नेपोलियन : विधि इतनी सारगर्भित (संक्षिप्त) होनी चाहिए कि इसे कोट की जेब में रखा जा सके और इसे इतना सरल होना चाहिए कि इसे एक किसान भी समझ सके

प्रश्न: “विधि इतनी सारगर्भित (संक्षिप्त) होनी चाहिए कि इसे कोट की जेब में रखा जा सके और इसे इतना सरल होना चाहिए कि इसे एक किसान भी समझ सके।” चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • इस उद्धरण की प्रासंगिकता को व्यक्त करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए।
  • मुख्य शब्दों पर बल देते हुए कथन के अर्थ पर चर्चा कीजिए।
  • उदाहरणों सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर

यह कथन नेपोलियन द्वारा उद्धृत किया गया था, जिसका द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा शासन में नैतिकता पर जारी रिपोर्ट में भी उल्लेख किया गया है। यह कथन इस तथ्य पर ध्यान केन्द्रित करता है कि विधि को इतना संक्षिप्त और सारगर्भित होना चाहिए जिसे कोई भी व्यक्ति इसे सरलता से समझ सके। इसके अतिरिक्त विधि को जटिलताओं से भी मुक्त होना चाहिए ताकि समाज का निम्नतम वर्ग (इस संदर्भ में किसान) भी इसकी व्याख्या करने में सक्षम हो सके।

उपर्युक्त कथन की प्रासंगिकता निम्नलिखित सन्दर्भो में अधिक हो जाती है:

  • विधिक अधिनियमों के विस्तृत प्रावधान तथा संविधान और विभिन्न सिविल एवं आपराधिक विधियों आदि के निर्माण में प्रयुक्त जटिल भाषा।
  • निर्धन एवं सीमांत वर्गों हेतु अत्यधिक महंगी और अधिवक्ताओं हेतु ‘स्वर्ग’ के रूप में प्रचलित विधिक प्रणाली।
  • क़ानून एवं नीति की मिश्रित विधिशास्त्रीय व्याख्या।
  • कानून में जटिलताएं प्राय: गोपनीयता और सामान्य जन के उत्पीड़न के साथ समाप्त होती हैं।
  • अप्रचलित एवं पुरातन कानूनों की विद्यमानता।

वर्तमान संदर्भ में अप्रासंगिक और विलंब, अवरोधन एवं उत्पीड़न के साधन के रूप में प्रचलित संविधियों एवं विनियमों की पहचान करते हुए विधियों को सारगर्भित एवं सरल बनाने के लिए एक प्रभावी कार्यक्रम को संचालित किया जाना चाहिए। सनसेट (sunset) और समीक्षा शर्तों जैसी प्रारूपण प्रविधियों का व्यवस्थित उपयोग होना चाहिए तथा निरसन संबंधी प्रक्रिया का सरलीकरण किया जाना चाहिए।

एक लोक सेवक के रूप में तथा देश के एक विधि-पालक नागरिक के रूप में यह देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह निर्धनों एवं वंचित समूहों को सहायता एवं सहयोग प्रदान करे। यह सहायता न केवल सरल प्रक्रियाओं एवं विधानों के अंतर्निहित उद्देश्यों को प्रोत्साहित करके बल्कि सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सुभेद्य वर्गों को नि:शुल्क विधिक सहायता (अनुच्छेद 39A तथा विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप) उपलब्ध करवा कर भी की जानी चाहिए।

विधायी प्रक्रियाओं को सरल बनाने हेतु कुछ आवश्यक पहलों को संचालित किया गया है, उदाहरणार्थ:

  • सरकार ने विगत दशक में निरसन और संशोधन अधिनियम, 2017 जैसे साधनों के माध्यम से लगभग 2000 अप्रचलित कानूनों का निरसन किया है।
  • नागरिक समाज संगठन विधियों की व्याख्या करके और उनके हितों के लिए आवाज़ उठाकर जनजातियों एवं निर्धनों वर्गों की विधियों को स्पष्ट रूप से समझने में सहायता कर रहे हैं। उदाहरणार्थ कुछ नागरिक समाज छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के अधिकारों हेतु कार्य कर रहे हैं। एकल खिड़की समाशोधन प्रणालियों के माध्यम से सेवा वितरण को अंतिम बिंदु तक तीव्रता से प्रसारित किया गया है तथा जटिल प्रक्रियाओं के अवरोधों को न्यूनतम किया गया है।

कानूनों में सुधार करने के अतिरिक्त समाज के कमजोर वर्गों को नि:शुल्क विधिक सेवा उपलब्ध कराने तथा विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान हेतु लोक अदालतों का आयोजन करने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) का गठन किया गया है। प्रभावी एवं समयोचित न्याय प्रदान करने हेतु महिला अदालतों और ई-न्यायालयों की भी स्थापना की गई है।

निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि किसी राष्ट्र को ऐसी सारगर्भित एवं सरल विधि के निर्माण हेतु प्रयास करना चाहिए जिसे जन सामान्य सुगमता से समझने में सक्षम हो। यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि विधियों को मौजूदा कानूनों और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के साथ समनुरूपता में तैयार किया जाए। विधियों को आधा-अधूरा न्याय प्रदान करने वाला नहीं होना चाहिए। केवल एक न्यायालय या एक विधिवत नियुक्त प्राधिकारी ही दावेदार पक्षों के विचारों को अभिव्यक्त कर सकते हैं, अतः स्वाभाविक रूप से अधिवक्ताओं की भूमिका आवश्यक हो जाती है। कानूनों के सुदृढ़ता से प्रारूपित न होने की स्थिति में ये अधिवक्ता उनकी व्याख्या मनमाने ढंग से कर सकते हैं।

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