1979 की ईरानी क्रांति : पश्चिम एशिया की राजनीति पर इसके प्रभाव

प्रश्न: 1979 की ईरानी क्रांति का विवरण दीजिए और पश्चिम एशिया की राजनीति पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • ईरानी क्रांति के कारणों, नेतृत्वकर्ताओं और उसके परिणामों पर चर्चा कीजिए।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी बाह्य शक्तियों की भूमिका और क्षेत्रीय राजनीति पर इसके प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
  • पश्चिम एशिया में विशिष्ट समकालीन उदाहरणों के माध्यम से उत्तर की पुष्टि कीजिए।

उत्तर

1979 की ईरानी क्रांति पश्चिम समर्थित शाह मोहम्मद रजा पहलवी को अपदस्थ करने वाली घटनाओं और आयतुल्लाह रुहोल्लाह ख़ोमैनी के तहत एक इस्लामी गणराज्य के गठन को संदर्भित करती है।

हालांकि 1963 में शाह द्वारा प्रारंभ की गई ‘श्वेत क्रांति’ के कारण देश की समृद्धि में वृद्धि हुई किन्तु इसने धन के असमान वितरण और असंतुष्ट एवं विरोध करने वाले लोगों के राजनीतिक दमन को भी बढ़ावा दिया। इसके अतिरिक्त, इस्लामिक मूल्यों में ह्रास होने के कारण धार्मिक नेता भी चिंतित थे।

खोमैनी द्वारा इस्लामी सरकार के गठन का समर्थन और श्वेत क्रांति का विरोध किया गया। क्रांति ने इस्लामी समूहों को प्रत्यक्ष राजनीतिक नियंत्रण प्राप्त करने हेतु सशक्त बनाया। नागरिक प्रतिरोध और विरोध के पश्चात, ईरान 1 अप्रैल 1979 को एक जनमत संग्रह द्वारा इस्लामी गणतंत्र के रूप में स्थापित हो गया, और देश के सर्वोच्च नेता के रूप में खोमैनी के साथ एक धर्मशासित-गणतांत्रिक संविधान को अंगीकृत किया गया।

पश्चिम एशिया की राजनीति पर प्रभाव 

  • संपूर्ण मुस्लिम जगत में राजनीतिक इस्लाम का पुनरुत्थान: ईरान की सफलता से प्रभावित होकर 1980 और 90 के दशक में कई इस्लामी राजनीतिक दलों का उदय हुआ और उन्होंने घोषणा की कि धर्मनिरपेक्ष मॉडल प्रगति और पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करने में विफल रहे हैं।
  • शिया-सुन्नी संघर्ष का विस्तार: इसने इस्लामिक जगत के नेताओं के मध्य, विशेष रूप से सऊदी (आधिकारिक तौर पर सुन्नी) और ईरान (आधिकारिक रूप से शिया) के मध्य विभाजन को अधिक विस्तृत कर दिया। यह अन्य देशों के संघर्ष जैसे इराक-ईरान युद्ध (1980), सीरिया और यमन में गृह युद्ध आदि के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी था।
  • अमेरिकी सैन्य उपस्थिति में वृद्धि, जो ईरान-इराक युद्ध के साथ प्रारंभ हुई। सद्दाम द्वारा 1989 में कुवैत पर आक्रमण तथा फ़ारस की खाड़ी में (विशेष रूप से तेल क्षेत्रों में) युद्ध का प्रसार होने पर इसमें व्यापक वृद्धि की गयी।
  • इस क्षेत्र में पश्चिमी हस्तक्षेप और प्रभाव के विरुद्ध लहर: लेबनान में हिज्बुल्लाह का उदय और मध्य-पूर्व में अमेरिकाविरोधी भावना का प्रसार भी क्रांति का ही परिणाम है, जो वर्तमान में भी आतंकवादी समूहों का मुख्य एजेंडा बना हुआ है।

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