भारतीय भाषाओं की वर्तमान स्थिति की व्याख्या : भारत में इंडेंजर्ड (लुप्तप्राय) भाषाओं की संख्या में वृद्धि करने वाले कारक

प्रश्न: यूनेस्को के एटलस ऑफ़ वर्ल्ड लेंग्वेजेज इन डेंजर के अनुसार, भारत में 197 भाषाओं के इंडेंजर्ड (लुप्तप्राय) होने की सूचना है। इस मुद्दे की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए इन भाषाओं को संरक्षित करने हेतु उठाये जा सकने वाले कदमों की पहचान कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय भाषाओं की वर्तमान स्थिति की व्याख्या कीजिए।
  • भारत में इंडेंजर्ड (लुप्तप्राय) भाषाओं की संख्या में वृद्धि करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
  • इंडेंजर्ड (लुप्तप्राय) भाषाओं के संरक्षण और परिरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए।

उत्तर

भारत में 780 से अधिक भारतीय भाषाओं में से 197 भाषाएं इंडेंजर्ड (लुप्तप्राय) हैं (यूनेस्को के अनुसार चिह्नित की गई इंडेंजर्ड भाषाओं में से 81 वल्नरेवल हैं। इसके बाद डेफिनिटली इंडेंजर्ड (63), सीवियरली इंडेंजर्ड (6) क्रिटिकली इंडेंजर्ड (42) और ऑलरेडी इक्स्टिक्ट (5) भी हैं। यूनेस्को के अनुसार,10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली किसी भी भाषा को “पोटेंसियली इंडेंजर्ड “ माना जाता है।

विलुप्ति (extinction) के कारण

  • अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व- अंग्रेजी भाषा ज्ञान, रोजगार और इंटरनेट की प्राथमिक भाषा बन गई है, इस प्रकार इसने अन्य स्थानीय भाषाओं को पीछे छोड़ दिया है।
  • पीढ़ीगत हस्तांतरण की विफलता- मूल भाषा में शैक्षणिक विषय-वस्तु की कमी, इलेक्ट्रॉनिक पहुंच संबंधी उपकरणों की अपर्याप्ता, नई पीढ़ियों के मध्य इनके प्रसार  इन्हें अपनाने के प्रति उत्साह में कमी, विभिन्न भाषाओं, जैसे ‘इयाक’ (Eyak, अलास्का की एक भाषा), के विलोपन का प्रमुख कारण बनते हैं।
  • मूल भाषा में विषय वस्तु का अभाव और इलेक्ट्रॉनिक पहुँच संबंधी उपकरणों की कमी के कारण लेखन प्रणाली कमजोर हुई है। 197 लुप्तप्राय भाषाओं में से केवल दो भाषाओं- बोडो (बोरो : boro) और मैतेई (Meithei) को ही भारत में आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है जबकि कई अन्य भाषाओं में तो लेखन प्रणाली का पूर्ण अभाव है।
  • समुदायों के दृष्टिकोण में स्थानीय भाषा के प्रति हीनभावना, जिसे अंग्रेजी को सभी स्कूलों के लिए शिक्षण का माध्यम बनाने के प्रयासों में देखा जा सकता है।
  • वैश्वीकरण ने समरूपता एवं वैश्विक एकरूपता को बढ़ावा दिया है जिसके कारण कई भारतीय भाषाओं के मौखिक साहित्य और संस्कृति, यथा खाद्य पदार्थों, अनुष्ठानों, आदि से सम्बंधित शब्दों का लोप हो गया है।

भारत की 22 मान्यता प्राप्त आधिकारिक भाषाओं के अतिरिक्त अन्य सभी भाषाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इन भाषाओं के संरक्षण के लिए निम्नलिखित कदम उठाये जा सकते हैं:

  • भाषा के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं, जैसे कि कहानी कहने (स्टोरी टेलिंग), लोक साहित्य, मौखिक संस्कृति तथा इतिहास, के ऑडियो-विजुअल दस्तावेज़ तैयार करना।
  • व्याकरण संबंधी विवरणों, एकल-भाषी (मोनोलिंग्वल) और द्वि-भाषी (बाइलिंग्वल) शब्दकोशों, भाषा प्रवेशिकाओं (लैंग्वेज प्राइमर्स), लोक-साहित्य के संकलनों आदि के सार्वजनिक और खुले संग्रह का निर्माण करना।
  • सार्वजनिक और निजी संस्थानों को सम्मिलित करते हुए डिजिटलीकरण करना- उदाहरण के लिए भारतीय भाषा संस्थान, क्रिटिकली इंडेंजर्ड भारतीय भाषाओं के दस्तावेज़ीकरण के लिए गूगल के इंडेंजर्ड लैंग्वेज प्रोजेक्ट के साथ सहयोग कर सकता  है।
  • किसी भाषा के उच्चारण पुस्तकालयों (प्रोनन्सिएशन लाइब्रेरीज़) का निर्माण टेक्स्ट-टू-स्पीच और स्पीच-टू-टेक्स्ट, दोनों युक्तियों के निर्माण में सहायता कर सकता है। ये अंततः स्क्रीन रीडर और इलेक्ट्रॉनिक पहुंच संबंधी समाधानों को बेहतर बना सकता है।
  • नियमित भाषाई सर्वेक्षण- लिविंग टंग्स इंस्टीट्यूट फॉर इंडेंजर्ड लेंग्वेजेज और नेशनल ज्योग्राफिक की ग्लोबल लैंग्वेज हॉटस्पॉट्स जैसी कुछ महत्वपूर्ण पहलों द्वारा किये गये कार्यों का उपयोग भाषाओँ के दस्तावेज़ीकरण सम्बन्धी परियोजनाओं को प्रारंभ करने के लिए किया जा सकता है।
  • स्वदेशी भाषाओं में फिल्मों, कविताओं, नाटकों और स्थानीय रंगमंच को बढ़ावा देना– उदाहरणस्वरूप, गोंडी और भोजपुरी  के पुनरुत्थान का श्रेय इसे दिया जा सकता है।

स्वदेशी भाषाओं के वृहत स्तर पर डिजिटलीकरण के लिए दृष्टिहीनों की एक बड़ी जनसंख्या भी स्वयं में एक प्रमुख प्रेरक शक्ति है। सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में वास्तविक रूप से ऐसे भाषाई संसाधनों का निर्माण किया जा सकता है जो सरलता से सुलभ हों और भाषाविज्ञान में रुचि को पुनः उत्पन्न करने में सक्षम हों।

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