केस स्टडीज-लिंगानुपात में कमी किस प्रकार नैतिक मुद्दों को समाविष्ट करती है

प्रश्न: लिगानुपात में निरंतर गिरावट यह संकेत देती है कि अर्थव्यवस्था एवं साक्षरता दरों में उल्लेखनीय सुधार के परिणामस्वरूप भी इस सूचकांक पर कोई प्रभाव पड़ता प्रतीत नहीं हो रहा है। वास्तव में, नई प्रौद्योगिकी की उपलब्धता और शहरी समृद्ध एवं शिक्षित लोगों तक इसकी आसान पहुँच ने इस प्रवृति को और बिगाड़ा है तथा भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को क्षति पहुंचाई है।

(a) व्याख्या कीजिए की क्यों इस परिघटना को मात्र एक चिकित्सीय या विधिक मामला नहीं समझा जाना चाहिए और इसमें समाविष्ट नैतिक मुद्दों पर अधिकाधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

(b) घटते लिगानुपात कि समस्या से निपटने हेतु कुछ सुझाव दीजिए।

(c) गर्भपात का अधिकार बनाम कन्या भ्रूण हत्या निवारण में समाविष्ट नैतिक दुविधा पर चर्चा कीजिए। इसका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है?

दृष्टिकोण

  • केस स्टडी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • दी गई केस स्टडी में शामिल नैतिक मूल्यों और हितधारकों का वर्णन कीजिए।
  • व्याख्या कीजिए कि क्यों इस परिघटना को मात्र एक चिकित्सीय या विधिक मामला नहीं समझा जाना चाहिए।
  • व्याख्या कीजिए कि लिंगानुपात में कमी किस प्रकार नैतिक मुद्दों को समाविष्ट करती है।
  • समस्या से निपटने हेतु कुछ सुझाव दीजिए।
  • गर्भपात का अधिकार बनाम कन्या भ्रूण हत्या निवारण में समाविष्ट नैतिक दुविधा पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

जनसंख्या के एक वृहद् समूह की जैविक संभाव्यता से ज्ञात होता है कि बाल जनसंख्या में बालक और बालिकों का वितरण उचित रूप से सामान होना चाहिए। हालांकि, निरंतर घटता लिंगानुपात महिलाओं के प्रति प्रतिकूल लिंगानुपात को बनाए रखने में मानवीय हस्तक्षेप को इंगित करता है। प्रौद्योगिकी के उपयोग ने इस स्थिति को और अधिक खराब करने में सहायता की है। कन्या भ्रूण हत्या वास्तव में देवी की पूजा करने वाले समाज पर एक कलंक है। उपर्युक्त केस स्टडी में इस मामले पर प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार शहरी समृद्ध एवं शिक्षित लोग चयनित लिंग गर्भपात के लिए प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग कर रहे हैं और लिंगानुपात को कम करने तथा समाज में महिलाओं की स्थिति को क्षति पहुँचाने में योगदान कर रहें हैं।

यह स्थिति पितृसत्तात्मक मानसिकता को दर्शाती है और इसमें अजन्मी बालिका शिशु, माता-पिता, सरकार और व्यापक रूप में समाज को हितधारकों के रूप में शामिल होते हैं।

(a) इस परिघटना को सामान्य रूप से चिकित्सीय या विधिक मामला के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि यह न केवल मातृ मृत्यु दर (जिसमें नीमहकीम द्वारा की गई प्रक्रियाओं के कारण वृद्धि होती है) बल्कि सरकार की प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक एक्ट जैसे कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन की विफलता से संबंधित है। यह निम्नलिखित कारणों से नैतिक चिंता का विषय

  • प्रभावित महिलाओं में से अधिकांश को वास्तव में इस तरह के गर्भपात के लिए बाध्य होना पड़ता है जिससे उनके जीवन के अधिकार और चयन के अधिकार का हनन होता है।
  • बालिका शिशु की माता को उस बालिका के जन्म और परिवार के दुखों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। उसे घृणा कि दृष्टि से देखा जाता है और प्रताड़ित किया जाता है। यहां तक कि परिवार की समृद्धि भी बालिका शिशु के प्रति अभिवृति में परिवर्तन नहीं लाती है जो समाज में लिंग संबंधी पूर्वाग्रह को प्रतिबिंबित करता है।
  • समाज में घटता लिंग अनुपात बलात्कार जैसे समाज विरोधी और हिंसक व्यवहार को जन्म देता है जो विवाह की योग्यता और पारिवारिक संभावनाओं के अभाव तक सीमित नहीं है। जिससे, महिलाओं के प्रति सम्मान के भाव में कमी होती है।
  • सेक्स वर्कर्स की मांग में होने वाली संभावित वृद्धि पुरुषों की यौन इच्छाओं के संदर्भ में मानव तस्करी के साथ-साथ महिलाओं के वस्तुकरण एवं व्यावसायीकरण में भी वृद्धि कर सकती है।
  • प्रौद्योगिकी जो मानवता के कल्याण के लिए है, उसका उपयोग किसी अजन्मे बच्चों को उसके जीवन के अधिकार से वंचित करने के लिए किया जा रहा है।
  • यह समाज में महिलाओं के योगदान को मान्यता न प्रदान करने का सूचक है। महिलाओं के कार्य की नॉन-मोनिस्टिक प्रकृति इसके लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण है।

