अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के परिप्रेक्ष्य में नीतिशास्त्र
प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के परिप्रेक्ष्य में नीतिशास्त्र में 21वीं सदी की कूटनीतिक चुनौतियों से निपटने का सामर्थ्य है। परीक्षण कीजिए।
दृष्टिकोण
- स्पष्ट कीजिए कि किस प्रकार नीतिशास्त्र कूटनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- सूचीबद्ध कीजिए कि किस प्रकार नीतिशास्त्र अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में विद्यमान चुनौतियों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।
- भारतीय विदेश नीति एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के परिप्रेक्ष्य में उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
राज्यों द्वारा अपने कथित राष्ट्रीय हित हेतु कार्य किया जाता है। तर्कसंगत अभिकर्ताओं के रूप में उनके समक्ष सदैव कई विकल्प मौजूद रहते हैं तथा सिद्धांतों और मूल्यों का चयन संबंधित अभिकर्ता की स्वयं की इच्छा पर निर्भर करता है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के अंतर्गत नीतिशास्त्र (नैतिकता) वर्तमान एवं भावी अंतर्राष्ट्रीय प्रणालियों की निष्पक्षता और समानता से संबंधित होती है।
वर्तमान समय में विश्व द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं जैसे जलवायु परिवर्तन, असमानता, वैश्वीकरण एवं इसके समक्ष उपस्थित प्रतिरोध, साझे संसाधनों का प्रशासन (गवर्नेस ऑफ़ कॉमन्स), प्रवास और शरणार्थी, परमाणु अस्त्रों का संचयन, आतंकवाद एवं इसमें राज्य और गैर-राज्य अभिकर्ताओं की संलग्नता इत्यादि के सन्दर्भ में नैतिकता द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया गया है।
नीतिशास्त्र द्वारा 21वीं सदी की कूटनीतिक चुनौतियों का सामना निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है:
- नैतिक कूटनीति: वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के अंतर्गत नैतिक कूटनीति में सभी अभिकर्ताओं जैसे राज्य प्राधिकारियों तथा मानवाधिकार, मानवीय गरिमा, स्वतंत्रता और न्याय के सन्दर्भ में संवेदनशील प्रत्येक नागरिक के लिए कोई कोई न कोई भूमिका है। इसलिए किसी सिविल सेवक के आचरण हेतु, विशेषकर विदेश नीति (बहुपक्षीय एवं द्विपक्षीय संबंधों से संबंधित) के संदर्भ में, नैतिक कूटनीति की अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उदाहरणार्थ: गुजराल सिद्धांत (भारत के छोटे पड़ोसी देशों के प्रति संबंधों से संबंधित) इसी पर आधारित है, चीन के साथ पंचशील सिद्धांत भी नैतिक कूटनीति का ही एक परिणाम है।
- सॉफ्ट पावर: यह प्रमुख रूप से आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभावों का उपयोग करते हुए अंतर्राष्ट्रीय संबंधों हेतु एक प्रभावी उपागम है। इस प्रकार के प्रभाव तब तक संभव नहीं हो पाएंगे, जब तक कि विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय अभिकर्ता अपने कृत्यों में नैतिक परिलक्षित न हों। उदाहरण:
- विश्व के कई देशों में जनसामान्य द्वारा चीनी निवेश के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं, क्योंकि लोगों द्वारा चीन के निवेश और उसकी परियोजना संबंधी पद्धतियों को अनैतिक और शोषणकारी माना जाता है।
- 2015 में आए भूकंप के पश्चात नेपाल को प्रदान की जानी वाली सहायता
- सेशेल्स, मेडागास्कर एवं अन्य द्वीपीय देशों की ब्लू इकोनॉमी में निवेश करना।
- सार्वजनिक या लोक कूटनीति: ट्रैक II, III और अन्य ट्रैक कूटनीतियों को नीतिपरक एवं नैतिक जुड़ाव की आवश्यकता होती है। इसके बिना पीपल टू पीपल संपर्क स्थापित करना संभव नहीं है। इसके उदाहरणों में अमन की आशा, नीमराना डायलॉग इत्यादि जैसी पहलें शामिल हैं।
- वैश्विक कॉमन्स संबंधी प्रशासन में: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा वैश्विक संसाधनों को साझा किया जाता है तथा उनका अनुरक्षण एवं संरक्षण किया जाता है। यह कार्य समग्र रूप से किसी एक देश द्वारा नहीं किया जा सकता है। जैसे कि जब तक अंतर्राष्ट्रीय अभिकर्ताओं द्वारा नैतिक आचरण को नहीं अपनाया जाएगा तब तक इंटेंडेड डिटरमाइंड नेशनल टारगेट्स की न तो पूर्ति की जा सकेगी और न ही जलवायु परिवर्तन अभिशासन को सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया जा सकेगा।
- आतंकवाद, उपनिवेशवाद जैसी सामाजिक कुरीतियों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, इबोला जैसी सीमा-पारीय महामारियों, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटना (जो विभिन्न देशों में विनाश उत्पन्न करती हैं) इत्यादि के लिए राष्ट्र राज्यों द्वारा नैतिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है।
हालांकि यथार्थवादी दावा करते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति केवल ‘दुर्बल पर प्रबल के प्रभुत्व’ तक ही सीमित है, परन्तु फिर भी सफल कूटनीति अंतर्राष्ट्रीय अभिकर्ताओं, प्रणालियों एवं जनसामान्य की नैतिक प्रतिबद्धता पर अत्यधिक सशक्त रूप से निर्भर करती है।
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