शिकायत निवारण तंत्र दक्षता और प्रभावशीलता के मापन का पैमाना : शिकायत निवारण तंत्र की प्रभावशीलता में वृद्धि हेतु उठाए जाने वाले कदम

प्रश्न: शिकायत निवारण तंत्र दक्षता और प्रभावशीलता के मापन का पैमाना है क्योंकि यह प्रशासन के कार्यकरण के संबंध में महत्वपूर्ण फीडबैक (प्रतिपुष्टि) प्रदान करता है। इस संदर्भ में, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(a) उन समस्याओं की पहचान कीजिए, जिन्होंने एक प्रतिक्रियाशील निवारण तंत्र के सम्मुख बाधाएं उत्पन्न की हैं।

(b) शिकायत निवारण तंत्र की प्रभावशीलता में वृद्धि हेतु सरकार द्वारा क्या कदम उठाए जाने चाहिए?

दृष्टिकोण

  • संक्षेप में, शिकायत निवारण तंत्र के महत्व का उल्लेख करते हुए उत्तर का आरंभ कीजिए।
  • एक उत्तरदायी एवं प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र की सफलता के मार्ग में आने वाली बाधाओं का सविस्तार वर्णन कीजिए।
  • एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने हेतु जिन क्षेत्रों पर मुख्य रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है, उनका सविस्तार वर्णन कीजिए।

उत्तर

शिकायत निवारण तंत्र किसी भी प्रशासनिक व्यवस्था का एक प्रमुख भाग होता है। कोई भी प्रशासन वास्तव में तब तक जवाबदेह, उत्तरदायी और उपयोगकर्ता के अनुकूल नहीं हो सकता है जब तक कि वह एक दक्ष एवं प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र स्थापित नहीं करता है। दूसरे शब्दों में, एक प्रणालीगत शिकायत निवारण तंत्र नागरिक केंद्रित शासन की सुविधा प्रदान करता है। परिणामस्वरूप, इसे संस्थागत बनाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा ऑनलाइन समाधान, CPGRAMS, जिला कलेक्टरों द्वारा जन सुनवाई जैसी विभिन्न पहलों को आरंभ किया गया है।

(a) ऐसे मुद्दे, जो एक उत्तरदायी शिकायत निवारण तंत्र के समक्ष बाधाएं उत्पन्न करते हैं:

  • प्रशासन सम्बन्धी मुद्देः प्रशासन द्वारा ढिलाई बरतना, अंतर्निहित जड़ता, प्रोत्साहनों की अनुपस्थिति, उचित प्राधिकार और जवाबदेहिता की कमी जैसे विभिन्न मुद्दे शिकायत निवारण तंत्र की संवेदनशीलता को कम करते हैं।
  • पुराने कानून: ऐसे नियम, विनियम व निर्देश, जो समकालीन परिदृश्य के संदर्भ से बाहर के हैं, प्रभावी शिकायत निवारण में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • लिए गए निर्णयों के अनुवर्तन (फॉलो-अप) का अभाव: अनुवर्तन का अभाव शिकायतों को निरंतर बढ़ावा प्रदान करता है।
  • न्यायिक अधिकार संबंधी मुद्दे: केंद्र सरकार के पोर्टल पर सूचीबद्ध कई शिकायतें राज्य के मामलों से संबंधित होती हैं और इसका विपरीत भी देखा जाता है। इस तरह की शिकायतों का बिना किसी प्रभावी निवारण के ही निपटान कर दिया जाता है।
  • अप्रभावी कार्यान्वयन: कई सुविचारित कानूनों जैसे कि राइट टू सर्विस एक्ट या सिटीजन चार्टर के अधिनियमित होने के बावजूद, इनके आधे-अधूरे मन से किए गए कार्यान्वयन के कारण ये लोगों की शिकायतों का प्रभावी ढंग से निवारण करने में सक्षम नहीं हैं।
  • कार्य संस्कृति: निम्न कार्य गुणवत्ता, प्रतिदिन के कार्य संबंधी निष्पादन के प्रति गैर-जवाबदेही तथा स्थायी और राजनीतिक कार्यपालिका की “चलता है” जैसी अभिवृत्ति भी शिकायत निवारण तंत्रों की उत्तरदायिता को कम करते हैं।
  • शिथिल कार्यान्वयन तंत्र (Tardy Delivery Mechanisms) संस्थानों की निवारण क्षमताओं में बाधा उत्पन्न करते हैं। हाल ही में ऐसे ही एक मामले में इस दोष की पहचान करते हुए मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय को जनजातीय क्षेत्रों में शिकायत निवारण अधिकारियों को सुविधा प्रदान करने हेतु एक विशेष पीठ का गठन करना पड़ा।
  • विभिन्न स्थानों पर विभिन्न शिकायत निवारण तंत्रों के बारे में लोगों में निम्न जागरुकता।
  • कई राज्यों में लोकायुक्त और लोकपाल जैसे ओम्बड्समैन की नियुक्ति में विलंब, जैसा कि हाल ही में ओडिशा के मामले में देखा गया।

