दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित रंगभेद नीति का विवरण
प्रश्न: दक्षिण अफ्रीका के संदर्भ में रंगभेद नीति के अर्थ की व्याख्या कीजिए। साथ ही, इसे समाप्त करने हेतु किए गए संघर्ष का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
दृष्टिकोण
- दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित रंगभेद नीति का विवरण दीजिए।
- रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष का उल्लेख कीजिए, जिसमें गांधीवादी अहिंसा का प्रभाव, अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की भूमिका, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका इत्यादि सम्मिलित थे।
उत्तर
अफ्रीकी भाषा (Afrikaans) में अपार्थाइड (Apartheid) या रंगभेद’ का शाब्दिक अर्थ ‘अलगाव’ (apartness) या पृथकता से है। हिंदी भाषा में इसका समानार्थी शब्द रंगभेद है। यह 20वीं शताब्दी में दक्षिण अफ्रीका में अल्पसंख्यक श्वेत (white) लोगों के शासन के अंतर्गत स्थानीय दक्षिण अफ़्रीकी एवं अन्य अश्वेत (non-white) आप्रवासियों के विरुद्ध क्रूरतापूर्ण रंगभेदी भेदभाव की राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था को प्रदर्शित करता है।
इसके अंतर्गत निम्नलिखित तत्व सम्मिलित थे:
- नृजातीयता या नस्लीयता के आधार पर लोगों से शारीरिक भेदभाव।
- अंतर-नस्लीय विवाह या संतानोत्पत्ति का निषेध।
- विधिक अधिकारों में भेदभाव; जैसे अश्वेत लोगों के पास अपनी पहचान को प्रमाणित करने संबंधी दस्तावेजों का होना अनिवार्य था, जबकि श्वेत लोगों के लिए यह आवश्यक नहीं था।
इस व्यवस्था को अन्यायपूर्ण माना जाता था अतः इसके विरुद्ध वृहद् स्तर पर संघर्ष प्रारंभ किया गया, जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
- मूलतः रंगभेद के विरुद्ध नागरिक प्रतिरोध का उपयोग सत्याग्रह एवं अहिंसा के गांधीवादी विचारों पर आधारित था।
- वर्ष 1912 में स्थापित अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC) शीघ्र ही देश की 80% गैर-यूरोपीय जनसंख्या के नस्लीय उत्पीड़न का विरोध करने वाली प्रमुख शक्ति के रूप में उभरी।
- संघर्ष के प्रारंभिक चार दशकों के दौरान वे संघर्ष के वैधानिक तरीकों का उपयोग करते थे, परंतु 1950 के दशक के पश्चात उन्होंने अधिक आक्रामक अहिंसक प्रत्यक्ष कार्रवाई का उपयोग करना प्रारंभ कर दिया।
- अपनी अहिंसक गतिविधियों द्वारा वांछनीय परिणाम प्राप्त करने में असमर्थ होने पर हतोत्साहित होकर नेल्सन मंडेला एवं अन्य नेताओं ने सशस्त्र विद्रोह का आह्वान किया।
- विभिन्न मंचों (जैसे कि संयुक्त राष्ट्र) पर रंगभेद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तीव्र आलोचना की गयी।
- अपने शक्तिशाली सुरक्षा बलों, खनिज संपदा और औद्योगिक क्षमता की उपस्थिति के बावजूद रंगभेदी दक्षिण अफ्रीका अपने अश्वेत श्रम बल, दक्षिणी अफ्रीकी पड़ोसी देशों तथा औद्योगीकृत पश्चिमी देशों के साथ स्थापित अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर निर्भर था। इन पक्षकारों द्वारा अपना समर्थन वापस लेने से शासन में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो गई।
अंततः 1992 में दक्षिण अफ्रीका के दो तिहाई श्वेत मतदाताओं ने वार्ता के जरिए देश से अल्पसंख्यक शासन एवं रंगभेद नीति को समाप्त करने को स्वीकृति प्रदान की। इसके पश्चात सम्पूर्ण जनसंख्या की भागीदारी से संपन्न हुए प्रथम स्वतंत्र चुनाव में नेल्सन मंडेला को नव गठित दक्षिण अफ्रीका के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित किया गया।
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