SCs और STs के लिए पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे : न्यायिक निर्णय और संवैधानिक संशोधन

प्रश्न: विभिन्न न्यायिक निर्णयों और संवैधानिक संशोधनों के आलोक में सार्वजनिक नियोजन में SCs और STs के लिए पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में उपेक्षित वर्गों के उन्नयन हेतु एक नीति के रूप में आरक्षण पर संक्षिप्त चर्चा करते हुए परिचय दीजिए।
  • इंदिरा साहनी वाद के निर्णय के पश्चात भारत में पदोन्नति में आरक्षण की शुरुआत को रेखांकित कीजिए।
  • पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित उत्तरवर्ती विधानों एवं न्यायिक हस्तक्षेपों को रेखांकित करते हुए सार्वजनिक नियोजन में पदोन्नति के मुद्दे की प्रगति पर चर्चा कीजिए।
  • इस मामले से संबंधित नवीनतम न्यायिक स्पष्टीकरण के संबंध में संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

भारत में आरक्षण, उपेक्षित वर्गों हेतु विश्व की सबसे बड़ी सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रम का एक भाग है। यद्यपि, यह विशेषकर सार्वजनिक नियोजन में पदोन्नति के सन्दर्भ में एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है।

इंदिरा साहनी एवं अन्य बनाम भारत संघ, 1992 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत नियुक्तियों में आरक्षण संबंधी प्रावधान पदोन्नति पर लागू नहीं होता है। हालांकि, इस वाद में दिए गए निर्णय के पश्चात भी कई संवैधानिक संशोधन एवं न्यायिक निर्णय दिए गए, जिनमें इस निर्णय को अस्वीकार कर दिया गया है, जैसे:

  • 77वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1995 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 16(4A) को सम्मिलित किया गया, जिसके तहत राज्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को पदोन्नति में आरक्षण देने हेतु विधि का निर्माण कर सकता है। इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 16(4B) के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया कि SC एवं ST हेतु आरक्षित पदोन्नति पदों के रिक्त रहने पर उन्हें आगामी वर्ष की भर्ती में सम्मिलित कर लिया जाएगा।
  • एम नागराज वाद में, उच्चतम न्यायालय द्वारा पदोन्नति में आरक्षण के विस्तार संबंधी संसद के निर्णय की वैधता को यथावत रखा गया। हालांकि, इस वाद में राज्य हेतु अनिवार्य रूप से अत्यावश्यक तीन शर्ते प्रस्तुत की गयीं, ये हैं:
  • आरक्षण से लाभान्वित होने वाले वर्ग के पिछड़ेपन हेतु साक्ष्य प्रदान करना,
  • पद/सेवा हेतु उपेक्षित वर्गों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए साक्ष्य प्रदान करना; और
  • यह सिद्ध करना कि किस प्रकार पदोन्नति में आरक्षण, अनुच्छेद 335 के अंतर्गत उल्लेखित प्रशासनिक दक्षता में अनिवार्य रूप से वृद्धि करेगा।

हालांकि, प्रथम शर्त को जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता वाद में निरस्त कर दिया गया। 

  • वर्ष 2002 में कर्नाटक विधानसभा द्वारा 85वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2001 के पश्चात पारित किए गए कानून को निरस्त करने हेतु नागराज वाद में दिए गए निर्णय को बीके पवित्र बनाम भारत संघ वाद-I में संदर्भित किया गया। उल्लेखनीय है कि इस अधिनियम के तहत परिणामी वरिष्ठता (consequential seniority) का प्रावधान किया गया था।
  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि सरकार द्वारा पदोन्नति में आरक्षण देने से पूर्व तीन मापदंडों यथा प्रतिनिधित्व में कमी, पिछड़ापन एवं समग्र प्रशासनिक दक्षता पर प्रभाव संबंधी पर्याप्त मात्रात्मक आकड़ों का एकत्रण नहीं किया गया है।
  • हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने बीके पवित्र बनाम भारत संघ-II मामले के अपने हालिया निर्णय में ‘कर्नाटक में आरक्षण के आधार पर पदोन्नत सरकारी सेवकों तक परिणामी वरिष्ठता का विस्तार अधिनियम, 2018’ की वैधता को यथावत रखा। इस अधिनियम के तहत SC/ST कर्मचारियों को केवल एक बार पदोन्नति दी जाती है और इसे “कैच-अप” क्लॉज़ (‘catchup’ clause) के रूप में संदर्भित किया जाता है।
  • न्यायालय के अनुसार अनुच्छेद 16(4A) राज्य को SCs/STs हेतु पदोन्नति के मामलों में आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाता है। इसके अतिरिक्त, राज्य की लोक सेवाओं में SCs एवं STs के प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता के संबंध में मत, राज्य के आत्मनिष्ठ निर्णय पर निर्भर करता है।

वर्ष 2018 में दिए गए हालिया निर्णय में पदोन्नति में आरक्षण के सन्दर्भ में होने वाले वाद-विवाद से संबंधित विभिन्न मुद्दों का परीक्षण किया गया, जैसे:

  • योग्यता और दक्षता संबंधी मुद्दा: न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रशासनिक दक्षता को एक समावेशी रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए, जिसके तहत एक ‘योग्य’ उम्मीदवार केवल वही नहीं है जो ‘प्रतिभाशाली’ या ‘सफल’ हो, बल्कि वह भी है जिसकी नियुक्ति से SCs और STs के सदस्यों के उत्थान संबंधी संवैधानिक लक्ष्यों की पूर्ति हो तथा विविधतापूर्ण और प्रतिनिधित्वपूर्ण प्रशासन सुनिश्चित किया जा सके।
  • सारभूत समानता की धारणा: यह निर्णय दिया गया कि भारतीय संविधान के अंतर्गत अवसर की केवल औपचारिक समानता की ही नहीं, बल्कि वास्तविक समानता की भी परिकल्पना की गई है।
  • क्रीमी लेयर का मुद्दा: यह माना गया कि पदोन्नति के आधार पर कैडर में आगे बढ़ने को कर्मचारी का क्रीमी लेयर में शामिल होना नहीं माना जा सकता। इस प्रकार, निर्णय में इस बात पर बल दिया गया है कि आरक्षण की नीति लोक सेवाओं में व्यापक समानता और उपयुक्त प्रतिनिधित्व की प्राप्ति हेतु एक आवश्यक उपकरण है।

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