केस स्टडीज : समाज में अराजकता

प्रश्न: एक राज्य अपराधों और अवैध गतिविधियों की उच्च दर के लिए कुख्यात रहा है। अत्यधिक संख्या में आपराधिक घटनाओं तथा कर्मचारियों की कमी से जूझता पुलिस बल, पुलिस के लिए सभी मामलों की तार्किक अंत तक विधिवत जांच करने और उसे जारी रखने को कठिन बना देता है। आपराधिक न्याय प्रणाली भी दबावग्रस्त है और न्याय प्रदान करने में कई वर्ष लग जाते हैं। अपराधियों और राजनेताओं के बीच गठजोड़ को देखते हुए, बाहरी प्रभावों के बिना जांच पड़ताल करना कठिन है। समाज में अराजकता का भाव व्याप्त हो गया है। इस पृष्ठभूमि में, यह देखा गया है कि पुलिस आरोपी अपराधियों को पकड़ने और नियत प्रक्रिया का पालन करने के बजाए अधिक संख्या में मुठभेड़ों का सहारा ले रही है। लोकप्रिय जन भावना भी इस पद्धति का समर्थन कर रही है और परिणामस्वरूप अपराध में सामान्य रूप से कमी आने की प्रवृत्ति रही है। इस परिदृश्य को देखते हुए, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(a) विभिन्न नैतिक दृष्टिकोणों से इस मुद्दे का विश्लेषण कीजिए।

(b) ऐसी रणनीति के पुलिस प्रशासन और समाज पर क्या प्रभाव हो सकते हैं?

(c) राज्य के मुख्यमंत्री के एक सलाहकार के रूप में, कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार करने के लिए आप क्या सलाह देंगे?

दृष्टिकोण:

  • प्रश्न में निहित समस्या का संक्षिप्त विवरण दीजिए और केस स्टडी का विभिन्न दृष्टिकोणों से मूल्यांकन कीजिए।
  • पुलिस प्रशासन एवं समाज पर पड़ने वाले प्रभावों को रेखांकित कीजिए।
  • सम्बन्धित राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार करने के लिए कुछ व्यावहारिक एवं सटीक उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तर:

गवर्नेस (शासन) परिणामों की मांग करता है। प्रायः ऐसा आरोप लगाया जाता है कि नियमों एवं प्रक्रियाओं की जटिल श्रृंखला उचित परिणामों को प्राप्त करने में कार्यकारिणी को अक्षम बना देती है। कानून और व्यवस्था बनाए रखना शासन का एक महत्वपूर्ण कार्य है। कानून और व्यवस्था के बिगड़ने से सामाजिक भावनाओं को क्षति पहुँचती है तथा देश की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित होती है। समाज को बेहतर परिणाम प्रदर्शित करने के संदर्भ में बेहतर कानून और व्यवस्था की स्थिति के साथ राज्य तथा संबद्ध एजेंसियां सरल एवं त्वरित साधनों का सहारा ले सकती हैं।

आत्मरक्षा में फायरिंग करना इत्यादि कृत्यों द्वारा कानून का दुरुपयोग कर पुलिस कथित अपराधियों के विरुद्ध इस प्रकार के प्राणघातक (lethal) साधनों का उपयोग कर सकती है। हालांकि, न्यायेतर साधनों के माध्यम से कानून एवं व्यवस्था की पुनर्स्थापना कई नैतिक मुद्दों को उठाती है।

(a) न्याय के परिप्रेक्ष्य से एक दोषी व्यक्ति को सुनवाई का अधिकार प्राप्त है तथा उसके द्वारा किए गए अपराध के लिए उसे देश के कानून में संहिताबद्ध किए गए प्रावधान से अधिक दंड नहीं दिया जा सकता है। इस प्रकार न्यायेतर हत्याएं व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।

  • यह सतत रूप से सामाजिक प्रसन्नता में वृद्धि नहीं करता है। इसके परिणामस्वरूप समाज में कानूनहीनता, कई निर्दोष व्यक्तियों की अवैध हत्याएं तथा प्रशासनिक तंत्र का क्षतिग्रस्त होना इत्यादि जैसी स्थितियां दीर्घावधि तक विद्यमान हो सकती हैं। अतः इसे उपयोगितावादी परिप्रेक्ष्य से अनैतिक माना जाता है।
  • कर्तव्य-परकतावादी (डिऑन्टोलॉजिकल) परिप्रेक्ष्य से, एक नैतिक कार्य वह होता है, जो सार्वभौमिक विधि के रूप में स्थापित हो सके तथा जिसे सभी समान मामलों में लागू किया जा सके। न्यायेतर हत्याओं को सार्वभौमिक नहीं माना जा सकता है क्योंकि यह लोकतंत्र के मूलभूत मूल्यों का उल्लंघन करती है।