(b) घटते लिंगानुपात की समस्या से निपटने के लिए सुझाव: 

  • इन मामलों के निपटान के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट सहित कन्या भ्रूण हत्या और दहेज प्रथा पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन।
  • जन जागरूकता अभियानों के साथ-साथ बालिकाओं के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा द्वारा लोगों को संवेदनशील बनाना।
  • गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर।
  • विशिष्ट व्यवसायों में महिलाओं के प्रति अभिवृति परिवर्तन करने के लिए अस्थायी साधन के रूप में आरक्षण की व्यवस्था करना।
  • जन सामान्य में लैंगिक समानता की भावना में वृद्धि हेतु स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देना।

कन्या भ्रूण हत्या केवल एक सामाजिक मुद्दा होने की बजाय राजनीतिक, आर्थिक और सुधारवादी मुद्दे के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाएं इस दिशा में एक सकारात्मक पहल है।

(c) भारत में, कानूनी रूप से, बारह सप्ताह से कम अवधि के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति है। इस अवधि को बीस सप्ताह तक बढ़ाया जा सकता है यदि दो चिकित्सक यह प्रमाणित करें कि या तो माता का जीवन खतरे में है या भ्रूण गंभीर रूप से विकलांग है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित नैतिक दुविधाएं हैं:

  • यदि माता का जीवन खतरे में है, तो गर्भावस्था को समाप्त करने पर कोई समय सीमा नहीं होनी चाहिए (सुप्रीम कोर्ट का निर्णय)। लेकिन फिर, यह लिंग निर्धारण और परिणामस्वरूप चयनित लिंग गर्भपात में वृद्धि करेगा।
  • भ्रूण में विकलांगता का पता लगाने के क्रम में शिशु के लिंग की जांच की जा सकती है।
  • सुरक्षित और विधिक रूप से गर्भपात का अधिकार आत्म-निर्णय का एक अनिवार्य अधिकार है। महिलाओं को यह अधिकार प्रदान नहीं किया जाना उन्हें बच्चों को जन्म देने वाली एक मशीन के रूप में परिवर्तित कर देगा, परंतु यह कैसे निर्धारित किया जा सकता है कि महिला की पसंद को बाध्य नहीं किया गया है।
  • गर्भपात का अधिकार ‘प्रो-चॉइस’ है, जबकि कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम ‘प्रो-लाइफ’ है।
  • गर्भपात का अधिकार निजता के अधिकार के दायरे में आता है लेकिन भारतीय समाज के लैंगिकवादी और पितृसत्तात्मक ढांचे को देखते हुए, गर्भावस्था के बारे में निर्णय करना कभी-कभी महिलाओं के नियंत्रण से बाहर होते है।

चूंकि असुरक्षित गर्भपात के कारण अधिकांश महिलाओं की मृत्यु हो जाती है, इस कारण इसे कानूनी रूप से वैध बनाना चाहिए, लेकिन साथ ही पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन का प्रतिषेध) अधिनियम (PCPNDT Act) को भी सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। गर्भावस्था का पंजीकरण अनिवार्य होना चाहिए और सभी गर्भपात पर निगरानी रखी जानी चाहिए। गर्भपात के लिए उचित मानदंड निर्धारित किए जाने चाहिए और गर्भनिरोधक के उपायों पर अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए। गर्भपात के जटिल मामलों को सरकारी चिकित्सा केंद्रों और चिकित्सा बोर्डों की निगरानी में केस-टू-केस आधार पर हल किया जाना चाहिए।

कन्या भ्रूण हत्या और गर्भपात का अधिकार के मध्य चयन के मामले में कोई नैतिक दुविधा नहीं है। जहां कन्या भ्रूण हत्या आपराधिक और अनैतिक है, जबकि गर्भपात का अधिकार अभी भी बहस का विषय है। यह एकमात्र दुविधा यह उत्पन्न होती है कि किसी के द्वारा की गई भ्रूण हत्या (लिंग के विपरीत) को चयन का अधिकार माना जाए अथवा हत्या के कृत्य के रूप में माना जाए। आगे, इस बहस को सामाजिक विचार-विमर्श और नैतिक मानकों के विकास के आधार पर हल किया जाना चाहिए। लेकिन चयन का अधिकार, चयनित लिंग गर्भपात का साधन नहीं बन सकता है।

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