लोकतंत्र में पारदर्शिता और उसकी भूमिका : सरकारी संगठनों में पारदर्शिता सुशासन की आवश्यक पूर्वापेक्षा

प्रश्न: सरकारी संगठनों में पारदर्शिता सुशासन की आवश्यक पूर्वापेक्षा है। स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण

  • लोकतंत्र में पारदर्शिता और उसकी भूमिका को संक्षेप में परिभाषित कीजिए।
  • भारत में पारदर्शिता के साधनों को बताइये और चर्चा कीजिए कि वे वस्तुनिष्ठ निर्णय निर्धारण एवं दक्षता आदि में किस प्रकार वृद्धि करते हैं।
  • भारत में पारदर्शिता के विषय में वर्तमान समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  • उपयुक्त रूप से निष्कर्ष प्रदान करते हुए उत्तर का समापन कीजिए।

उत्तर:

पारदर्शिता का तात्पर्य सामान्य जन को सूचना की उपलब्धता और सरकारी संस्थानों के कामकाज के विषय में स्पष्टता से है। अभिशासन वह पद्धति है जिसमें निर्णय, विशेष रूप से विधिसम्मत प्राधिकारी द्वारा लिए और कार्यान्वित किए जाते हैं। ‘सु’ यह दर्शाता है कि शासन प्रणाली कुछ भली प्रकार स्वीकार किए गए सिद्धांतों का पालन करती है जो शासन प्रणाली को नैतिक, न्यायपूर्ण और प्रभावी बनाते हैं। इन सिद्धांतों में विधि का शासन, भागीदारी, जवाबदेही, पारदर्शिता, समानता, दक्षता व प्रभावशीलता तथा समावेशिता सम्मिलित हैं।

सुशासन के लिए एक उपकरण के रूप में पारदर्शिता

  • कार्यात्मक लोकतंत्र में, सरकार अपने नागरिकों को सूचित रखने के लिए बाध्य होती है। इसके माध्यम से नागरिकों को अपने सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही निर्धारित करने में सहायता मिलती है, जो निष्पक्ष सुशासन का मूलमंत्र है।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के अनुसार, लोकतंत्र में पारदर्शिता द्वि-दिशात्मक सूचना प्रवाह को संभव बनाती है, जिससे नागरिकों की शासन में भागीदारी संभव हो पाती है।
  • यह नागरिकों को सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों के विषय में जानकारी मांगने और प्राप्त करने में सशक्त बनाती है तथा उन्हें अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों के विषय में भी सूचित करती है। इस प्रकार यह सरकारी प्रशासन में दक्षता, प्रभावशीलता और जवाबदेही को प्रोत्साहित करती है।

पारदर्शिता के लिए उपकरण

  • भारत में, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act), लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, नागरिक – चार्टर, सामाजिक लेखा-परीक्षा, अभिलेखों का डिजिटलीकरण, आदि पारदर्शिता और जवाबदेही के उपकरण हैं।
  • जब निर्णय लेने की प्रक्रिया पारदर्शी होती है, तो निष्पक्ष पद्धति से निर्णय लिए जाते हैं। यह कानून के समक्ष समता, संसाधनों का न्यायपूर्ण आबंटन, विवेकाधीन और मनमाने निर्णयों आदि में कमी करती है।
  • इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ती है अपितु भ्रष्टाचार में भी कमी आती है। उदाहरण के लिए, कोल इंडिया द्वारा 2018-19 में कोयला ब्लॉकों की ई-नीलामी ने नीलामी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बना दिया और इससे अपेक्षाकृत 44% अधिक मूल्य प्राप्त किये गए।

इन उपायों के बाद भी, भारत ने शासन में पारदर्शिता से संबंधित वैश्विक मापदंडों पर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है।

  • ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा विकसित वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक, 2018 के अनुसार, भारतीय प्रशासन में सर्वत्र भ्रष्टाचार व्याप्त है। इस सूचकांक में सम्मिलित 180 देशों में से भारत 78 वें स्थान पर था।
  • इसके सकारात्मक प्रभावों के बाद भी, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के कार्यान्वयन में कई समस्याएं विद्यमान हैं जैसेविशेष रूप से महिलाओं, ग्रामीण जनसंख्या, अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग आदि के बीच, जागरुकता का निम्न स्तर, सूचना का अधिकार (RTI) आवेदन प्रस्तुत करने में प्रक्रियात्मक बाधाएं, सूचना में गुणवत्ता का अभाव, सूचना का अधिकार कार्यकर्ताओं पर हमलों का बढ़ना आदि।
  • न्यायपालिका, राजनीतिक दल आदि जैसे संस्थान सूचना के अधिकार अधिनियम की परिधि से बाहर हैं इसलिए उनके कामकाज की निगरानी करना कठिन है।
  • उपेक्षा की प्रवृत्ति रखने वाले सरकारी अधिकारी जो अपने कामकाज को गुप्त रखते हैं। इससे सरकारी कार्य पद्धति में पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों क्षीण हो जाती हैं।

सरकारी संगठनों में पारदर्शिता में सुधार करने, लोक सेवकों की जवाबदेही निर्धारित करने और शासन प्रक्रिया में अधिकाधिक नागरिकों को सम्मिलित करने के उपाय किये जाने चाहिए। शासन में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए आरटीआई अधिनियम की धारा 4 के अनुसार सरकार को तत्परतापूर्वक और स्वेच्छा से सूचनाओं को सार्वजनिक करना चाहिए। इससे न्यायपूर्ण सुशासन सुनिश्चित होगा।

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