ई-शासन (ई-गवर्नेस) की अवधारणा की संक्षिप्त व्याख्या

प्रश्न:भारत में ई-शासन (ई-गवर्नेस) संबंधी पहलों की सफलता के लिए, डिजिटल विभाजन एक प्रमुख चिंता है जिसे तत्काल दूर किए जाने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • ई-शासन (ई-गवर्नेस) की अवधारणा की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • डिजिटल विभाजन के अर्थ की व्याख्या कीजिए और विभाजन को समाप्त करने के मार्ग में आने वाली चुनौतियों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • डिजिटल विभाजन को समाप्त करने के लिए सरकार द्वारा किए गए कुछ प्रयासों की चर्चा कीजिए।

उत्तर

सरकारी सेवाओं के वितरण हेतु सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई-शासन के रूप में जाना जाता है। सुशासन और समावेशी विकास के विचार को साकार करने के लिए इसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधनों में से एक माना जाता है।

सरकार द्वारा डिजिटल इंडिया मिशन और आधार आधारित भुगतान प्रणाली जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से ई-शासन पर बल दिए जाने के बावजूद संयुक्त राष्ट्र के ई-गवर्नमेंट डेवलपमेंट इंडेक्स, 2018 में भारत की रैंकिंग निम्न (96वीं) बनी हुई है। ई-शासन का लाभ प्राप्त करने के मार्ग में डिजिटल विभाजन भारत के समक्ष सर्वाधिक बड़ी चुनौतियों में से एक है। ई-शासन का लाभ कुछ ही लोगों तक सीमित होने की स्थिति में इसे सफल नहीं माना जा सकता। इस स्थिति में यह अंतत: सामाजिक-आर्थिक अंतर को समाप्त करने के बजाय इसे और अधिक बढ़ा देता है।

‘डिजिटल विभाजन’ (डिजिटल डिवाइड) शब्द नवीन सूचना और संचार उपकरणों (जैसे कंप्यूटर सिस्टम, इंटरनेट इत्यादि) के प्रयोग तक पहुंच एवं इनके लिए आवश्यक संसाधन प्राप्त लोगों तथा इन तक पहुंच एवं संसाधन विहीन लोगों के मध्य के अन्तराल को वर्णित करता है। दिसंबर 2017 में शहरी भारत में इंटरनेट तक 64.84 प्रतिशत की पहुँच की तुलना में ग्रामीण भारत में यह पहुँच 20.26 प्रतिशत ही थी। इसके अतिरिक्त ASER 2017 के अनुसार 63.7% ग्रामीण युवाओं द्वारा कभी भी इंटरनेट का प्रयोग नहीं किया गया था। इसके लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं:

  • एक सुदृढ़ दूरसंचार अवसंरचना, डिजिटल कनेक्टिविटी का अभाव जैसी अवसंरचनात्मक बाधाएं।
  • साक्षरता, भाषा और कौशल संबंधी बाधाएं क्योंकि अधिकांश वेबसाइटें और ऐप अंग्रेजी भाषा में डिज़ाइन किए गए हैं।
  • आर्थिक कठिनाइयाँ जो पहुंच में बाधा उत्पन्न करती हैं।

डिजिटल विभाजन को समाप्त करने के उपाय:

  •  डिजिटल इंडिया मिशन: इसके अंतर्गत नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (NOFN) परियोजना आरम्भ की जा रही है। इसका उद्देश्य दो लाख ग्राम पंचायतों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना है।
  • किसान कॉल सेंटर: इसका आरम्भ कृषक समुदाय को कृषि विस्तार सेवाएं प्रदान करने हेतु किया गया है।
  • भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास (Technology Development for Indian Languages :TDIL): इसे सूचना एवं संचार तकनीक (IT) विभाग द्वारा प्रारंभ किया गया है। इसका उद्देश्य भाषा संबंधी किसी अवरोध के बिना मानव-मशीन अंतरसंबद्धता को सुविधाजनक बनाने हेतु सूचना प्रसंस्करण उपकरणों और तकनीकों का विकास है।
  • आधार आधारित भुगतान प्रणाली: यह एक बैंक आधारित मॉडल है जो आधार प्रमाणीकरण का प्रयोग कर किसी भी बैंक के बिज़नेस कॉरेस्पॉन्डेंट के माध्यम से ऑनलाइन ‘अंतर संचालनीय वित्तीय समावेशन लेनदेन’ की अनुमति प्रदान करता है।
  • उन लोगों की सहायता के लिए जिनकी पहुंच ई-शासन सेवाओं तक नहीं है, स्थानीय स्तर पर कॉमन सर्विस सेंटर अथवा लोकवाणी केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, इनके माध्यम से ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने, विभिन्न प्रकार के प्रमाणपत्र आदि प्राप्त करने में सहायता प्रदान की जाएगी।
  • इंटरनेट तक पहुंच सुनिश्चित करने हेतु लाभार्थियों को सक्षम बनाने के लिए कई राज्यों द्वारा लैपटॉप और टैब का वितरण किया गया है।
  • मोबाइल और ब्रॉडबैंड की क्रांति के साथ भारत ई-शासन में विश्व में अग्रणी स्थान प्राप्त कर सकता है। सरकार के प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (Pradhan Mantri Gramin Digital Saksharta Abhiyan:PMGDISHA ) जैसे कार्यक्रम डिजिटल साक्षरता को बढ़ाने और डिजिटल विभाजन को समाप्त करने में सहायता कर सकते हैं। ऐसे प्रयासों को एक सुदृढ़ डेटा संरक्षण फ्रेमवर्क (न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति द्वारा अनुशंसित) द्वारा समर्थित होना चाहिए। यह फ्रेमवर्क इस प्रकार का होना चाहिए कि यह भारत द्वारा डेटा और सूचना एवं संचार तकनीक (ICT) का लाभ उठाए जाने को संभव बनाते हुए डेटा संरक्षण को सक्षम बनाए।

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