संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) : संयुक्त वन प्रबंधन में सरकारी प्राधिकारियों के साथ स्थानीय समुदायों की भागीदारी के महत्व

प्रश्न: संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) क्या है? वन वासियों और सीमांत वन समुदायों की आजीविका में सुधार लाने की इसकी क्षमता पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • भारत के सन्दर्भ में संयुक्त वन प्रबंधन शब्द की व्याख्या कीजिए।
  • संयुक्त वन प्रबंधन में सरकारी प्राधिकारियों के साथ स्थानीय समुदायों की भागीदारी के महत्व को उदाहरणों की सहायता से रेखांकित कीजिए।
  • संयुक्त वन समिति द्वारा वन वासियों के जीवन के संबंध में जो सुधार किए गए हैं या जो सुधार किए जा सकते हैं, उनका उल्लेख कीजिए।
  • उत्तर के अंत में इस संबंध में निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिये।

उत्तर

संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) वन विभागों और स्थानीय समुदायों के मध्य प्राकृतिक वन प्रबंधन हेतु भागीदारी है। इस अवधारणा को भारत सरकार ने वर्ष 1988 की राष्ट्रीय वन नीति के माध्यम से प्रस्तुत किया था। JFM के अंतर्गत, ग्रामीण समुदायों को निकटवर्ती वनों के सरंक्षण और प्रबंधन का कार्य सौंपा जाता है। समुदायों से वन सुरक्षा समितियों, ग्रामीण वन समितियों, ग्रामीण वन संरक्षण और विकास समितियों आदि को संगठित करने की अपेक्षा की जाती है। इन निकायों में से प्रत्येक की एक कार्यकारिणी समिति होती है जो अपने दैनिक मामलों का प्रबंधन करती हैं। वनों में अपनी सेवाएं देने के बदले समुदायों को गौण गैर-काष्ठ वनोत्पादों के उपभोग का लाभ प्राप्त होता है। परिणामस्वरूप वनों को संधारणीय रूप से संरक्षित किया जा सकता है। उदाहरण : 

  • हिमालयी राज्यों में गद्दी और गुज्जर जनजातियों द्वारा मवेशियों की नियंत्रित चराई से जंगली घास की व्यापक वृद्धि की रोकथाम होती है, इस प्रकार यह जैव विविधता के संरक्षण में योगदान देता है।
  • राजस्थान का बिश्नोई समुदाय पारिस्थितिक सरंक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • गिर राष्ट्रीय उद्यान के आस-पास निवास करने वाले मालधारी घुमन्तु जनजाति समुदाय के साथ संयुक्त संरक्षण प्रयासों ने शेरों की आबादी बढ़ाने में योगदान दिया है।

वनवासियों और सीमांत वन-समुदायों की आजीविका सुधार में संयुक्त वन प्रबंधन की सम्भावित भूमिका इस प्रकार है:

  • वन समितियां, ग्रामीणों के साथ मिलकर समन्वित रूप से कार्य करने हेतु गठित की गयी हैं। ये कृषि और वन उत्पादन में वृद्धि और उनके उत्पादों के प्रसंस्करण में सक्रिय भूमिका निभाती हैं।
  • रोजगार के अवसर, जैसे-गांवों में संधारणीय पर्यटन का सृजन किया जाता है ताकि ग्रामीणों को वृक्षों की अवैध कटाई और वनों के अतिक्रमण से रोका जा सके।
  • अन्य मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है ताकि वनों पर दबाव कम हो।
  • वन अधिकार अधिनियम के साथ पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 वनवासियों के अधिकारों को सुनिश्चित कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • संयुक्त वन प्रबंधन समिति (JFMC) में एक विशिष्ट महिला उप-समिति लैंगिक संतुलन सुनिश्चित करती है। JFMC सीमांत वन क्षेत्रों में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के कार्यान्वयन के साथ-साथ पशुपालन, मुर्गीपालन, डेयरी विकास और लघु वानिकी उद्यम प्रबंधन का प्रशिक्षण प्रदान करता है।
  • गैर-काष्ठ वन उत्पाद (NWFP) भी JFM के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। NWFP, वन पर आश्रित समुदायों की जीवन शैली का अभिन्न अंग हैं। वे उनकी आधारभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करते हैं और मंदी की अवधि में उन्हें लाभप्रद रोजगार प्रदान करते हैं और कृषि व मजदूरी द्वारा उन्हें पूरक आय उपलब्ध कराते हैं। JFM के माध्यम से एकत्र किए गए औषधीय पौधों की ग्रामीण स्वास्थ्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

इस प्रकार, संयुक्त वन प्रबंधन का महत्त्व न केवल वनोपयोग और पारिस्थितिकी प्रबंधन को इष्टतम बनाने में अपितु वन वासियों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने में भी निहित है।

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