इन सभी कारकों के परिणामस्वरूप किसी शिकायत के निवारण में इतना अधिक विलंब होता है कि औसतन छह माह में एक शिकायत का निवारण हो पाता है।

(b) शिकायत निवारण तंत्र की प्रभावशीलता में वृद्धि हेतु सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदम

  • विशेष ध्यान दिए जाने योग्य / समस्या वाले क्षेत्रों की पहचान: भ्रष्टाचार और/या शिकायत उत्पन्न करने वाले संवेदनशील क्षेत्रों की नियमित समीक्षा की जानी चाहिए। साथ ही अत्यधिक उच्च सार्वजनिक इंटरफ़ेस के क्षेत्रों में कार्य लेखापरीक्षा (वर्क ऑडिट) के साथ-साथ सामाजिक लेखा परीक्षा (सोशल ऑडिट) भी की जानी चाहिए।
  • सिटीजन चार्टर्स का प्रभावी कार्यान्वयन: इसमें नागरिकों/ग्राहकों को विभिन्न सेवाएं प्रदान करने के लिए समय मानदंडों और शिकायत निवारण तंत्र के सभी स्तरों (जिन तक संपर्क किया जा सकता हो) के विवरण के प्रकटीकरण को शामिल किया जाना चाहिए।
  • नियमित आधार/स्थायी तंत्र पर सूचना और सुविधा काउंटरों की स्थापना: इन काउंटरों को नागरिकों के अनुकूल और प्रभावी बनाए जाने हेतु सिविल सोसाइटी के सदस्यों को कार्य संचालन में शामिल किया जाना चाहिए।
  • पर्याप्त पर्यवेक्षण के साथ विकेंद्रीकरण: शिकायत निवारण तंत्र का निर्माण उपयुक्त स्तरों पर किया जाना चाहिए जिससे कि पहुंच, प्रभावशीलता और न्यायिक संलिप्तता जैसे मुद्दों का उचित रूप से समाधान किया जा सके।
  • शिकायतों का त्वरित निवारण: एक त्वरित अंतरिम उत्तर के माध्यम से अभिस्वीकृति और शिकायत के समयबद्ध निवारण को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • शिकायतों का त्वरित निवारण करने के लिए जागरुकता सृजन और आधुनिकीकरण : प्रक्रिया एवं उचित प्राधिकारी से संपर्क करने हेतु लोगों को उपलब्ध योजनाओं/सेवाओं के बारे में बुकलेट/पर्चे जारी करना।
  • जवाबदेही में सुधार: अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नियमित बैठकों और प्रदर्शन की समीक्षा करने की आवश्यकता है।

उपर्युक्त बहुस्तरीय रणनीति अपनाकर, सरकार नागरिकों को सुगम सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने में सक्षम होगी और सरकार के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत शिकायतों की संख्या को कम किया जा सकेगा।

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