अन्धविश्वास : कानून की प्रभावकारिता

प्रश्न: कानून के बल पर प्रत्येक अन्धविश्वास का निराकरण नहीं किया जा सकता है। इसके लिए मानसिक परिवर्तन आवश्यक है। टिप्पणी कीजिए। साथ ही, व्याख्या कीजिए कि किस प्रकार शिक्षक और प्रतिष्ठित व्यक्ति लोगों में अन्धविश्वास को समाप्त करने और वैज्ञानिक मनोवृत्ति विकसित करने में सहायता कर सकते हैं।

दृष्टिकोण

  • अन्धविश्वास के अर्थ का संक्षिप्त वर्णन कीजिये तथा कुछ ऐसे कानूनों का उल्लेख कीजिये जो इससे निपटने के लिए लागू किए गए हैं।
  • कानून की प्रभावकारिता पर चर्चा करते हुए बताइये कि अन्धविश्वास के निराकरण हेतु मानसिक परिवर्तन एक पद्धति के रूप में कैसे महत्वपूर्ण है।
  • व्याख्या कीजिए कि इस संदर्भ में शिक्षक तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

उत्तर

अन्धविश्वास से आशय किसी ऐसी मान्यता या धारणा से है जो किसी कारण अथवा वैज्ञानिक ज्ञान पर आधारित नहीं होती है। इसमें अलौकिक शक्तियों के प्रति श्रद्धा होती है तथा यह सामान्य आधुनिक विज्ञान का खंडन करता है। इसके उदाहरण हैं: जादूटोना, सती, मानव बलि अथवा काली बिल्लियों इत्यादि से संबंधित प्रथाएं। इनमें से कुछ अन्धविश्वासी प्रथाएं सदियों पुरानी हैं तथा परम्परा और धर्म के आवश्यक अंग के रूप में स्वीकार की जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप नवीन निषेधात्मक कानूनों की स्थापना को विरोध का सामना करना पड़ता है।

तथापि कुछ राज्यों द्वारा ऐसी अन्धविश्वासी गतिविधियों पर नियंत्रण रखने हेतु कानून निर्मित किये गए हैं। उदाहरणार्थ महाराष्ट्र ने महाराष्ट्र मानव बलि और अन्य अमानवीय, शैतानी एवं अघोरी प्रथाओं तथा काला जादू की रोकथाम और उन्मूलन अधिनियम, 2013 लागू किया है। यह कानून काला जादू, मानव बलि, रोगों के उपचार हेतु जादुई उपायों के प्रयोग आदि से संबंधित प्रथाओं को अपराध घोषित करता है। इसके अतिरिक्त भारतीय दंड संहिता (IPC) तथा भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की कई मौजूदा धाराएँ भी ऐसी प्रथाओं को अपराध के दायरे में लाती हैं। उदाहरणार्थ बच्चे को काँटों पर फेंकना IPC की धारा 307 और 323 के तहत दंडनीय अपराध है।

इसके बावजूद कानूनों द्वारा अधिरोपित बाह्य बाध्यता अंधविश्वासों के खतरे को नियंत्रित करने में अपर्याप्त सिद्ध हई है। कुछ उपहार या प्रतिफल के लिए अमानवीय कृत्यों या मानव बलिदान करने वाले लोगों के अनेक उदाहरण विद्यमान हैं। इसलिए कानूनों के सक्रिय क्रियान्वयन और एक उत्तरदायी आपराधिक न्याय व्यवस्था के साथ-साथ परम्परागत और तर्कहीन मनोवृत्ति से तर्कपूर्ण एवं वैज्ञानिक मनोवृत्ति की ओर एक मानसिक परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। यह राज्य की नीति के निदेशक तत्वों में से भी एक है।

इसे शिक्षकों तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों की अग्रसक्रिय भागीदारी के द्वारा प्रभावशाली रूप से संपन्न किया जा सकता है। चूंकि उनके बड़ी संख्या में अनुयायी होते हैं अत: वे अन्धविश्वासी मानसिकता को पूर्णतया परिवर्तित करने हेतु अनुनयन तकनीकों (persuasion techniques) का प्रभावी प्रयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए राजा राममोहन राय ने सती प्रथा जैसी अमानवीय परंपरा को समाप्त करने हेतु धार्मिक ग्रन्थों का उपयोग किया था। ज्ञातव्य है कि यह प्रथा उस समय व्यापक रूप से प्रचलित थी। उन्होंने लोगों को यह समझाते हुए कि इन प्रथाओं की कोई धार्मिक स्वीकृति नहीं है; सामाजिक संवेदना को परिवर्तित किया था।

इसके अतिरिक्त, शिक्षकों द्वारा शिक्षण के वैज्ञानिक तरीकों को संस्थागत बना कर वास्तविक और दीर्घकालिक प्रगति को प्राप्त किया जा सकता है, ताकि तर्कशक्ति को बाल्यावस्था के दौरान ही अंतर्निहित किया जा सके। इस प्रकार किसी भी पूर्वाग्रह से मुक्त समालोचनात्मक चिंतन के माहौल का निर्माण किया जा सकता है।

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