वर्ष 1975-77 की समयावधि ने भारत में लोकतंत्र

प्रश्न: वर्ष 1975-77 की समयावधि ने भारत में लोकतंत्र चुनौतियों और विजय दोनों को चिन्हित किया। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • जे.पी. आंदोलन को प्रेरित करने वाली परिस्थितियों की संक्षेप में चर्चा कीजिए तथा इसके दोषों को इंगित कीजिए।
  • आपातकालीन शासन के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  • अंत में संक्षिप्त चर्चा कीजिए कि इन दोनों (आपातकालीन शासन एवं जे.पी. आंदोलन) घटनाओं तथा इनके बाद की घटनाओं के बावजूद भारत में लोकतंत्र किस प्रकार फलीभूत हुआ।

उत्तर

  • वर्ष 1975 में आंतरिक आपातकाल की घोषणा के साथ, भारत ने स्वतंत्रता पश्चात सबसे बड़े राजनीतिक संकट का अनुभव किया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय और गुजरात विधानसभा के परिणामों ने विपक्ष को पुनर्जीवित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप जय प्रकाश नारायण (जेपी) और विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इस्तीफा देने हेतु बाध्य करने के लिए बड़े पैमाने पर जन अभियान का आह्वान किया।
  • इस आह्वान की प्रतिक्रियास्वरुप आंतरिक आपातकाल की घोषणा की गई। इस उद्घोषणा ने संविधान के संघीय प्रावधानों, मूल अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया। सरकार का किसी भी तरह से विरोध करने वाले प्रेस पर सख्त सेंसरशिप आरोपित की गई। आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (MISA) के अंतर्गत अनेक विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया। नौकरशाही और पुलिस की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि हुई जिसकी आलोचना नहीं की जा सकती थी तथा इसका मनमाने ढंग से उपयोग किया गया।
  • जेपी आंदोलन और इंदिरा गांधी दोनों ने इस संकट से बाहर निकलने हेतु चुनाव आयोजन के लोकतांत्रिक उपकरण को अस्वीकार कर दिया। अपनी मांगों और तरीकों को अपनाने के मामले में यह आंदोलन अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक रूप में परिवर्तित हो गया। संपूर्ण क्रांति की अवधारणा अस्पष्ट थी और फासीवाद के उद्भव हेतु सक्षम थी।
  • कुछ समय की निष्क्रियता, स्वीकृति या यहां तक कि समर्थन के पश्चात, शीघ्र ही जनता का आपातकाल से मोहभंग होने लगा। आम जनता ने भय, दमन, भ्रष्टाचार और अधिकार के दुरुपयोग के माहौल का पक्ष नहीं लिया। वर्ष 1977 में, इंदिरा गांधी ने लोकसभा के चुनावों की घोषणा की, राजनीतिक कैदियों को रिहा किया, प्रेस सेंसरशिप और अन्य राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध हटा दिए।
  • आपातकाल की समाप्ति और निष्पक्ष चुनाव की घोषणा, भारतीय लोकतंत्र के लिए एक निर्णायक क्षण था। इसने भारत और विदेशों में विभिन्न वर्गों के मध्य व्याप्त इस भय को समाप्त कर दिया कि भारत एक अधिनायकवादी राज्य की श्रेणी में शामिल हो गया। इसने भारतीय लोगों के लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अंतर्निहित आसक्ति को प्रकट किया। 1975-77 के वर्षों को भारतीय लोकतंत्र की कसौटी के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें यह न केवल अस्तित्व में बना रहा बल्कि अपेक्षाकृत अधिक सुदृढ़ रूप में फलीभूत हुआ।

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