चित्रकला की पहाड़ी शैली

प्रश्न: चित्रकला की पहाड़ी शैली भारत की सांस्कृतिक विरासत के एक महत्त्वपूर्ण भाग का निर्माण करती है। इस संदर्भ में, चित्रकला की कांगड़ा शैली पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • चित्रकला की पहाड़ी शैली का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  • स्पष्ट कीजिए कि यह किस प्रकार भारत की सांस्कृतिक विरासत के एक महत्त्वपूर्ण भाग का निर्माण करती है।
  • चित्रकला की कांगड़ा शैली का वर्णन कीजिए।

उत्तर

लघु चित्रकारी (Miniature painting) और पुस्तकीय चित्रण की पहाड़ी चित्रकला शैली का विकास भारत के हिमालयी राज्यों में स्वतंत्र रूप से हुआ। ये क्षेत्र 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से लेकर 19वीं शताब्दी के मध्य तक महान कलात्मक गतिविधियों का केंद्र बने रहे। पहाड़ी शैली दो सुस्पष्ट भिन्न शैलियों यथा अत्यधिक गहरे रंगों वाली बशोली शैली तथा रुचिकर एवं भावपूर्ण कांगड़ा शैली से मिलकर बनी है। पहाड़ी चित्रकला शैली अवधारणा तथा भावनाओं की दृष्टि से भगवान कृष्ण की कथाओं के चित्रण की अभिरुचि वाली राजस्थानी चित्रकला से निकटता से संबंधित है।

इसने धर्मनिरपेक्ष एवं दरबारी दृश्यों के चित्रण के अतिरिक्त भागवत पुराण, रामायण, रागमाला श्रृंखला और गीत गोविंद से जुड़ी हुई अनेक कुछ उत्कृष्ट कृतियों और कृतियों के समूहों का चित्रण किया है।

बशोली शैली के अंतर्गत रसमंजरी लघु चित्रकारी श्रृंखला के चित्र अनेक भारतीय और विदेशी संग्रहालयों में रखे हुए हैं। गुलेर चित्र अत्यंत आकर्षक होते हैं। जयदेव के गीत गोविंद के आगमन के साथ चित्रकला की कांगड़ा शैली व्यापक रूप से लोकप्रिय हुई। तत्पश्चात मुगल चित्रकला द्वारा इस शैली का अनुकरण किया गया।

कांगड़ा चित्रकला शैली:

  • उत्पत्ति: हरिपुर-गुलेर में, ये हिमाचल प्रदेश में जिला कांगड़ा के जुड़वां कस्बे हैं।
  • संरक्षक: पहले गुलेर के राजा गोवर्धन चंद और उनके पुत्र प्रकाश चंद तथा बाद में कांगड़ा के राजा संसार चंद।
  • चित्रकार: पंडित सेउ और उनके दो बेटे नैनसुख, माणक और पंडित सेउ के भाई गुरसौही।
  • विषय-वस्तु: प्रेम-प्रसंग और भक्ति रहस्यवाद। जयदेव की “गीत गोविंद”, “बिहारी की सतसई”, “भागवत पुराण”, नल और दमयंती की प्रेम कथा तथा केशव दास की रसिकप्रिया एवं कविप्रिया को लघु चित्रकारी के रूप में चित्रित किया गया। संगीत की विधाओं (रागमाला) और ऋतुओं (बारहमासा) को भी चित्रित किया गया। पहाड़ी राजाओं के चित्र भी बनाए गए।
  • विशेषताएं: ये चित्र पौधों, लताओं और पत्तों वाले वृक्षों की पृष्ठभूमि सहित प्राकृतिक दृश्यों के चित्रण होते हैं। महिलाओं के चेहरे पर नाक ललाट के अनुरूप रेखीय, आँखें लंबी और संकीर्ण होती हैं और ठुड्डी तीक्ष्ण होती है।
  • तकनीक: कांगड़ा कला मूल रूप से रेखा-चित्रण की एक कला है। रेखाओं की सूक्ष्मता, रंग की चमक (पीला, लाल और नीला) और अलंकार विवरण की बारीकी इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं। रंगों का निर्माण वनस्पतियों और खनिजों से होता है।

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