विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के प्रति कृषि क्षेत्र की सुभेद्यता

प्रश्न: प्राकृतिक आपदाओं के प्रति कृषि क्षेत्र की सुभेद्यता का आकलन कीजिए। ऐसी आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए इस क्षेत्र की अनुकूलन क्षमता को सुदृढ़ करने हेतु क्या किया जा सकता है?

दृष्टिकोण

  • विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के प्रति कृषि क्षेत्र की सुभेद्यता का विश्लेषण कीजिए।
  • इन आपदाओं का प्रभाव कम करने के लिए कृषि क्षेत्र की अनुकूलन क्षमता को सुदृढ़ किए जाने वाले उपायों की चर्चा कीजिए।

उत्तर

वैश्विक कृषि का आधे से अधिक उत्पादन करने वाले छोटे किसानों, पशुपालकों, मछुआरों और वन-आश्रित समुदायों को विशेषकर सुनामी, हरीकेन, चक्रवात, बाढ़ और सूखा जैसी आपदाओं का जोखिम होता है। इन आपदाओं के कारण उनकी फसल, उपकरण, आपूर्तियां, पशुधन, बीज, फसलें और संग्रहित खाद्य पदार्थ नष्ट या क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अध्ययन से पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाला एक चौथाई नुकसान विकासशील देशों के कृषि क्षेत्र द्वारा उठाया जाता है।

निम्नलिखित पर्यवेक्षणों से कृषि क्षेत्र की सुभेद्यता स्पष्ट होती है:

  • मूसलाधार बर्षा और बाढ़ जैसी आपदाओं से मृदा अपरदन बढ़ता है,चारागाहों की गुणवत्ता में कमी आती है, मिट्टी का लवणीकरण होता है, निर्वनीकरण बढ़ता है और जैव विविधता को क्षति पहुंचती है।
  • पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बार-बार तुषारापात (frost bites) के कारण कृषि को काफी नुकसान पहुँचता है।
  • सूखा, बाढ़, तूफान या सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली कुल क्षति का 22% कृषि क्षेत्र में होता है।
  • विकासशील देशों में, फसल और पशुधन उत्पादन में होने वाली 83 प्रतिशत क्षति बाढ़ और सूखा के कारण होती है।
  • आपदाओं के कारण होने वाली कुल आर्थिक क्षति में लगभग 8% क्षति सम्मिलित रूप से मत्स्य पालन और वानिकी क्षेत्र में होती है।
  • ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण कृषि समुदायों के पास नष्ट हो चुकी आजीविका को पुन: प्राप्त करने हेतु आवश्यक बीमा और वित्तीय संसाधनों की कमी होती है।
  • किसी भी प्रकार की आपदा, कृषि व्यापार प्रवाह को प्रभावित करती है।
  • कृषि उद्योग, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और आजीविका पर आपदाओं का व्यापक प्रभाव होता है।
  • बार-बार आने वाली आपदाओं के परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र को होने वाली क्षति और हानि संचित हो जाती है जो कृषि की वृद्धि और विकास को बाधित करती है।
  • प्रति वर्ष भारत में लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि सूखे से प्रभावित होती है। इससे विशेषकर शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में चारागाह और जल समाप्त हो जाता है, जिससे पशुधन की शारीरिक स्थिति और प्रतिरक्षा में गिरावट आती है।

अनुकूलन क्षमता का सुदृढ़ीकरण

अलग-अलग आपदाओं के लिए अलग-अलग प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता होती है। फसलों को आधे से अधिक नुकसान बाढ़ के कारण होता है, पशुधन सूखे से अत्यधिक प्रभावित होता है, सुनामी और तूफानों से मत्स्यन प्रभावित होता हैं इत्यादि। इसलिए, किसी आपदा के संबंध में सबसे उपयुक्त नीतियों और प्रथाओं का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने हेतु, विभिन्न प्रकार की आपदाओं के प्रभाव को समझना महत्वपूर्ण हो जाता है।

  • वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर विद्यमान डेटा संबंधी अंतरालों से निपटने हेतु, कृषि क्षेत्र के लिए आपदा के प्रभाव से संबंधित सूचना प्रणाली में सुधार करना चाहिए।
  • कृषि में सरकारी और निजी क्षेत्र के निवेश हेतु कृषि आपदा जोखिम न्यूनीकरण को प्राथमिकता प्रदान करना।

निम्नलिखित तीन प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय एजेंडों का कार्यान्वयन और निगरानी करना जिसके अंतर्गत अनुकूलन क्षमता का निर्माण एक मूलभूत तत्व है:

  • सतत विकास लक्ष्य (SDG), विशेष रूप से लक्ष्य 2;
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क 2015-2030;
  • सार्वभौमिक जलवायु परिवर्तन समझौता

कृषि और ग्रामीण आजीविका हेतु मौसम आधारित जोखिम बीमा योजना जैसे नवाचारी जोखिम प्रबंधन साधनों को कार्यान्वित किया जाना चाहिए।

नेशनल मिशन आन सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के कार्यान्वयन द्वारा कृषि पर आपदाओं के गंभीर प्रभावों को रोकने और कम करने हेतु राष्ट्रीय सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक साथ आना चाहिए। इसके अतिरिक्त, कृषि क्षेत्र की अनुकूलन क्षमता बढ़ाने हेतु फसलों को स्थानीय जलवायु के अनुरूप उगाया जाना चाहिए।

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