भारत में परिवार की पारंपरिक संरचना : वर्तमान सामाजिक सुरक्षा उपायों में आवश्यक सुधार

प्रश्न: भारत में परिवार की पारंपरिक संरचना में परिवर्तन की समकालीन प्रवृत्तियों और इसके कारणों का परीक्षण कीजिए। इस संबंध में वर्तमान सामाजिक सुरक्षा उपायों में आवश्यक सुधारों की चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में पारंपरिक परिवार संरचना की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • विद्यमान संरचना में हुए हालिया परिवर्तनों तथा इसके कारणों को रेखांकित कीजिए।
  • भारत में परिवर्तित पारिवारिक संरचना के आलोक में विद्यमान सामाजिक सुरक्षा संरक्षण उपायों में आवश्यक सुधारों को सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर

भारत की पारंपरिक परिवार संरचना संयुक्त परिवार प्रणाली रही है, जिसमें समकालीन समय में परिवर्तन हो रहा है, अर्थात, यह परिवारिक चक्र के एक भाग के रूप में एकल परिवार प्रणाली के रूप में परिवर्तित हो रही है। 1991 की जनगणना के आंकड़ों से यह प्रदर्शित होता है कि यद्यपि परिवारों का न्यूक्लेराइजेसन (nuclearisation) एक प्रमुख परिघटना रही है, वहीं संयुक्त परिवारों के विस्तार में भी वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त, परिवार की संरचना के मामले में, एकल माता-पिता वाले परिवारों, पुनर्गठित परिवारों (step families) और समान लिंग वाले युगलों (same sex couples) के परिवारों की संख्या में वृद्धि हुई है।

भारत में पारंपरिक पारिवार संरचना में परिवर्तन के कारण:

  •  ऐतिहासिक/राजनीतिक – भूमि सूधार: इन सुधारों ने भूस्वामियों पर सीलिंग प्रतिबंध आरोपित किए जिसके परिणामस्वरूप परिवारों के सैद्धांतिक विभाजन को बढ़ावा मिला। अंततः इसने औपचारिक विभाजन को प्रोत्साहित किया और एकल परिवार की प्रवृति को उत्पन्न किया।
  • जनांकिकीय – प्रवासन: शहरी क्षेत्रों में संयुक्त रूप में निवास करने की प्रवृति का प्रमुख कारण ग्रामीण लोगों का शहरी क्षेत्र में प्रवास करना, उनके द्वारा परस्पर आश्रय स्थलों को साझा किया जाना और एक ही क्षेत्र के प्रवास करने वाले लोगों के साथ घरों को साझा किया जाना रहे हैं।
  • आर्थिक – शहरीकरण और औद्योगीकरण में वृद्धि: ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों की कमी और क्षेत्रीय असंतुलन,शहरीकरण को बढ़ावा देते हैं, संयुक्त परिवार संरचना पर एक गंभीर दबाव उत्पन्न करते हैं और कई मामलों में इसने परिवारों के न्यूक्लेराइजेसन की प्रवृत्ति को विकसित किया गया है।
  • सामाजिक -व्यक्तिवाद की प्रवृति में वृद्धि (Growing individualism): मास मीडिया (जैसे, समाचार पत्रों, TV, रेडियो), औपचारिक शिक्षा की पहुँच, उपभोक्तावादी संस्कृति और बाजार शक्तियों ने पारंपरिक परिवार संरचना में परिवर्तन को बढ़ावा दिया है। लैंगिक गत्यात्मकता (Gender dynamics): अधिक से अधिक महिलाएं वैतनिक श्रमबल में शामिल हो रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी परिवार पर आर्थिक निर्भरता में कमी हुई है। चूंकि वे प्राय: विवाह से पूर्व भी नौकरियों के लिए पलायन कर जाती हैं,जो एकल व्यक्ति वाले परिवारों की संख्या में वृद्धि करता है।
  • प्रौद्योगिकी: विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति जैसे तीव्र परिवहन (वायुमार्ग) और संचार (मोबाइल, इंटरनेट) के साधनों के विकास के परिणामस्वरूप, आर्थिक कारणों से अपने गृहनगर और माता-पिता से दूर रहने वाले परिवारों की संख्या में वृद्धि हुई है, किन्तु परिवारों के साथ जुड़ाव की भावना अभी भी विद्यमान हैं।
  • विवाह नामक संस्था में परिवर्तन: कुछ ही लोगों द्वारा विवाह किया जाता है, बाहर प्रवास करने वाले लोग अधिक आयु में विवाह करते हैं, उनके द्वारा प्रायः एवं शीघ्र ही तलाक दे दिया जाता है और सामान्यतया उनके द्वारा पुनर्विवाह नहीं किया जाता है। समग्र रुप में, अधिकांश लोग विवाह ही नहीं करते हैं। हाल के समय में अविवाहित विपरीत लिंग वाले युगलों के परिवारों में वृद्धि हुई हैं।

