भारत में रोगाणुवाहक-जनित रोग (VBDS) : इनके प्रभावी नियंत्रण और प्रबंधन हेतु उपाय

प्रश्न: भारत में रोगाणुवाहक-जनित रोग (VBDS) महामारी की तरह उभरकर सामने आये हैं, अतः उन कारकों को रेखांकित कीजिए जिनके कारण इनका उद्भव हुआ है। साथ ही, इनके प्रभावी नियंत्रण और प्रबंधन हेतु कुछ उपायों का भी सुझाव दीजिए।

दष्टिकोण

  • रोगाणुवाहक-जनित रोगों (VBD) की संक्षेप में विवेचना कीजिए और बताइए कि ये भारत में महामारी के स्तर तक कैसे पहुंच गए हैं।
  • भारत में रोगाणुवाहक-जनित रोगों (VBDs) के उद्भव के कारकों को विशिष्ट रूप से उजागर कीजिए।
  • उनके प्रभावी नियंत्रण और प्रबंधन के लिए उपाय सुझाइए।

उत्तर

रोगाणुवाहक-जनित रोग (VBD) परजीवियों, विषाणुओं(वायरस) और जीवाणुऔं (बैक्टीरिया) के कारण होने वाले मानव रोग हैं जो एक जीव (पोषक) से दूसरे जीव में तीसरे जीव (वाहक) के माध्यम से प्रेषित होते हैं। इनके कुछ सामान्य वाहक मच्छर, किलनी (टिक), सैंड फ्लाई, ब्लैकफ्लाई आदि हैं। रोगाणुवाहक-जनित रोगों के उदाहरणों में डेंगू बुखार, वेस्ट नाइल वायरस, लाइम रोग, मलेरिया आदि सम्मिलित हैं।

रोगाणुवाहक-जनित रोग जनसंख्या के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए गंभीर खतरा बन गए हैं। उदाहरण के लिए, 2016 में मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया के संयुक्त मामलों की संख्या 500,000 से अधिक थी।

इन रोगों के उद्भव के कारक:

  • स्वच्छता की समस्याएं: भारत में, रोगाणुवाहक-जनित रोग निम्नस्तरीय स्वच्छता स्थितियों, जल-जमाव और खुले में शौच आदि की प्रवृत्तियों के कारण व्याप्त हैं, जो सामान्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी मलिन बस्तियों में देखी जाती हैं।
  • रोगाणुवाहक-जनित रोग नियंत्रण उपायों का अप्रभावी उपयोग: ऐसा मुख्य रूप से राज्य सरकार की ओर से उचित योजना और तैयारियों की कमी के कारण है।
  • अपर्याप्त निधियाँ: यह स्थिति केंद्र और राज्य सरकार की ओर से निधियों के पर्याप्त आवंटन और उपयोग में विफलता के कारण है।
  • योग्य कर्मचारियों की कमी और सूचित अनुसंधान (Informed Research) का उपयोग: चूंकि प्रणाली पर चिकित्सा विशेषज्ञों का प्रभुत्व है अतः भारत को अनुभवी और विशेषज्ञ कीटविज्ञानियों की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा इस तथ्य को रेखांकित किया गया कि रोगाणुवाहक-जनित रोगों के मामलों को रिपोर्ट करने के संबंध में गंभीर अनियमितताएं और अप्रभावी निगरानी तंत्र की समस्या विद्यमान है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में रोगाणुवाहक-जनित रोगों का सामना करने के लिए योजनाओं की कमी: हालाँकि रोगाणुवाहक-जनित रोगों के लिए ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्र और शहरी झुग्गियां उच्च जोखिम वाले क्षेत्र हैं, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल और रोगाणुवाहक प्रबंधन पर विशेष ध्यान देते हुए कोई भी योजना लागू नहीं की गई है।

इन रोगों के प्रभावी नियंत्रण और प्रबंधन के उपाय:

यह देखते हुए कि भारत विशेष रुप से मानसून के मौसम (जून-सितंबर) के बाद हर वर्ष इस समस्या का सामना करता है, भारत सरकार इन प्रकोपों को रोकने और जीवन की क्षति कम करने के लिए एक पूर्वव्यापी रणनीति लागू कर सकती है।

  • मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOP) की स्थापना: रोगाणुवाहक-जनित रोगों के कारण होने वाली महामारी को रोकने के लिए सरकार के पास मानक संचालन प्रक्रियाएं (SOPs) होनी चाहिए।
  • शहरी रोगाणुवाहक-जनित रोगों के लिए परिचालन दिशा-निर्देशों की योजना (2016) में शामिल रणनीतियों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए।
  • केंद्र और राज्य सरकारों के लिए जवाबदेही तय करना: केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को समस्या से कुशलतापूर्वक और अधिक समन्वित तरीके से निपटने के लिए एक पूर्वव्यापी रणनीति विकसित करनी चाहिए।
  • अन्य देशों से प्रासंगिक सीख को आत्मसात करना: विश्व भर में श्रीलंका और अफ्रीका जैसे कई देशों को रोगाणुवाहक-जनित रोगों से निपटने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है और उनके अनुभवों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
  • निधियाँ और मानव संसाधन: इन रोगों से संघर्ष करने के लिए अधिक धन, अधिक शोध और समर्पित तकनीकी कर्मचारियों की आवश्यकता है ताकि इनका प्रभावी समाधान प्राप्त किया जा सके।
  • रोगाणुवाहक-जनित रोगों का प्रतिकार करने में जलवायु परिवर्तन की भूमिका की समझ: जलवायु परिवर्तन और रोगाणुवाहक-जनित रोगों के बीच सहसंबंध, भविष्य के प्रकोपों को समझने और उनकी भविष्यवाणी करने में बहुत महत्वपूर्ण है।

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