भारत में लॉबिंग को वैध बनाने के प्रश्न

प्रश्न: भारत में लॉबिंग को लेकर विद्यमान अस्पष्टता देश में व्याप्त भ्रष्टाचार से और भी गंभीर हो जाती है। इस सन्दर्भ में, भारत में लॉबिंग को वैध बनाने के प्रश्न का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • स्पष्ट कीजिए कि आप लॉबिंग से क्या समझते हैं।
  • भारत जैसे लोकतंत्र में लॉबिंग के प्रभाव का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  • वर्तमान ढांचे और भारत में लॉबिंग को वैध बनाने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।

उत्तरः

लॉबिंग एक संवाद प्रक्रिया है जिसका उपयोग समान हितों वाले समूह के सदस्यों द्वारा किया जाता है। यह मुख्य रूप से सरकारी नीति प्रक्रिया को प्रभावित करने और नागरिकों/निजी संस्थाओं के साथ-साथ निर्णय निर्माताओं के मध्य एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करती है।

किसी भी राजनीतिक व्यवस्था में किसी न किसी रूप में लॉबिंग अपरिहार्य है। व्यापक रूप से प्रचलित होने के बावजूद भी, भारत में लॉबिंग के प्रकटीकरण के मामले में कोई पारदर्शिता नहीं है। भारत में लॉबिस्टों की गतिविधियों को विनियमित करने के लिए कोई कानून नहीं है, लेकिन यह गैर-कानूनी भी नहीं है। स्टिंग ऑपरेशनों और खुलासों के ज़रिए ऐसे मामलों को सार्वजनिक किया जाता है। 2010 के नीरा राडिया प्रकरण और मल्टी-ब्रांड रिटेल में FDI के लिए वॉलमार्ट द्वारा लॉबिंग किये जाने के आरोप इसके उदाहरण हैं।

भारत में जन सामान्य द्वारा लॉबिस्टों को सामान्यतः बड़े व्यावसायिक घरानों के प्रतिनिधियों के रूप में देखा जाता है जो अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए भ्रष्ट आचरण में लिप्त होते हैं। सामान्यतः इन्हें विशिष्ट हितों के पक्ष में सार्वजनिक हित को जोखिम में डालने वाला समझा जाता है। हालाँकि, पक्ष-समर्थन समूह (एडवोकेसी ग्रुप) जैसे मज़दूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) और महिला संगठन भी लॉबिस्ट ही हैं।

भारत में लॉबिंग को वैध बनाने के पक्ष में कुछ पहलू निम्नलिखित हैं:

  • भारत में इस सम्बन्ध में विधि निर्माण लॉबिंग और भारत में इसके अनुप्रयोग की स्पष्ट परिभाषा प्रदान करेगा।
  • इस सम्बन्ध में बनाये गए विनियम नीति निर्माताओं तक पहुंच को प्रतिबंधित करने के स्थान पर नीति निर्धारण प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ाने के एक उपकरण के रूप में कार्य करते हैं।
  • अमेरिका, कनाडा आदि देशों ने लॉबिंग को नागरिकों का वैध अधिकार माना है।
  • अमेरिका में फेडरल रेगुलेशन ऑफ लॉबिंग एक्ट, 1946 जैसे कानूनों के अंतर्गत लॉबिस्टों को अपने खर्च को दर्ज करने और रिपोर्ट करने की आवश्यकता होती है। यह हित समूहों को केवल वैध तरीकों से विधायी प्रक्रिया में संलग्न होने के लिए विवश करता है।

हालाँकि, लॉबिंग को वैध बनाने के संदर्भ में कुछ चिंताएँ भी हैं, जो निम्नलिखित हैं:

  • लॉबिंग के वैध हो जाने के बाद, अधिक संपत्ति वाले व्यवसायी और समूह आसानी से प्रणाली में हेरफेर करने में सक्षम होंगे और संसाधनों की कमी वाले लोग अपनी आवाज नहीं उठा पाएंगे।
  • कुछ लॉबिस्ट अत्यधिक शक्तिशाली हो सकते हैं तथा वे सार्वजनिक नीति पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में सिविल सोसाइटी द्वारा बार-बार मांग किये जाने के बावजूद, राष्ट्रीय राइफल एसोसिएशन (NRA) के दबाव के कारण बंदूक सम्बन्धी कानूनों (gun laws) को कठोर नहीं किया जा रहा है।

भारत में, मंत्रियों और वरिष्ठ सिविल सेवकों के समक्ष गहन ब्रीफिंग और प्रस्तुतियों के रूप में कॉर्पोरेट लॉबिंग का विस्तार हो रहा है। हालाँकि लॉबिंग गतिविधियों का विनियमन राजनीतिक भ्रष्टाचार और नीतियों को प्रभावित करने वाले निहित स्वार्थों को पूर्णतः रोक नहीं सकता है, किन्तु नीति निर्धारण प्रक्रिया में पारदर्शिता और फलस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक विचारविमर्श कुछ सीमा तक लॉबिंग को विनियमित करने के मामले को सही ठहरा सकती है।

वस्तुतः सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में यह अनुभव किया जाना चाहिए कि भारतीय लोकतंत्र पर्याप्त परिपक्व हो चुका है और लॉबिंग को नीति निर्धारण प्रक्रिया के एक अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता है। इसे पेशेवर रूप से प्रबंधित किया जाना चाहिए तथा साथ ही इस सम्बन्ध में आवश्यक सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए।

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