73वें संशोधन अधिनियम : आधारभूत लोकतंत्र का परिचायक

प्रश्न: 73वां संशोधन अधिनियम देश में आधारभूत लोकतांत्रिक संस्थानों के क्रमिक विकास का एक महत्वपूर्ण परिचायक है, जिसमें प्रतिनिधि लोकतंत्र को एक सहभागी लोकतंत्र में परिवर्तित करने की क्षमता है। परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • 73वें संशोधन अधिनियम की आवश्यकता के साथ उत्तर का प्रारंभ कीजिए और यह भी बताइए कि इसे आधारभूत लोकतंत्र का परिचायक क्यों कहा जाता है।
  • चर्चा कीजिए कि यह प्रतिनिधि लोकतंत्र को सहभागी लोकतंत्र में कैसे परिवर्तित कर रहा है।
  • इसकी कुछ कमियों के साथ-साथ आगे की राह का उल्लेख कीजिए।

उत्तर:

73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत शासन के तृतीय स्तर की स्थापना की गयी और पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को संवैधानिक दर्जा प्रदान कर स्थानीय स्वशासन को सुनिश्चित किया गया। इसका लक्ष्य गांधीजी के ग्राम स्वराज के दृष्टिकोण को साकार करना है। यह प्रतिनिधि लोकतंत्र को आधारभूत प्रतिभागी लोकतंत्र में परिवर्तित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जो प्रशासन और निर्णय निर्माण में समुदाय आधारित योगदान है।

पंचायती राज संस्थाओं (PRI) का महत्व

  • प्रतिनिधित्व: 73वें संशोधन द्वारा यह अनिवार्य कर दिया गया कि लोगों के प्रतिनिधियों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप में किया जायेगा।
  • महिला नेतृत्व: 73वें संशोधन द्वारा पंचायतो में महिलाओं के लिए कुल सीटों का एक तिहाई भाग आरक्षित किया गया है। यह आरक्षण न केवल सदस्य-पदों के लिए बल्कि अध्यक्ष-पदों के लिए भी प्रदान किया गया है।
  • समावेशी भागीदारी: ग्रामीण विकास में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों की भागीदारी में वृद्धि हुई है।
  • ग्रामीण विकास: कृषि, ग्रामीण आवासन इत्यादि जैसे राज्य से संबंधी 29 विषयों के हस्तांतरण के साथ, ग्रामीण भारत की नियोजन प्रक्रिया, निर्णय निर्माण, कार्यान्वयन और वितरण प्रणाली की प्रक्रिया में जन-भागीदारी को मान्यता दी गई है।
  • निचले स्तर तक की भागीदारी: सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं को लागू करने में पंचायती राज संस्थाओं की संलग्नता के साथ, अब ग्राम पंचायतों और ग्रामसभा द्वारा गाँवों में किए जाने वाले कार्यो और योजनाओं हेतु निर्धारित धनराशि के उपयोग के संबंध में निर्णय किया जा सकता हैं।
  • राजनीतिक जागरूकता: उत्तरदायित्वों और राजनीतिक जागरूकता की भावना में वृद्धि हुई है। साथ ही, इसके परिणामस्वरूप भू-स्वामियों, साहूकारों और उच्च जाति के लोगों द्वारा किए जाने वाले शोषण में कमी आई है।
  • पुरातन सामाजिक संस्थानों के महत्व में कमी: इसने जाति पंचायतों के महत्व को कमजोर किया है। वर्तमान में भू स्वामियों के पास राजनीतिक शक्ति केवल सीमित रूप में है।
  • वि नौकरशाहीकरण: नौकरशाही का प्रभाव में कमी आयी है।

इस प्रकार, PRI के माध्यम से 73वें संशोधन द्वारा प्रतिनिधि लोकतंत्र को भागीदारी लोकतंत्र में रूपांतरित कर दिया। लेकिन इन स्थानीय निकायों को अपने प्रभावी कार्यसंचालन में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

PRI द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियां

  • समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी: स्थानीय निकायों को आवंटित कार्यों को पूरा करने के लिए इनके पास पूर्णकालिक समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी हैं। अतः, आवश्यक प्रशिक्षण के साथ स्थानीय निकायों के लिए एक अलग कैडर बनाने की आवश्यकता है।
  • कार्यों का अभाव : राज्य, PRI को और अधिक विषयों को हस्तांतरित करने में संकोच कर रहे हैं।
  • धन की कमी: PRI ग्रामीण विकास की परियोजनाओं को लागू करने के लिए राज्य अनुदान पर निर्भर होते हैं जो तृतीय स्तर रूप में उनके स्वतंत्र कार्य को प्रभावित करता है।

समग्र रूप से, 73वें संविधान संशोधन अधिनियम ने स्थानीय स्तर पर सहभागी लोकतंत्र को संस्थागत बनाने में सहायता की है। प्रतिनिधि लोकतंत्र का एक सहभागी लोकतंत्र में वास्तविक रूपांतरण सुनिश्चित करने हेतु जन-जागरूकता और प्रणाली को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है।

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