भारत में राजनीति के अपराधीकरण की समस्या

प्रश्न: यद्यपि इस हेतु कानून विद्यमान हैं, तथापि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों का राजनीति में प्रवेश रोकने के लिए अभी भी काफी प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। भारत में राजनीति के अपराधीकरण की समस्या और परिणामी मुद्दों के संदर्भ में चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के लिए विद्यमान कानूनी प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
  • भारत में राजनीति के निरंतर अपराधीकरण के कारणों पर चर्चा कीजिए।
  • इस समस्या का समाधान करने के उपाय सुझाइए।

उत्तर

नागरिकों के प्रतिनिधियों के रूप में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित अपराधी न केवल चुनावों का बल्कि नागरिकों के शासन की आकांक्षाओं का भी उपहास बनाते हैं। भारत में राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे का संज्ञान लेते हुए समय के साथ कुछ कानूनी रक्षोपाय विकसित किये गये हैं, इनमें से कुछ प्रमुख हैं:

  • जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 8 (3) दो वर्ष से अधिक अवधि की सजा प्राप्त व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाती है।
  • संविधान के अनुच्छेद 102 (1) और 191 (1) क्रमशः किसी सांसद और किसी विधायक को कुछ आधारों पर अयोग्य घोषित करते हैं।
  • लिली थॉमस वाद (2013) में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि अपराधों हेतु दोषी ठहराए जाने पर आरोपी सांसदों और विधायकों को तत्काल प्रभाव से सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
  • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया था कि विधायकों से जुड़े मामलों पर वे एक वर्ष के भीतर अपना निर्णय सुना दें।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और उनके जीवनसाथियों की आय एवं संपत्ति के प्रकटीकरण को अनिवार्य बनाया है। साथ ही उसने राजनेताओं के विरुद्ध आपराधिक मामलों की त्वरित सुनवाई करने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने के निर्देश भी दिए हैं।

हालाँकि, इन रक्षोपायों के बावजूद भी भारत में अभी राजनीति का अपराधीकरण बहुत अधिक है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्स की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार कुल सांसदों और विधायकों में से लगभग 33% ने स्वयं के विरुद्ध आपराधिक मामलों का प्रकटीकरण किया है।

भारत में राजनीति के निरंतर अपराधीकरण के कारणों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:

  • अपराधियों के माध्यम से वोटों की खरीद और अन्य अनुचित उद्देश्यों के लिए किया जाने वाला व्यय नेताओं तथा अपराधियों के मध्य सांठगांठ का कारण बनते हैं।
  • आपराधिकता को प्रत्यक्षतः एक उम्मीदवार की जीत की संभावना के रूप में देखा जाता है।
  • अनेक मतदाता उम्मीदवार के आपराधिक रिकॉर्ड के बजाय उसकी अपील से अधिक प्रभावित होते हैं। इसलिए ऐसे राजनेताओं का बार-बार निर्वाचन हो जाता है।
  • चुनाव हेतु अयोग्य राजनेता अपनी पार्टियों में उच्च पदों पर बने रह सकते हैं और अपने स्थान पर प्रॉक्सी उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतार सकते हैं।
  • सजा प्राप्त अपराधियों के चुनावों में भाग लेने के विरुद्ध प्रभावी कानून का अभाव इस प्रक्रिया को और अधिक प्रोत्साहित करता है।
  • मतदाता चुनाव आयोग द्वारा बनाए गए नियमों से अनभिज्ञ हैं। कुछ राजनेता आयोग द्वारा जारी आदर्श आचार संहिता का बिना किसी गंभीर प्रतिक्रिया के खुले-आम उल्लंघन करते हैं।
  • दोष सिद्ध होने से पूर्व निर्दोष होने की उपधारणा के कारण कार्यवाहियों में अत्यधिक विलम्ब होता है। यह आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को न्यायिक प्रणाली में व्याप्त खामियों का लाभ उठाने का मार्ग प्रदान करती है।

आगे की राह

  • चुनाव अभियान के वित्तपोषण में अधिक पारदर्शिता आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को कम महत्वपूर्ण बनाती है।
  • मतदाता द्वारा मतदान में उसका कार्य करवा सकने वाले ‘दबंग’ व्यक्ति को वरीयता प्रदान करने की सोच को परिवर्तित करने के लिए राज्य की क्षमता में वृद्धि करना।
  • पर्याप्त रक्षोपायों के साथ, दागी राजनेताओं को आरोपों के निर्धारण के समय पर ही अयोग्य घोषित कर दिया जाना।
  • गलत हलफनामा दाखिल करने का आरोप अयोग्यता का एक आधार होना चाहिए।
  • राजनीतिक दलों को आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने, वित्तीय पारदर्शिता रखने और चुनावों के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट प्रदान नहीं करने जैसे उच्च आदर्शों को बनाए रखना चाहिए।
  • मीडिया और सिविल सोसाइटी संगठनों को भी चुनावी उम्मीदवारों की प्रोफ़ाइल और उनके द्वारा अपनाई गई पद्धतियों के संबंध में निगरानी रखनी चाहिए।
  • विधायकों की संपत्ति में किसी भी तरह की गैर-अनुपातिक वृद्धि की पूर्णतया जांच की जानी चाहिए।
  • भ्रष्टाचार व चुनाव प्रचार की उच्च लागत पर अंकुश लगाने तथा सभी को समान स्तर प्रदान करने के लिए चुनावी वित्तपोषण राज्य द्वारा किया जाना चाहिए।

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