इसमें किया गया संशोधन: अब बेनामी लेनदेन को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर दिया गया है। इसके साथ ही क्षतिपूर्ति के भुगतान के बिना ऐसी संपत्तियों को जब्त करने को कानून के रूप में वैधता प्रदान की गयी है।
  • केन्द्रीय सतर्कता आयोग: यह प्रशासन में सत्यनिष्ठा को बनाए रखने के संबंध में सरकार को परामर्श देता है।
  • लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013: इसमें लोकपाल नामक एक ऐसी संस्था की परिकल्पना की गई है जो निर्दिष्ट लोक पदाधिकारियों के विरुद्ध और उनसे संबंधित मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करती है।

सार्वजनिक पदों के दुरुपयोग पर नियंत्रण रखने, सिविल सेवकों द्वारा अवैध रूप से अधिगृहीत संपत्ति को जब्त करने और सरकार के लिए एक नीतिपरक आचार संहिता हेतु एक कानून होना चाहिए। इसके साथ ही ईमानदारी सुनिश्चित करने हेतु एक सुदृढ़ आपराधिक न्यायिक प्रणाली भी आवश्यक है। समाज के एक अंग के रूप में, किसी व्यक्ति को अपना विकास उस स्तर तक करना चाहिए जिसमें शुचिता जीवन जीने का एक तरीका बन सके और ईमानदारी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बन सके। सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता और योग्यता के मूल्यों को नौकरशाहों के द्वारा अनुसरण किए जाने वाले मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए।

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