केस स्टडीज : निजी स्कूलों में वर्द्धित नामांकन के मुद्दे

प्रश्न: आप राज्य द्वारा संचालित विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने हेतु उपाय सुझाने के लिए सरकार द्वारा गठित एक समिति के अध्यक्ष हैं। ड्रॉपआउट (बच्चों द्वारा विद्यालय छोड़ने) की बढ़ती दर और राज्य द्वारा संचालित विद्यालयों तथा निजी विद्यालयों के विद्यार्थियों के मध्य सीखने की क्षमता के बीच बढ़ते अंतर को देखते हुए, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(a) शिक्षा क्षेत्र, विशेष रुप से राज्य द्वारा संचालित विद्यालयों के माध्यम से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा प्रदान करने में सरकार की भूमिका का परीक्षण कीजिए।

(b) इस संबंध में आपकी अनुशंसाओं का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांतों और मूल्यों की पहचान कीजिए।

(c) कुछ ऐसे उपाय सुझाइए जिनके माध्यम से राज्य द्वारा संचालित विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किया जा सके।

दृष्टिकोण:

  • निजी स्कूलों में वर्द्धित नामांकन के मुद्दे पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
  • अनुशंसाओं का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धान्तों और मूल्यों का उल्लेख कीजिए।
  • राज्य द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हेतु उपायों को सुझाइए।

उत्तरः

भारत में निजी स्कूलों की संख्या लगभग 25% है। समेकित जिला शिक्षा सूचना प्रणाली के अनुसार, 2011 से 2016 तक सरकारी स्कूलों के नामांकन में 9% की गिरावट हुई जबकि निजी स्कूलों के नामांकन में 36% की वृद्धि हुई है। इसका कारण अभिभावकों की यह मान्यता है कि निजी स्कूलों में अवसरंचना, शिक्षा की गुणवत्ता और अधिगम परिवेश सरकारी स्कूलों की तुलना में बेहतर है।

(a) शिक्षा क्षेत्र, विशेष रुप से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा प्रदान करने में सरकार की भूमिका में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • शिक्षा आधुनिक समाज के निर्माण हेतु आवश्यक प्रमुख घटक है। समाज में सभी के लिए साक्षरता का न्यूनतम आधारभूत स्तर सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इस दायित्व का निर्वहन केवल इसलिए ही नहीं किया जाना चाहिए कि निजी क्षेत्र सभी को शिक्षा प्रदान करने में असमर्थ है, बल्कि सभी नागरिकों को कम से कम गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा प्रदान करना सरकार का मुख्य उत्तरदायित्व है।
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009 संविधान के अनुच्छेद 21A के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है। हालांकि अधिकांश सरकारी स्कूलों में अभी तक अनिवार्य मानदंडों को पूरा किया जाना शेष है, जैसे- कानून द्वारा निर्धारित छात्र-शिक्षक अनुपात को प्राप्त करना।
  • भागीदारी को प्रोत्साहित करने और स्कूल छोड़ने की दर में कमी लाने के लिए, सरकार कक्षा I से VIII तक के सरकारी और सरकारी-सहायता प्राप्त स्कूलों में मिड-डे-मील (मध्यान्ह भोजन) योजना के माध्यम से पोषण सहायता प्रदान करती है।
  • सभी के लिए शिक्षा (public education) को सुलभ बनाने के लिए स्कूलों को दूरस्थ और सीमावर्ती क्षेत्रों में भी स्थापित किया जाता है।
  • यह NCERT जैसे संगठनों के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में अनुसन्धान, मॉडल पाठ्य पुस्तकें तैयार और प्रकाशित करने को प्रोत्साहित करती है।

