प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक समय में भारतीय समाज : सामासिक संस्कृति

प्रश्न: प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक समय में भारतीय समाज ने सदैव एक अंतर्निहित एकता का प्रदर्शन किया है, जिसने एक ऐसी सामासिक संस्कृति का निर्माण किया है जो अपनी प्रकृति में निश्चित रूप से अखिल भारतीय है। स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण

  • स्पष्ट कीजिए कि भारत में सांस्कृतिक प्रणाली राजनीतिक प्रणाली से किस प्रकार स्वतंत्र बनी हुई है।
  • सामासिक संस्कृति के निर्माण में एकता के प्रभाव की चर्चा कीजिए जो तीनों अवधियों (प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक समय) में अपनी प्रकृति में निश्चित रूप से अखिल भारतीय है।
  • जहां भी आवश्यक हो, उचित उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर उचित निष्कर्ष प्रदान कीजिए।

उत्तर

  • एकता, भारतीय समाज की प्रमुख अंतर्निहित विशेषता रही है। विभिन्न शासक अपनी आंतरिक गतिशीलता (internal dynamics) के दौरान क्षेत्रीय स्तर पर युद्धों में संलग्न होते थे। हालांकि, इससे सांस्कृतिक एकता का पक्ष काफी हद तक अप्रभावित रहा और मुख्यधारा की सामासिक संस्कृति ने राजनीतिक प्रणाली से स्वतंत्र अपनी स्थिति को बनाए रखा है।
  • प्राचीन भारत के समय हिंदू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उद्भव हुआ, किन्तु इन सभी संस्कृतियों और धर्मों में संमिश्रण और अंत: क्रिया विद्यमान थी। इन सभी सांस्कृतिक तत्वों का संमिश्रण भी भाषा के माध्यम से हुआ। गंगा के मैदानों में विकसित विभिन्न पाली और संस्कृत शब्द संगम साहित्य में दृष्टिगत होते हैं। इसी प्रकार, अनेक द्रविड़ शब्दों को इंडो-आर्यन भाषाओं में पाया गया है। आर्य, शक, कुषाण की विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं जैसे भाषा, पहनावा, सिक्के आदि का भारतीयकरण हो गया। सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आत्मसात्करण ने भारतीय समाज में अंतर्निहित एकता को और अधिक सुदृढ़ बनाया।
  • मध्यकालीन भारत को भारतीय संस्कृति में इस्लाम के आगमन के रूप में चिह्नित किया गया है। संघर्ष और तनाव की अवधि के दौरान भी, सांस्कृतिक अनुकूलन को प्रोत्साहित करने वाले आंदोलनों का उद्भव हुआ। उदाहरण के लिए, सूफीवाद ने विभिन्न धर्मों की सहिष्णुता और सद्गुणों के एकीकरण को बढ़ावा दिया। इस प्रकार, यदि अशोक द्वारा शांति और प्रेम की परंपरा को स्थापित करने का प्रयास किया गया तो वहीं अकबर ने भी सुलह-ए-कुल (सार्विक शांति) की नीति का सख्ती से अनुपालन किया। इस प्रकार, कला और वास्तुकला के क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम शैलियों के सम्मिश्रण को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अंततः मुगलों द्वारा विभिन्न सामाजिक-धार्मिक समागमों का भी भारतीयकरण किया गया। उदाहरण के लिए, हालांकि इस्लाम सैद्धांतिक रूप से समतावादी है किन्तु इसने पदानुक्रम को स्वीकार किया, जो भारतीय समाज का केंद्रीय बिंदु था। परिणामस्वरूप, यह देखा जाता है कि भारत में जाति व्यवस्था अनौपचारिक रूप से मुस्लिम समाज को भी प्रभावित करती है।
  • भारत में यूरोपीय लोगों के आगमन के साथ संरचनात्मक और सांस्कृतिक दोनों स्तरों पर परिवर्तन की सबसे विषम प्रक्रिया आरंभ हुई। आधुनिक स्कूली शिक्षा ने पारंपरिक गूढ़ प्रणाली को प्रतिस्थापित कर दिया, अंग्रेजी को शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रस्तुत किया गया; पूर्व में विद्यमान पदानुक्रमित प्रणाली की तुलना में नई कानूनी तर्कसंगत प्रणाली समतावादी थी। हालांकि, पुनरुत्थानवादी आंदोलनों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष ने भारतीय परंपरा को अपने सभी गौरव को पुनर्जीवित करने में सहायता प्रदान की। भारतीय शिक्षा के सार और मूलभूत गुणों को बनाए रखने में क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा पर बल, क्षेत्रीय भाषाओं में साहित्य, चित्रकला की प्राच्य शैली का पुनरुद्धार आदि पर बल दिया गया। यह सार पश्चिमी मानवतावादी मूल्यों और दृष्टिकोण को शामिल करने के कारण और अधिक सुदृढ़ हुआ।
  • अतिथि देवो भव:, वसुधैव कुटुम्बकम, सहिष्णुता आदि जैसे विभिन्न मूल्यों ने विषम सांस्कृतिक अंतर्संबंध के समय में अंतर्निहित एकता को प्रदर्शित किया। अभी तक, भारतीय बहुलतावादी समाज में विभिन्न संस्कृतियां एक-दूसरे से संबद्ध हैं। यह एकता भारतीय समाज का मूल सामर्थ्य बना हुआ है जो हमें भविष्य में भी भारतीय संस्कृति की निरंतरता के प्रति आश्वस्त करता है।

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