भारत में, सामाजिक सुरक्षा की अवधारणा हिंदू संयुक्त परिवारों से संबद्ध थी, जो किसी भी विकट परिस्थितियों के विरुद्ध ‘सुरक्षा की एक मूल इकाई’ और ‘सुरक्षा की पहली पंक्ति’ होती थी। लेकिन 21वीं सदी में भारतीय परिवारों की पारंपरिक संरचना में व्यापक परिवर्तन हुआ है।

भारत के सामाजिक सुरक्षा उपायों में पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, चिकित्सा लाभ जैसे बीमा सम्मिलित हैं। यह न केवल सेवानिवृत्त और दिव्यांग श्रमिकों को बल्कि उनके पात्र आश्रितों और उत्तरजीवियो को भी सहायता प्रदान करते हैं। परिवर्तित होते पारिवारिक संबंध सामाजिक सुरक्षा संरक्षण के दायरे एवं मूल्य को प्रभावित करते हैं। इस संबंध में, भारत में विद्यमान सामाजिक सुरक्षा संरक्षण उपायों में निम्नलिखित सुधारों की आवश्यकता है:

  • प्रक्रियात्मक सुधार (Procedural reforms): पंजीकरण उद्देश्यों के लिए अधिकांश सामाजिक सुरक्षा संरक्षण उपायों के लिए परिवार के पुरुष मुखिया की आवश्यकता होती है। इसके अंतर्गत तलाक की दर और एकल कामकाजी महिलाओं की बढ़ती संख्या के आलोक में परिवर्तन की आवश्यकता है।
  • वृद्धावस्था देखभाल (Geriatric care): बिना देखभाल जीवनयापन कर रहे वृद्ध लोगों की बढ़ती संख्या के कारण वृद्धावस्था देखभाल की आवश्यकता में वृद्धि हुई है। वृद्ध महिलाओं और विधवाओं के मामले में यह आवश्यकता अधिक प्रमुख हो जाती है।
  • विधिक सुधार (Legal reforms): असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु इसकी कार्यप्रणाली की समीक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि अधिकांश शहरी एकल परिवार असंगठित क्षेत्र में रोजगार की प्राप्ति करते हैं।
  • सार्वभौमिक बीमा (Universal insurance): राज्य को जिन परिवारों के पास किसी भी प्रकार का बीमा नहीं हैं उन्हें सूक्ष्म बीमा योजनाओं की सुविधा एवं सहायता प्रदान करनी चाहिए।
  • व्यापक कवरेज (Extensive coverage): विद्यमान मातृत्व लाभ के साथ पितृत्व लाभ भी प्रदान किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, एकल माता-पिता और सेम सेक्स फैमिलीज़ (same sex families) के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों का विस्तार करना चाहिए।
  • परिवारों में भावनात्मक बंधन के कमजोर होने के कारण युवाओं में बढ़ते अवसाद, एल्कोहलिज्म और मादक पदार्थों के वयसन के कारण सामाजिक सुरक्षा के भाग के रूप में भावनात्मक सहायता प्रदान करने वाले उपायों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।

सामाजिक सुरक्षा उपायों में सुधार न केवल उत्तरजीविता की गारंटी प्रदान करने, बल्कि परिवारिक संरचना के भीतर सामाजिक समावेशन और मानवीय गरिमा के संरक्षण को भी सुनिश्चित करने हेतु किया जाना चाहिए।

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