भारत में वंचित समूहों के समक्ष व्याप्त मुद्दों का वर्णन : नेल्सन मंडेला

प्रश्न: नीचे नैतिक विचारकों/दार्शनिकों के उद्धरण दिए गए हैं। स्पष्ट कीजिए कि वर्तमान संदर्भ में आपके लिए इनके क्या निहितार्थ हैं:

राष्ट्र का आंकलन इस बात से नहीं किया जाना चाहिए कि वह अपने श्रेष्ठतर नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करता है, बल्कि इस बात से किया जाना चाहिए कि वह अपने निम्नतर नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करता है। – नेल्सन मंडेला।

दृष्टिकोण

  • दिये गए उद्धरण से आप क्या समझते हैं, संक्षेप में व्याख्या कीजिए। 
  • भारत में वंचित समूहों के समक्ष व्याप्त उन मुद्दों का वर्णन कीजिए जिन्हें दूर किए जाने की आवश्यकता है।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

यह उद्धरण समाज में समावेशिता के मूल को प्रकट करता है। किसी देश का आर्थिक रूप से विकास हो सकता है लेकिन उसकी वास्तविक प्रगति तब होती है जब विकास का लाभ केवल उन्हीं लोगों को नहीं मिलता जो इसमें सर्वाधिक योगदान देते हैं, बल्कि समान रूप से उन लोगों को मिलता है जिन्हें उनकी सर्वाधिक आवश्यकता होती है। एक उपनिगमन के रूप में, इसका यह भी अर्थ है कि विधि का शासन सर्वोच्च है तथा यह ‘उच्चतम’ और ‘निम्नतम’ नागरिकों के लिए अलग-अलग नहीं हो सकता है – यह सभी नागरिकों के लिए समान होना चाहिए। यही अनिवार्य रूप से वह तत्व है जिसकी स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माताओं ने भी परिकल्पना की थी अर्थात न्यायसंगत और समतामूलक समाज।

वर्तमान संदर्भ में, यह और भी अधिक प्रासंगिक प्रतीत होता है क्योंकि बढ़ती असमानता ने अवसरों में भारी अंतराल उत्पन्न किया है – जो लोग सबसे निचले पायदान पर हैं उन्हें उस सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर पहुंचने में अधिक कठिनाई हो रही है जिसकी वे आकांक्षा करते हैं। उपर्युक्त को प्राप्त करने के लिए, भारत को इन क्षेत्रों में संपन्न और विपन्न के बीच की खाई को कम करने की आवश्यकता है। समाज के वंचित और सुविधाहीन सदस्यों की चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता है।  इनमें सम्मिलित है: 

  • लगभग 73 मिलियन लोगों को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकालना और अपने सभी नागरिकों को मूलभूत जीवन स्तर उपलब्ध कराना।
  • यह सुनिश्चित करना कि किसी को भी जाति जैसे आरोपणात्मक (ascriptive) कारकों के आधार पर सामाजिक और व्यावसायिक भेदभाव का सामना न करना पड़े।
  • भूमि अधिग्रहण के मामलों में पुनर्वास के लिए भूमि के साथ लोगों (जैसे- किसानों, आदिवासियों) के संबंधों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
  • हाशिए पर स्थित वर्गों जैसे SC, ST, अल्पसंख्यकों की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम बनी हुई है। अल्पपोषण और कुपोषण से पीड़ित बच्चों का अनुपात अधिक है, ऐसे समूहों के बीच स्वास्थ्य, शिक्षा और नौकरियों तक पहुंच निम्नतर है।
  • यह सुनिश्चित करना कि विधि का शासन केवल कागजों पर ही नहीं बल्कि व्यवहार में भी हो। जेलों में हाशिए पर स्थित समुदायों की अधिक संख्या यह दर्शाती है कि साधन संपन्न लोग दूसरों की तुलना में कानून के शिकंजे से आसानी से बाहर निकलने में सक्षम होते हैं।
  • रोजगार में लैंगिक अंतराल को कम करने हेतु महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों में वृद्धि होनी चाहिए और कार्य हेतु अनुकूल परिवेश होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, उन्हें राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है।

इन मुद्दों से समाज में व्याप्त भेदभाव का पता चलता है। भारत की प्रगति को केवल भारतीय अरबपतियों की संख्या, अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में इसके द्वारा की गई प्रगति, इसके अपव्ययी शहरी समुदायों, इसकी सड़कों और राजमार्गों आदि से नहीं नापा जाएगा, बल्कि इस बात से नापा जाएगा कि इस विकास का कितना भाग समाज के सर्वाधिक निचले वर्गों तक पहुंचा है। भारत की विरोधाभासी स्थिति को समाप्त करने की आवश्यकता है जहां निपट गरीबी के साथ संपन्नता का सह-अस्तित्व है और अधिकारों की कमी के साथ विशेषाधिकार का सह-अस्तित्व है। नीति-निर्माताओं का ध्यान विकास योजनाओं, सकारात्मक कार्रवाई, समावेशी विकास पर आधारित नीतियों आदि के माध्यम से इन्हें समाप्त करने पर केंद्रित होना चाहिए। समग्रतः, गरीबी कम करने, संधारणीय विकास को बढ़ावा देने और सुशासन की स्थापना करने की चुनौती का मुकाबला करने हेतु समानता एक पूर्वापेक्षा है।

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