बाल अपराध की अवधारणा : भारतीय संदर्भ में इससे सम्बंधित तथ्य

प्रश्न: कम उम्र में दिखाई पड़ने वाले जोखिम कारकों पर ध्यान तथा समय पर हस्तक्षेप बाल अपराध एवं उनके बढ़कर स्थायी अपराधी बनने के निवारण की कुंजी है। भारत के संदर्भ में बाल अपराध की बढ़ती घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में इस कथन का विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • संक्षेप में बाल अपराध की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए एवं भारतीय संदर्भ में इससे सम्बंधित तथ्यों के साथ इसे सिद्ध कीजिए।
  • किशोर अपराधों में वृद्धि हेतु उत्तरदायी विभिन्न जोखिम कारकों का विश्लेषण कीजिए।
  • किशोर अपरोधों की बढ़ती घटनाओं के निवारण हेतु कुछ हस्तक्षेपों का सुझाव भी दीजिए।

उत्तर

किशोर अपराध, को ‘चिल्ड्रेन इन कन्फ्लिक्ट विथ द लॉ’ के रूप में भी जाना जाता है। यह 18 वर्ष से कम आयु के ऐसे किसी भी व्यक्ति को संदर्भित करता है, जो किसी अपराध के परिणामस्वरूप या अपराध करने का संदेह होने के कारण न्याय प्रणाली के संपर्क में आता है।

NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, 2005 से 2015 के बीच भारत में किशोर अपराधों की घटनाओं में वृद्धि हुई है। इसके अंतर्गत पंजीकृत मामलों की संख्या में 100% से अधिक की वृद्धि हुई है। किशोर अपराधों (IPC के अंतर्गत) की यह बढ़ती प्रवृत्ति गंभीर चिंता का विषय है, यद्यपि 2001 से 2011 के दौरान कुल अपराधों में किशोर अपराधों की संख्या लगभग 1% है। ऐसे कई जोखिम कारक हैं जो किशोर अपराध के लिए उत्तरदायी हैं:

सामाजिक कारक 

  • विघटित घर और परिवार: माता-पिता के स्नेह और सुरक्षा का अभाव, अभिभावकों में परस्पर टकराव व तलाक की अत्यधिक वृद्धि दर, परित्याग व अलगाव आदि।
  • गरीबी: यह बच्चों को जानबूझ कर या अनजाने में अपराधियों के समूह में शामिल होने और अपराधी बनने के लिए विवश करती है।
  • समान आयुवर्ग समूह कारक: युवा जिन समूहों के निकट संपर्क में होते हैं उन समूहों में प्रचलित रुचियों से भी किशोर उम्र में अपराध की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
  • स्कूली असंतोष: माता-पिता की गैर-जिम्मेदारी, असंतुलित छात्र-शिक्षक अनुपात, स्कूलों में मनोरंजन व खेल की सुविधा का अभाव तथा शिक्षकों की उदासीनता इत्यादि कारकों का भी इसमें योगदान हो सकता है।
  • सिनेमा: फिल्में, टेलीविजन और अश्लील साहित्य प्रायः किशोरों में यौन और अन्य आवेगों को उत्तेजित कर सकते हैं।

व्यक्तिगत कारक

  • मानसिक हीनता और भावनात्मक असंतुलन: अपराधी बच्चों में हीन भावना, ईर्ष्या और स्वयं को असफल मानने की भावनाएँ व्याप्त होना आम है।
  • बाहरी दबाव, मजबूरी और प्रलोभन के साथ मन की गहरी आंतरिक इच्छाएँ।
  • निम्न संज्ञानात्मक विकास एवं प्रारंभिक स्तर पर समाज-विरोधी व्यवहार।
  • अन्य जोखिम कारकों में आवेगात्मक व्यवहार, अनियंत्रित आक्रामकता एवं ऐन्द्रिक सुख की त्वरित प्राप्ति की इच्छा आदि शामिल हैं।

इन उत्तरदायी कारकों को नज़रअंदाज़ करने की प्रवृत्ति, किशोर अपराधों के स्थायी अपराधों में परिवर्तित होने की संभावना को बढ़ा देती है। वर्षों से किशोर अपराधों पर NCRB डेटा पर एक सरसरी दृष्टि से अवलोकन, एक चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाता  है।

ऐसे किशोर, जो मुख्य रूप से चोरी या अनअधिकार प्रवेश या गैरकानूनी सभा करने जैसे छोटे-मोटे अपराधों में शामिल थे, वो आगे चलकर बलात्कार, हत्या और अपहरण सहित अनेक जघन्य अपराधों में संलिप्त पाए गए।

बाल अपराध को समाप्त करने के लिए आवश्यक हस्तक्षेप:

निवारण 

  • किशोर अपराधों को बढ़ावा देने वाली स्थानीय स्थितियों का मुकाबला करने तथा सुभेद्य युवाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सकारात्मक युवा विकास सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • परेशान और अव्यवस्थित बच्चों को उचित उपचार देने के लिए किशोर मार्गदर्शन क्लीनिक की स्थापना करना।
  • स्कूलों में परीक्षण द्वारा भविष्य के संभावित अपराधियों को पहचानना और ऐसे बच्चों को उचित उपचार प्रदान करना।

पुनर्वास

  • अपराधी बच्चों को उचित मार्गदर्शन और प्रशिक्षण प्राप्त करने में सहायता करना, जिससे वे सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार कर सकें। कानून का उद्देश्य किशोरों का सुधार और पुनर्वास होना चाहिए।
  • स्कूल मनोरंजन कार्यक्रमों के बाद सामाजिक क्षमता प्रोन्नयन पाठ्यक्रम का प्रबंध।
  • व्यवसायिक परामर्श और प्रशिक्षण, जिससे कैरियर विकल्प के साथ-साथ बेहतर रोजगार के सम्बन्ध में अपराधी के ज्ञान को बढ़ाया जा सके।

बाल अपराध सामान्यतः विकल्पों की बहुलता तथा अभिसारी(converging ) प्रभावों के फलस्वरूप उत्पन्न होता है। विधायी प्रावधानों में सुधार करके तथा बाल आश्रम जैसे अन्य सामाजिक रूप से प्रासंगिक उपायों के माध्यम से जोखिम वाले कारकों को समग्र रूप से संबोधित करने की नितांत आवश्यकता है। यह बाल अपराध की बढ़ती प्रवृत्ति को नियंत्रित करने में मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है।

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