महिलाओं की सार्थक राजनीतिक सहभागिता : 108वें संविधान संशोधन विधेयक
प्रश्न: महिलाओं की सार्थक राजनीतिक सहभागिता सुनिश्चित करने एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सही अर्थों में समावेशी बनाने हेतु विधायिका में सीटों के आरक्षण की आवश्यकता है। 108वें संविधान संशोधन विधेयक के आलोक में इस कथन की विवेचना कीजिए।(150 words)
दृष्टिकोण
- भारतीय राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व तथा महिलाओं की न्यूनतम भागीदारी हेतु उत्तरदायी कारकों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- उल्लेख कीजिए कि देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को समावेशी बनाने हेतु महिलाओं की भागीदारी क्यों महत्वपूर्ण है।
- चर्चा कीजिए कि किस प्रकार 108वें संविधान संशोधन विधेयक से राजनीति में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हो सकती है।
- आरक्षण से संबंधित कुछ चिंताओं का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
भारतीय राजनीति में महिलाओं को न्यूनतम प्रतिनिधित्व प्राप्त है। नवनिर्वाचित लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या केवल 78 (सदन की कुल संख्या का 14%) है। जबकि राज्य विधानसभाओं और परिषदों में, महिलाओं का प्रतिनिधित्व सदन की कुल सदस्यता का क्रमशः (लगभग) 9% एवं 5% है।
इस संदर्भ में, सामान्यतः राजनीति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी हेतु विधानमंडलों में आरक्षण को एक रणनीति के रूप में यह एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंक
- यह निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं में महिलाओं द्वारा निर्वहन की जा सकने वाली भूमिका के महत्व को मान्यता प्रदान करने के साथ-साथ प्रगतिशील समाज के निर्माण में भी सहायक होगा।
- शोध से ज्ञात हुआ है कि प्रायः महिला विधायकों की अधिक संख्या के परिणामस्वरूप इस प्रकार की नीतियों के निर्माण को बढ़ावा मिलता है जिनमें न केवल महिलाओं बल्कि बच्चों और नृजातीय एवं जातीय अल्पसंख्यकों से सम्बंधित विशिष्ट चिंताओं को भी प्राथमिकता प्रदान की जाती है।
- इसके अतिरिक्त, कुछ अध्ययनों के अनुसार, महिलाओं की अधिक भागीदारी राजनीति में भ्रष्टाचार को नियंत्रित करती है। उदाहरणार्थ: चुनाव में नामांकन करते समय महिला विधायकों की तुलना में पुरुष विधायकों के विरुद्ध तीन गुना अधिक आपराधिक मामले लंबित होते हैं।
चुनावी प्रतिस्पर्धाओं में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को किसी भी देश में लोकतंत्र की प्रभावशाली वृद्धि का एक वैध संकेतक माना जाता है।
इसी क्रम में, 108वें संवैधानिक संशोधन विधेयक, 2008 के अंतर्गत लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में महिलाओं हेतु एक तिहाई सीटों के आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यह सभी वर्गों की महिलाओं के प्रतिनिधित्व में समानता सुनिश्चित करेगा और भारतीय लोकतंत्र को और अधिक समावेशी बनाएगा।
इस विधेयक द्वारा प्रस्तावित किया गया है कि आरक्षित सीटों को भिन्न-भिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में चक्रानुक्रम में आबंटित किया जा सकता है। इस विधेयक के अंतर्गत इस प्रकार के प्रावधान हेतु 15 वर्ष की अवधि निश्चित की गई है, जिसके पश्चात यह प्रावधान निरस्त हो जाएगा।
यद्यपि, केवल कानून समाज में वांछित सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन लाने हेतु पर्याप्त नहीं है, अतः इस संबंध में कुछ चिंताएं भी मौजूद हैं जो निम्नलिखित हैं:
- 73वें एवं 74वें संशोधन अधिनियमों के माध्यम से स्थानीय स्तर पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व में वृद्धि की गई है। हालाँकि,इससे उनके सशक्तिकरण में पर्याप्त वृद्धि नहीं हुई है। वास्तव में, इसने सरपंच पति (अर्थात महिला के पंचायत सरपंच होने के बावजूद, वास्तविक नेता उसका पति होता है) की अवधारणा को उत्पन्न किया है।
- विकल्पों को सीमित करना: यह मतदाताओं के विकल्पों को केवल महिला उम्मीदवारों तक ही सीमित करता है। अतः कुछ विशेषज्ञों द्वारा राजनीतिक दलों में आरक्षण एवं द्वि-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों के गठन जैसे वैकल्पिक तरीकों का सुझाव दिया गया है।
- पूर्वाग्रह का स्थायी स्वरूप ग्रहण करना: यह तर्क दिया जाता है कि आरक्षण, महिलाओं की असमान प्रस्थिति को बनाए रखेगा, क्योंकि उन्हें आरक्षण मिलने के बाद ऐसी धारणा विकसित हो जाएगी कि महिलाएं योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्धा करने में अक्षम होती हैं।
- दायित्वों के निर्वहन हेतु प्रोत्साहन का अभाव: 108वें संवैधानिक संशोधन विधेयक, 2008 में प्रस्तावित आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के चक्रानुक्रम के परिणामस्वरूप सांसदों/विधायकों में अपने निर्वाचन क्षेत्र में कार्य करने हेतु प्रोत्साहन में कमी आ सकती है।
हालाँकि, उपर्युक्त चिंताओं को निम्न सदन में विधेयक के विलंबन का कारण नहीं बनना चाहिए। उपर्युक्त चिंताओं का समाधान करने के लिए संसद में आवश्यक रूप से गहन विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।
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