सार्वजानिक सेवाओं के वितरण में निजी क्षेत्रक की बढ़ती भूमिका : सार्वजानिक और निजी क्षेत्रकों के मध्य मूल्यों का अभिसरण

प्रश्न: सार्वजानिक सेवाओं के वितरण में निजी क्षेत्रक की बढ़ती भूमिका को देखते हुए, क्या आपको लगता है कि सार्वजानिक और निजी क्षेत्रकों के मध्य मूल्यों का अभिसरण हुआ है?

दृष्टिकोण

  • सार्वजनिक एवं निजी, दोनों क्षेत्रकों के अभिलक्षणों एवं मूल्यों का उल्लेख कीजिए।
  • इनकी भूमिकाओं के मध्य अंतर करते हुए, सार्वजनिक सेवाओं के वितरण में निजी क्षेत्रक की बढ़ती भूमिका को रेखांकित कीजिए।
  • उल्लेख कीजिए कि सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रकों के मूल्य किस प्रकार अभिसरित हो रहे हैं, क्योंकि दोनों क्षेत्रकों द्वारा एक दूसरे के मूल्यों को अपनाया जा रहा है।
  • भविष्यगामी दृष्टिकोण के संबंध में कुछ सुझावों के साथ उत्तर को समाप्त कीजिए।

उत्तर

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का स्वामित्व धारण और प्रबंधन सरकार द्वारा सामाजिक कल्याण के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने और सार्वजनिक हित को बनाए रखने के उद्देश्य से किया जाता है। लोक कल्याण, सार्वजनिक जवाबदेही और सामाजिक अभिविन्यास जैसे मूल्य इन उद्यमों की विशेषताएं हैं।

निजी उपक्रमों का स्वामित्व धारण और नियंत्रण निजी उद्यमियों द्वारा प्रतिस्पर्धात्मकता, दक्षता व उत्पादकता जैसे बाजार मूल्यों के साथ अधिकतम लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है।

पारंपरिक कार्य प्रणाली सार्वजनिक और निजी क्षेत्रकों के मध्य एक स्पष्ट अंतर प्रस्तुत करती है, विशेष तौर पर जब सार्वजनिक वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण की बात आती है। हालाँकि, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, नौकरी हेतु प्रयासरत युवाओं को प्रशिक्षण, वृद्धजनों की देखभाल एवं होम केयर (घरेलू देखभाल), अपशिष्ट प्रबंधन जैसी सार्वजनिक सेवा वितरण प्रक्रियाओं में निजी अभिकर्ताओं की बढ़ती भागीदारी से यह अंतर वर्तमान में धूमिल होता जा रहा है। अन्य बातों के साथ-साथ यह निजी कंपनियों को अनुबंध प्रदान करने से एवं सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से संभव हो पाया है।

इस परिवर्तन के आलोक में देखें तो दोनों क्षेत्रकों के मध्य मूल्यों का अभिसरण भी हुआ है, जिसे निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है:

  • निजी क्षेत्रक के सन्दर्भ में, विकसित होते कॉर्पोरेट प्रशासन के मानदंड सामाजिक अभिविन्यास, संधारणीय व्यवसाय मॉडल, सार्वजनिक जवाबदेही आदि की मांग करते हैं। अनेक कंपनियां कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व परियोजनाओं का कार्यान्वयन कर रही हैं। उदाहरण के लिए, किसानों को सशक्त बनाने के लिए ITC द्वारा ई-चौपाल परियोजना, शिक्षा और पर्यावरण परियोजनाओं में TATA समूह द्वारा निवेश किया जाना आदि।
  • सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के सन्दर्भ में, सरकार द्वारा घाटे में चल रही कंपनियों का विनिवेश किया जा रहा है। साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र की अनेक कंपनियों को निजी क्षेत्र की कंपनियों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, फलतः उत्पादन के स्तर और लाभप्रद स्थिति को बनाए रखने हेतु इन पर निरंतर दबाव भी बढ़ता जा रहा है। इन कारकों के कारण सार्वजनिक कंपनियाँ उत्तरोत्तर दक्षता, प्रभावशीलता, उत्पादकता और उपभोक्ता संतुष्टि जैसे बाजार सिद्धांतों के माध्यम से निर्देशित हो रही हैं।

हालांकि, मूल्यों का अभिसरण हुआ है, किन्तु यह सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है कि सार्वजनिक व निजी क्षेत्रकों के विभेदों के धूमिल होने के कारण सार्वजनिक क्षेत्रक के कल्याणकारी लक्ष्य सीमित न हों। साथ ही, उन सार्वजनिक परियोजनाओं की अधिक नियामकीय निगरानी की जानी चाहिए जिनमें निजी अभिकर्ता सम्मिलित हों ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके। देश में सतत विकास तभी संभव हो सकता है जब सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रकों के बेहतर अभ्यासों एवं सर्वोत्तम मूल्यों को एक दूसरे द्वारा प्रभावी रूप से अपनाया जाए।

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