एकीकृत थिएटर कमांड की आवश्यकता पर चर्चा

प्रश्न: एकीकृत थिएटर कमांड सशस्त्र बलों की प्रभावशीलता में सुधार लाने के लिए आवश्यक कई उपायों में से केवल एक उपाय है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • सशस्त्र बलों की प्रभावशीलता एवं उन्नयन में सुधार महत्वपूर्ण है; संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • एकीकृत थिएटर कमांड की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए बताइए कि किस प्रकार यह सशस्त्र बलों की प्रभावशीलता में सुधार लाने के लिए आवश्यक विभिन्न उपायों में से एक है।
  • अनुशंसाओं के साथ निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

 शेकटकर समिति द्वारा तीन एकीकृत थिएटर कमांड्स के गठन की अनुशंसा की गयी। इसके अतिरिक्त सरकार ने भी नए वैधानिक नियमों को अधिसूचित किया है, जिसके तहत अंडमान और निकोबार कमांड के नौसेना कमांडर-इन-चीफ थल सेना एवं वायु सेना के अधिकारियों को प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करने में सक्षम होंगे।

एक एकीकृत थिएटर कमांड की परिकल्पना सुरक्षा दृष्टि से महत्वपूर्ण ज्योग्राफिकल थियेटर्स हेतु एक कमांडर के अंतर्गत तीनों सेवाओं की एक संयुक्त कमान के रूप में की गयी है। वर्तमान में एकीकृत थिएटर कमांड का यह मॉडल 65 से अधिक देशों में विद्यमान हैं। एकीकृत थिएटर कमांड की आवश्यकताः

  • वर्तमान समय में भारत सबसे जटिल चुनौतियों का सामना कर रहा है जिनमें चीन-पाकिस्तान धुरी के विकास सहित उप पारंपरिक से लेकर परमाणु युद्ध तक शामिल हैं। अतः तीनों सेवाओं (थल सेना, वायु सेना, नौसेना) के परिचालन एकीकरण के माध्यम से भूमि, वायु एवं समुद्री रक्षा क्षमताओं में वृद्धि करने की आवश्यकता है।

एकीकृत थिएटर कमांडर व्यक्तिगत सेवाओं के प्रति उत्तरदायी नहीं होगी। यह निर्दिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम एक समेकित युद्धक बल का निर्माण करने हेतु अपनी कमांड को प्रशिक्षित व सुसज्जित करने तथा उसका उपयोग करने के लिए स्वतंत्र होगी। इस प्रकार की संयुक्त संरचना लागत प्रभावी होगी। हालांकि, ध्यातव्य है कि भारतीय सशस्त्र बलों की प्रभावशीलता में वृद्धि करने के लिए, एकीकृत थिएटर कमांड केवल एक उपाय हो सकता है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित चुनौतियों का समाधान किए जाने की आवश्यकता हैं, जैसे कि:

  • भावी सेना को तकनीकी-उन्मुख होना चाहिए। उदाहरण- आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का उपयोग, साइबर युद्ध क्षमताओं इत्यादि को विकसित करना।
  • इसे क्रमशः आधुनिक हथियारों तथा हथियार प्रणालियों से सुसज्जित किया जाना चाहिए।
  • हथियारों के डिजाइन एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देश के अंतर्गत स्वदेशी विशेषज्ञता के साथ-साथ रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की निम्न सहभागिता को विकसित किया जाना चाहिए।
  • खरीद में अत्यधिक विलंबता और नई खरीद योजनाओं के लिए पूंजीगत बजट की कमी।
  • रक्षा मंत्रालय के विभिन्न अंगों जैसे ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड इत्यादि में अक्षमता एवं स्पष्ट रूप से उत्तरदायित्व का अभाव।

अतः सशस्त्र बलों की प्रभावशीलता में वृद्धि करने के लिए एकीकृत कमांड के अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार एवं पर्याप्त मात्रा में वित्तीय संसाधनों की भी आवश्यकता है।

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