पूंजीवाद की आलोचना: समाजवादी आंदोलन

प्रश्न: पूंजीवाद की आलोचना प्रस्तुत करने और उसका एक विकल्प प्रदान करने में 19 वीं शताब्दी के समाजवादी आंदोलन की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • समाजवाद को संक्षिप्त रूप में परिभाषित कीजिए।
  • व्याख्या कीजिए कि किस प्रकार 19वीं शताब्दी के समाजवादी आंदोलन द्वारा पूंजीवाद की आलोचना की गई और उसका एक विकल्प प्रदान किया गया।

उत्तर

समाजवाद एक आर्थिक प्रणाली और एक विचारधारा दोनों है। एक समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर समाज का अधिकार होता है न कि निजी स्वामित्व का। समाजवादी विचारधारा पूंजीवाद की आलोचना करती है और पूंजीवाद की कमियों को उजागर करती है।

19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में यूरोपीय सामाजिक चिंतकों जैसे रॉबर्ट ओवेन, चार्ल्स फोरियर, पिएर जोसेफ घूधों आदि ने औद्योगिक क्रांति के कारण उत्पन्न अत्यधिक निर्धनता और असमानता की आलोचना की तथा संपति के समतामूलक वितरण और समाज को छोटे-छोटे समुदायों में रूपांतरित करने जैसे सुधारों की वकालत की, जिनमें निजी संपत्ति का उन्मूलन किया जाना था। परिणामतः,1871 का पेरिस कम्यून,1864 में फर्स्ट इंटरनेशनल (इंटरनेशनल वर्किंग मेन्स एसोसिएशन) और 1889 में द्वितीय इंटरनेशनल (मूलतः सोशलिस्ट इंटरनेशनल) के गठन ने समाजवाद को एक नया मंच प्रदान किया।

पूंजीवाद की समाजवादी आलोचना: 

  • पूंजीवाद के अंतर्गत नैतिक और राजनीतिक मूल्यों को निम्न वरीयता प्रदान की जाती है क्योंकि बाजार व्यवस्था और लाभ की आकांक्षा के परिणामस्वरूप प्रतिस्पर्धा, लालच, भय और समुदाय की अवनति को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार, लोक कल्याण की उपेक्षा होती है।
  • संसाधनों का अपव्यय: पूंजीवाद में संसाधनों को आवश्यकता की तुलना में लाभप्रद उत्पादन की दिशा में गलत तरीके से आवंटित किया जाता है।
  • अल्पजनाधिपत्य (Oligarchy): पूंजीवाद निजी पक्ष के सामान्य मामलों पर अत्यधिक नियंत्रण स्थापित करता है जो लोकतंत्र के चरित्र के विरुद्ध है।
  • यह समाज को समृद्ध वर्ग और निर्धन वर्ग में विभाजित कर अत्यधिक आर्थिक असमानताएं उत्पन्न करता हैं तथा समृद्ध वर्ग द्वारा अपने आर्थिक लाभों को राजनीतिक लाभों के रूप में रूपांतरित किया जाता है।
  • उपभोक्ता संप्रभुता एक मिथक बन जाता है क्योंकि अधिकांश उपभोग विकल्पों को विज्ञापन और बिक्री प्रचार के माध्यम से निर्देशित किया जाता है।
  • पूंजीपतियों के मध्य अत्यधिक प्रतिस्पर्धा और इसके परिणामस्वरूप उद्योगों की लाभ की दरों में गिरावट से शोषणवादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है तथा पूंजी एवं श्रम के मध्य ‘विरोधाभासों’ में अत्यधिक वृद्धि होती है।

समाजवादी आंदोलन ने सामाजिक अथवा सामूहिक स्वामित्व और उत्पादन के साधनों के रूप में एक विकल्प प्रदान किया। सामान्यतः समाजवादियों का तर्क है कि पूंजीवाद लोकतंत्र को कमज़ोर बनाता है, शोषणकारी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है, यह अवसरों और संसाधनों का अनुचित वितरण, समुदाय का क्षरण तथा आत्मबोध एवं मानव विकास को अवरुद्ध करता है। एक समाजवादी लोकतंत्र पूंजीवाद के कारण उत्पन्न समस्याओं को समाप्त करने के अतिरिक्त, सभी लोगों के लिए कुछ निश्चित सामाजिक अधिकारों को सुनिश्चित भी करता है। इस प्रकार यह लोगों के मध्य संबंधों को मानवीय और तर्कसंगत बनाता है।

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