(b) अनुशंसाओं को निर्देशित करने वाले सिद्धांत और मूल्य।

  • ‘उत्तरदायित्व’ मुख्य सिद्धांत है– राष्ट्र की प्रगति के लिए स्कूली शिक्षा प्रदान करना सरकार का मुख्य कर्त्तव्य है।
  • केवल प्रावधान करना ही पर्याप्त नहीं है। इन्हें गुणवत्ता और प्रभावकारिता के सिद्धांतों से भी अनुपूरित होना चाहिए। स्कूलों को सुलभ होने के साथ-साथ वांछनीय भी होना चाहिए। इनका उद्देश्य केवल नामांकन करना ही नहीं होना चाहिए बल्कि छात्रों में शैक्षिणक मूल्यों को प्रोत्साहित करना भी होना चाहिए।
  • शैक्षिक सुधारों (नीचे वर्णित किए गए) के अतिरिक्त शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एक सिद्धांत के रूप में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि शिक्षकों को उचित प्रशिक्षण दिया जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उनसे कोई अन्य सरकारी कार्य न कराया जाए, जिससे उनके पद एवं सेवा के प्राथमिक उद्देश्य अर्थात शिक्षा से समझौता नहीं करना पड़े।
  • स्कूलों को आकर्षक बनाना इन अनुशंसाओं को प्रभावित करने वाला एक अन्य सिद्धांत है। उनसे ऐसी जीवंतता प्रदर्शित होनी चाहिए कि अभिभावक स्वयं ही अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित हों, अवसंरचनात्मक सुधार और नियमित अभिभावक-शिक्षक बैठकों के आयोजन को भी इससे संबंधित संस्तुतियों में सम्मलित किया जाना चाहिए।
  • सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के समकक्ष लाने की आवश्यकता है। प्राथमिक शिक्षा को समता का माध्यम बनाना चाहिए न कि असमता का स्रोत। यह अत्यधिक प्रतिस्पर्धी वातावरण में सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
  • निजी स्कूलों के निरंतर महंगे होने और फ़ीस के विनियमन में एकरूपता के अभाव के कारण पर्याप्त संख्या में सरकार संचालित स्कूलों (RTE अधिनियम के अनुच्छेद 6 के अंतर्गत) की स्थापना की जानी चाहिए है। इससे पहुंच, समानता और वहनीयता में वृद्धि होगी।
  • लैंगिक मुद्दों, सांप्रदायिक सद्भाव, पर्यावरणीय मुद्दों पर शिक्षा और संवेदनशीलता आदि पर बल दिया जाना चाहिए। इससे छात्रों के सामाजिक रूप से जागरुक और संवेदनशील नागरिकों के रूप में विकसित होने में सहायता प्राप्त होगी।
  • RTE अधिनियम 2009 के दायरे को प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा से माध्यमिक शिक्षा तक विस्तृत किया जाना चाहिए ताकि अधिकतम छात्रों को इसका लाभ प्राप्त हो।

(c) राज्य-संचालित स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के उपाय:

  •  सार्वजनिक शिक्षा में निवेश को बढ़ाया जाना चाहिए। छात्रों के लिए पर्याप्त क्षेत्र युक्त कक्षाएं, स्वच्छ शौचालय, पेयजल की सुलभता, प्रयोगशालाएं इत्यादि जैसी उन्नत अवसंरचनाएं स्कूलों में विद्यमान होनी चाहिए।
  • समयबद्ध प्रशिक्षण और शिक्षकों का मूल्यांकन, पाठ्यक्रम के अद्यतन और पाठ्येतर गतिविधियों को बढ़ावा देने के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना आवश्यक है। शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए अधिक शिक्षकों की भर्ती की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त शिक्षकों को ऐसे कार्यक्रमों में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए जो उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षासामग्री, शिक्षा-शास्त्र और व्यवहारिक प्रशिक्षण से युक्त हों।
  • कक्षाओं में अंतःक्रियाशील परिवेश चाहिए अर्थात छात्र-शिक्षक और सहपाठियों के मध्य परस्पर विमर्श में वृद्धि होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त शिक्षकों द्वारा रटाने की बजाय सिखाने की पद्धति पर बल दिया जाना चाहिए।
  • स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम का भार कम करना ताकि बच्चों को अन्य विकास गतिविधियों जैसे- खेल, योग आदि में सम्मिलित किया जा सके। बच्चों को समग्र रूप से विकसित होने का अवसर दिया जाना चाहिए। पाठ्येतर गतिविधियाँ जैसे- पेंटिंग, ड्रामा, खेल आदि को स्कूल पाठ्यक्रम का भाग होना चाहिए, क्योंकि ये छात्रों को बेहतर समय-प्रबंधन, बेहतर संगठनात्मक कौशल प्रदान करने के अतिरिक्त उनके आत्मसम्मान आदि में वृद्धि करते हैं।
  • आधुनिक शिक्षण सहायक साधनों, उपकरणों आदि जैसे- स्मार्ट क्लासरूम और डिजिटल पाठ्यक्रम सामग्री के माध्यम से डिजिटल शिक्षा को अपनाया जाना चाहिए।

स्कूलों के माध्यम से छात्रों को न केवल शिक्षा प्रदान की जाती है, बल्कि ये एक व्यक्ति एवं समाज के मध्य सेतु के रूप में भी कार्य करते हैं। वे ज्ञान के प्रसार, व्यक्तित्व के विकास, धर्म निरपेक्षता को बढ़ावा देने आदि में सहायता करते हैं। इस प्रकार, राज्य संचालित स्कूलों की गुणवत्ता में पर्याप्त वृद्धि हेतु प्रयास किए जाने चाहिए। 

Read More 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.