भारत में बच्चों के व्यवहार संबंधी मुद्दों और आत्महत्या के बढ़ते मामलों का कारण

प्रश्न: बच्चों के व्यवहार संबंधी मुद्दों और आत्महत्या के बढ़ते मामलों के कारण मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने में शिक्षकों और माता-पिता को एक सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए। साथ ही, इस संबंध में भावनात्मक बुद्धिमता (प्रज्ञा)के महत्व की व्याख्या कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में बच्चों के व्यवहार संबंधी मुद्दों और आत्महत्या के बढ़ते मामलों का कारण बताइए।
  • बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने में शिक्षकों और माता-पिता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  • इस संबंध में भावनात्मक बुद्धिमत्ता (प्रज्ञा) के महत्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

NCRB के आंकड़ों के अनुसार 2011-2015 के मध्य भारत में लगभग 40,000 छात्रों ने आत्महत्या की।

इस स्थिति के पीछे अनेक कारण उत्तरदायी हैं जैसे:

  • शिक्षा एवं रोजगार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा।
  • माता-पिता और समाज द्वारा निर्धारित अवास्तविक (जिन्हें पूरा करना कठिन हो) लक्ष्य।
  • बच्चों द्वारा उन तकनीकी एप्लीकेशनों का प्रयोग करना जो उनके लिए उपयुक्त नहीं हैं।
  • परिवार से पर्याप्त मनोवैज्ञानिक समर्थन न मिलना।
  • मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी पेशेवरों/परामर्शदाताओं की कमी/अनुपलब्धता के साथ ही उन तक पहुंच का अभाव।
  • साथी मित्रों द्वारा शारीरिक रंग-रूप या आकार का मज़ाक उड़ाना।
  • सोशल मीडिया के जाल जैसे ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’, ट्रोल इत्यादि।

इन कारणों से यह आवश्यक हो गया है कि बड़े लोग जैसे कि माता-पिता एवं शिक्षक बच्चों पर अपेक्षाकृत अधिक ध्यान दें ताकि बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जा सके। इस संदर्भ में माता-पिता और शिक्षकों द्वारा निम्नलिखित भूमिकाएं निभायी जानी चाहिए:

  • परीक्षा, रोजगार और अन्य व्यक्तिगत परेशानियों के संदर्भ में दबावों का सामना करने हेतु बच्चों की सहायता के लिए पर्याप्त मनोवैज्ञानिक समर्थन प्रदान करना।  बच्चों को यह सिखाना कि वे अपनी भावनाओं को छुपायें नहीं बल्कि उन्हें सही ढंग से व्यक्त करें।
  • करियर विकल्प के सम्बन्ध में समाज/माता-पिता की इच्छा के बजाय नियमित योग्यता परीक्षण के माध्यम से करियर विकल्प का निर्धारण करना।
  • भविष्य में यह बच्चे के एक ऐसे संतुष्ट व्यक्ति में रूपांतरण को सुनिश्चित करेगा जिसे अपना कार्य पसंद हो।
  • घर और शैक्षणिक संस्थानों में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बल देना। बच्चों द्वारा सोशल मीडिया के प्रयोग की निगरानी करना।
  • बच्चों को अलगाव से बचाने हेतु सामूहिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करना।
  • किशोरवय बच्चों से उनके मित्र की तरह व्यवहार करना और परिवार के विचार-विमर्श में उनकी राय को महत्व देना।

इस संबंध में भावनात्मक बुद्धिमत्ता (EI) का महत्व:

  • भावनात्मक बुद्धिमत्ता (El) तनाव से निजात पाने, प्रभावी ढंग से संवाद स्थापित करने, दूसरों के साथ सहानुभूति रखने, चुनौतियों से निपटने, असामाजिक व्यवहार में कमी लाने और विवादों को कम करने के लिए किसी व्यक्ति की स्वयं की भावनाओं के साथ-साथ अन्य व्यक्ति की भावनाओं को सकारात्मक ढंग से पहचानने, उनका प्रयोग करने, उन्हें समझने और प्रबंधित करने की क्षमता होती है।
  • कुछ अध्ययन यह दर्शाते हैं कि EI छात्रों के अकादमिक प्रदर्शन, उन्हें जोखिमपूर्ण व्यवहार से दूर रखने और उनके जीवन की सफलता से दृढ़तापूर्वक जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त यह स्व-जागरुकता, स्व-विनियमन, इष्टतम निर्णय निर्माण, सक्रिय श्रवण (active listening) आदि में सहायक होता है। EI दबाव का सामना करने के लिए छात्रों को एक सुदृढ़ मानसिक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक हो सकता है।
  • इस प्रकार बच्चों को EI कौशल से सुसज्जित करने के साथ -साथ अभिभावकों और शिक्षकों का मित्रवत व्यवहार, हर तरफ से बढ़ते दबाव के इस युग में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के विकास में सहायक हो सकता है।

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