फास्ट ट्रैक न्यायालय : फास्ट ट्रैक न्यायालयों के कार्यान्वयन के समक्ष विद्यमान चुनौतियां

प्रश्न: दागी विधायकों के प्रकरणों से निपटने के लिए फास्ट ट्रैक न्यायालयों की स्थापना के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को कार्यान्वित करने में क्या चुनौतियाँ हैं? परीक्षण कीजिए कि क्या ऐसा कोई कदम राजनीति के अपराधीकरण की समस्या से निपटने के लिए एक प्रभावी रणनीति हो सकता है।

दृष्टिकोण

  • दागी विधायकों के प्रकरणों से निपटने के लिए प्रस्तावित फास्ट ट्रैक न्यायालयों की योजना का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • न्यायालयों की स्थापना के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के कार्यान्वयन के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
  • इस तथ्य का मूल्यांकन कीजिए कि क्या राजनीति के अपराधीकरण की समस्या से निपटने के लिए यह एक प्रभावी रणनीति है।

उत्तर

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विधि निर्माताओं (सांसदों, विधायकों) से संबंधी अभियोजन हेतु विशेष न्यायालय स्थापित करने व इनसे संबंधित प्रकरणों का शीघ्रता से निपटारा करने के लिए दिए गये निर्देशों के पश्चात, केंद्र सरकार ने एक वर्ष की अवधि के लिए 12 फास्ट ट्रैक न्यायालयों के गठन की योजना बनाई है। ताकि विधि निर्माताओं से संबंधित लंबित प्रकरणों का त्वरित रूप से निपटारा किया जा सके।

फास्ट ट्रैक न्यायालयों के समक्ष चुनौतियाँ

सर्वोच्च न्यायालय (SC) द्वारा फास्ट ट्रैक न्यायालयों के गठन को स्वीकृति प्रदान की गयी है। इसके अतिरिक्त SC ने कहा कि वर्तमान चरण में केंद्र की योजना अल्पविकसित और अस्थायी उपाय है, जिसे भविष्य में परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित किए जाने की आवश्यकता होगी। फास्ट ट्रैक न्यायालयों को निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ेगा:

  • लंबित प्रकरणों के कारण मौजूदा कार्यभार : वर्तमान में देश की न्यायपालिका में लगभग तीन करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिसमें से लगभग 40 लाख मामले केवल उच्च न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय में ही लंबित हैं। यदि फास्ट ट्रैक न्यायालयों द्वारा समयबद्ध ढंग से मामलों को नहीं निपटाया गया, तो न्यायपालिका के इस कार्यभार में और अधिक वृद्धि होगी।
  • फास्ट ट्रैक न्यायालयों के संबंध में पूर्व का अनुभव: पहले से विद्यमान फास्ट ट्रैक न्यायालय बजट संबंधी समस्याओं व कर्मचारियों की कमी के कारण मामलों के समयबद्ध निपटारे में सक्षम सिद्ध नहीं हुए हैं।
  • न्यायिक रिक्तियां: नए न्यायालयों की स्थापना से पूर्व, विद्यमान न्यायालयों की सभी श्रेणियों में मौजूद रिक्तियों को भरे जाने की आवश्यकता है।
  • सरकारी अधिवक्ताओं की कमी: ऐसे भी उदाहरण विद्यमान हैं जिनमें एक सरकारी अधिवक्ता को एक ही समय में दो या इससे अधिक अलग-अलग मामलों में एक से अधिक न्यायालयों में सुनवाई हेतु सूचीबद्ध किया गया हो। अत: और अधिक सरकारी अधिवक्ताओं को नियुक्त किए जाने की आवश्यकता है।
  • अतिरिक्त वित्त की आवश्यकता: ये न्यायालय सरकारी कोष पर पड़ने वाले भार में वृद्धि करेंगे और वित्त की उपलब्धता के लिए राज्यों पर भी निर्भर रहेंगे।
  • समेकन और समन्वय संबंधी मुद्दे: योजना के अनुसार, एक फास्ट ट्रैक न्यायालय का न्यायाधिकार क्षेत्र अनेक राज्यों में लंबित मामलों तक विस्तृत होगा, जिससे समन्वय में समस्या उत्पन्न होगी।

तथापि, यह कदम राजनीति के अपराधीकरण की समस्या से निपटने के लिए निम्नलिखित कारणों से प्रभावी हो सकता है:

  • यह योजना कानूनी प्रणाली की उन कमियों को समाप्त करने में सहायक हो सकती है जिसके कारण राजनेताओं को अपने प्रकरणों की सुनवाई अगली तारीख पर टालने व कानूनी प्रक्रिया को विलंबित करवाने में सफलता मिलती है।
  • यह दागी विधायकों के विरुद्ध प्रकरणों के समयबद्ध ढंग से त्वरित निपटान में सहायक होगी।
  • इसके माध्यम से जनता का प्रतिनिधित्व एवं उनके लिए नीतियों का निर्माण करके जनहित में कार्य करने वाले सांसदों और विधायकों से संबंधित प्रकरणों को शीघ्रता से निपटाने की एक भावना उत्पन्न होगी।

चुनाव आयोग द्वारा यह कहते हुए इस विचार का समर्थन किया गया कि ‘यह कदम भारतीय राजनीति को स्वच्छ बनाने के लिए एक दूरगामी कदम सिद्ध होगा। प्रस्तावित योजना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए, यह आवश्यक होगा कि प्रभावी जाँच प्रक्रिया के साथ-साथ न्यायपालिका से संबद्ध संस्थान प्रभावी रूप से सहयोग एवं समन्वय करें। यह नि:संदेह राजनीति को अपराधमुक्त करने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

Read More 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.