दल परिवर्तन कानून : व्हिप के कार्यों की प्रासंगिकता

प्रश्न: दल परिवर्तन कानून और राजनीतिक दलों द्वारा व्हिप जारी करने से सांसदों की स्वतंत्रता और स्वाधीनता कम हो जाती है तथा इस पर नए सिरे से विचार किए जाने का समय आ गया है। आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • दल-परिवर्तन कानून के प्रावधानों तथा व्हिप के कार्यों की प्रासंगिकता को चिह्नांकित करते हुए संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार ये सांसदों की स्वतंत्रता और स्वाधीनता को कम करते हैं।
  • संसद की विश्वसनीयता को बहाल करने में सहायक संशोधनों का सुझाव दीजिये।

उत्तर:

दल-परिवर्तन कानून (10वीं अनुसूची) को अधिनियमित करने का मुख्य उद्देश्य विधायकों द्वारा प्रचलित दल बदल की प्रवृति का समाधान कर राज्यव्यवस्था की विश्वसनीयता में वृद्धि करना था। सदन का अध्यक्ष सांसदों को अयोग्य घोषित कर सकता है, यदि वहः

  • स्वेच्छा से राजनीतिक दल की सदस्यता त्याग दे,
  • राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मत दे अथवा मतदान में अनुपस्थित रहे
  • दल से पृथक होकर एक नए दल का गठन करे। हालांकि, एक पार्टी में दो-तिहाई अथवा अधिक सदस्यों के विलय को वैध माना जाता हैं।

हालांकि व्हिप का कार्य किसी भी क़ानून या सदन के नियमों में उल्लिखित नहीं है बल्कि यह एक औपनिवेशिक विरासत है, परंतु विधायिका में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह राजनीतिक दल तथा इसके निर्वाचित प्रतिनिधियों के मध्य सेतु के रूप में कार्य करता है, और

  • उपस्थिति एवं अनुशासन को सुनिश्चित करता है; किसी विशिष्ट मुद्दे पर समर्थन प्राप्त करने हेतु प्रयास करता है;
  • उनके व्यवहार का विनियमन एवं निरीक्षण करता है;
  • निर्वाचित प्रतिनिधियों के विचारों को राजनीतिक दल के समक्ष प्रस्तुत करता है तथा इसी प्रकार राजनीतिक दल के विचारों को निर्वाचित प्रतिनिधियों के समक्ष प्रस्तुत करता है

विधायिका में निरंतर व्यवधान, रचनात्मक विचार-विमर्श के अभाव और कार्यपालिका (मंत्री परिपद) के हावी होने या प्रभुत्व स्थापित करने के कारण भारतीय संसद को विश्वसनीयता के संकट का सामना करना पड़ रहा है। विधेयकों को अत्यल्प अथवा बिना किसी चर्चा के साथ पारित करना एक मानक बन चुका है। राजनीतिक व्हिप तथा दल-परिवर्तन कानून आंशिक रूप से इसके लिए निम्नलिखित रूप से उत्तरदायी हैं:

  • विरोध तथा दल परिवर्तन के मध्य कोई भेद नहीं- क्योंकि ये प्रावधान किसी भी प्रकार के मतभेद को विद्रोह के रूप में मान्यता प्रदान कर सकते हैं।
  • सांसदों के लिए विरोधाभास- पार्टी द्वारा अपने नेताओं से पूर्व निर्धारित ढंग से मतदान करने की अपेक्षा करने पर वे अपने मतदाताओं के लिए इतर निर्णय नहीं ले सकते हैं।
  • बाध्यकारी सर्वसम्मति- यह पूर्व निर्धारित रहती है, जो रचनात्मक विचार-विमर्श तथा बहु-हितधारक भागीदारी और विचारों में व्यवधान उत्पन्न करती है।
  • लोकतंत्र के आधार को कमजोर करना- राजनीतिक दलों की विचारधारा का पालन स्वतंत्र विचारों का दमन कर सकता है। यह संसद में बहुमत को बढ़ावा दे सकता है, जो की कार्यकारिणी द्वारा नियंत्रित होता है।
  • दल-परिवर्तन कानून को आसमान रूप से लागू करना- क्योंकि अध्यक्ष अंतिम निर्णय ले सकता है और संभवतया पक्षपातपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

इसमे सांसदों की निष्ठा तथा विश्वास को क्षति पहुँची है, जो की लोकतंत्र हेतु अहितकर है। निरंतर न्यायिक हस्तक्षेप एक और अन्य दुष्प्रभाव है। संसद में मतदान विवेकपूर्ण ढंग से होने चाहिए, जिसके लिए निम्नलिखित कदमों को उठाने की आवश्यकता है:

  •  व्हिप जारी करने को केवल धन विधेयक या अविश्वास प्रस्ताव जैसे विधेयकों तक ही सीमित कर देना चाहिए जो सरकार के अस्तित्व को खतरे में डाल सकते हैं।
  • इससे सदस्य निर्णय लेने और अन्य स्थितियों में अपना मत व्यक्त करने हेतु सक्षम होंगे।
  • पार्टी व्हिप के मतदाताओं के हितों के विरुद्ध होने की स्थिति में विधि निर्माता, पूर्व नोटिस देकर पार्टी व्हिप से वापस हटने में सक्षम होने चाहिए
  • यूनाइटेड किंगडम के दल-परिवर्तन मॉडल का पालन किया जा सकता है- पार्टी से निष्कासन, परंतु सदन के एक स्वतंत्र सदस्य के रूप में बना रहे और पुनःनियुक्त किया जा सकता है।
  • दल-परिवर्तन कानून पर निर्णय लेने के अधिकार को भारत निर्वाचन आयोग (ECI) जैसे स्वतंत्र प्राधिकारी को स्पष्ट, समयबद्ध प्रावधानों के साथ निहित करना।

दल-परिवर्तन कानून तथा व्हिप प्रणाली ने सांसदों को केवल रबड़ स्टाम्प बना दिया है तथा विधायिका में उनकी सक्रिय भागीदारी को भी हतोत्साहित किया है। यद्यपि यह अधिकांश सम्बद्ध विधि निर्माता के मध्य कई मुद्दों पर सर्वसम्मति को गठित करना एक लंबा मार्ग है, परंतु अब यही एकमात्र उपाय है।

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