(b) पुलिस प्रशासन पर प्रभाव- एक सरल साधन के रूप में न्यायेतर हत्याओं के पुलिस प्रशासन पर कुछ सकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं। यह पुलिस प्रशासन को लचीलापन प्रदान करता है, अपराधियों के मध्य भय की स्थिति उत्पन्न करता है तथा अपराध की दर को कम करता है। हालांकि दीर्घकाल में इसके निम्नलिखित नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं:

  • पुलिस जनता के प्रति अमानवीय, क्रूर तथा असंवेदनशील बन सकती है।
  • इससे पुलिस व्यवस्था पर लोगों के विश्वास को क्षति पहुँच सकती है तथा यह उन्हें पुलिस की गतिविधियों के प्रति संदेहास्पद बना सकती है।
  • इससे पुलिस प्रशासन में अन्तर्निहित अनुशासन भी क्षतिग्रस्त हो सकता है।
  • यह अधिकारियों को भ्रष्ट प्रवृत्तियों में संलग्न होने हेतु बढ़ावा दे सकती है, जिससे वे अपने कर्त्तव्यों का हनन कर सकते हैं।
  • इसके परिणामस्वरूप पुलिस अधिकारियों में दुराचार की प्रवृत्ति विकसित हो सकती है।

समाज पर प्रभाव- प्रत्यक्षतः इसे अपराध के विरुद्ध एक प्रमुख कार्यवाही माना जा सकता है। इसके फलस्वरूप समाज में होने वाले अपराधों में कमी आएगी, अपराध पीड़ितों को न्याय मिलेगा, समाज में रक्षा एवं सुरक्षा की भावना उत्पन्न होगी। परंतु इसके समाज पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं:

  • अधिकांश मामलों में देखा जाता है कि फर्जी एनकाउंटर में मारे जाने वाले व्यक्ति अल्पसंख्यक या समाज के सर्वाधिक वंचित एवं पिछड़े वर्ग से संबद्ध होते हैं। अतः इस प्रकार की रणनीति सामाजिक संरचना को खंडित कर सकती है।
  • यह लोगों के मध्य मनोवैज्ञानिक भय उत्पन्न कर सकता है।
  • यह न्यायिक व्यवस्था एवं अंततः लोकतंत्र में कायम लोगों के विश्वास को हानि पहुंचा सकता है।
  • यह समाज में हिंसा की संस्कृति का सृजन कर सकता है।

(c) मुख्यमंत्री के सलाहकार के रूप में मैं उन्हें राज्य में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति में सुधार करने हेतु निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत करूँगा:

  • पुलिस के अन्वेषण तथा कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के कार्यों को पृथक किया जाना चाहिए।
  • सभी स्तरों पर जवाबदेहिता की पहचान करने हेतु उपाय करना, इसके अतिरिक्त त्वरित रूप से अपेक्षित एवं उचित निर्णयन हेतु स्वतंत्रता प्रदान करना।
  • प्रकाश सिंह वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा पुलिस सुधारों हेतु दिए गए निर्देशों (विशिष्टतः वह सुधार जो पुलिस को अनावश्यक राजनीतिक हस्तक्षेप से संरक्षण प्रदान करता है) का कार्यान्वयन करना।
  • पुलिस एवं न्यायिक सुधारों हेतु अधिकाधिक धन का आबंटन करना।
  • कार्यबल की कमी से जूझ रहे पुलिस प्रशासन में भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ाना।
  • सभी उपकरणों, सेवा शर्तों तथा प्रशिक्षण का आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए ताकि आपराधिक अन्वेषण को पेशेवर एवं समयबद्ध तरीके से किया जा सके।
  • पुलिस को राजनीतिक-आपराधिक गठजोड़ से दूर करने हेतु कर्मियों के स्थानान्तरण, नियुक्ति तथा पदोन्नति की प्रक्रिया को उचित, पारदर्शी एवं गैर-पक्षपाती तरीके से संपन्न किया जाना।
  • राज्य को आर्थिक विकास एवं रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिससे व्युत्पन्न समृद्धि के कारण दीर्घावधि में अपराधों को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।

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