वॉकर परिसंचरण : भारतीय मानसून
प्रश्न: वॉकर परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। चर्चा कीजिए कि यह भारतीय मानसून को कैसे प्रभावित करता है।
दृष्टिकोण
- वॉकर परिसंचरण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।आप इसे दर्शाने हेतु आरेख का भी उपयोग कर सकते हैं।
- वॉकर परिसंचरण और ENSO के मध्य सम्बद्धता को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए, साथ ही चर्चा कीजिए कि वॉकर परिसंचरण में होने वाले परिवर्तन किस प्रकार भारतीय मानसून को प्रभावित करते हैं।
उत्तर
वॉकर परिसंचरण को “वॉकर सेल” के रूप में भी जाना जाता है। यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के निचले वायुमंडल (क्षोभ मण्डल) में वायु परिसंचरण पर आधारित एक सैद्धांतिक मॉडल है। यह उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर के ऊपर वायुमंडल में होने वाले पूर्व-पश्चिम वायु परिसंचरण को संदर्भित करता है।
प्रवाह का निचला हिस्सा (जैसा कि चित्र में दिखाया गया है) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में सतह के समीप पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होता है, जबकि ऊपरी हिस्सा (चित्र में) अत्यधिक ऊंचाई पर पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होता है। पश्चिम में वायु की अधिकता और पूर्व में कमी, एक वृहद् एवं निरंतर होने वाले परिसंचरण के रूप में वायु प्रवाह का निर्माण करते हैं। वॉकर परिसंचरण, पूर्वी प्रशांत में समुद्री सतह के तापमान में परिवर्तन और भारतीय मानसून की परिवर्तनशीलता के मध्य मूलभूत संबद्धता को भी प्रदर्शित करता है। मानसून और ENSO (एल नीनो-दक्षिणी दोलन) के बीच अंतर्किया हेतु उत्तरदायी क्रियाविधि को भी वॉकर परिसंचरण में होने वाले परिवर्तन का आंशिक कारक माना जाता है।
एलनीनो के दौरान वॉकर परिसंचरण कमजोर पड़ जाता है और प्रशांत महासागर की पूर्वी-पश्चिमी सतह की ताप प्रवणता (पूर्वी-पश्चिमी सतह के तापमान के अंतर) में कमी के कारण पूर्व की ओर स्थानांतरित हो जाता है। इस कारण व्यापारिक पवनें कमजोर पड़ जाती हैं या यह भी संभव है कि वे विपरीत दिशा में प्रवाहित होने लगती हैं जिससे सामान्य जल की तुलना में उष्ण जल,उष्णकटिबंधीय मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर की ओर प्रवाहित होना आरम्भ हो जाता है। यह पश्चिमी प्रशांत और पूर्वी हिंद महासागर पर होने वाली व्यापक संवहन प्रक्रिया को निष्क्रिय कर देता है, परिणामस्वरूप भारतीय मानसून कमजोर हो जाता है।
ला नीना के दौरान वॉकर परिसंचरण, पश्चिमी प्रशांत महासागर की ओर तीव्र संवहन और मजबूत व्यापारिक हवाओं के साथ प्रबल हो जाता है। जैसे-जैसे व्यापारिक हवाएं प्रबल होती जाती हैं, गर्म जल सुदूर पश्चिमी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर क्षेत्र में एकत्रित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप ऑस्ट्रेलिया के उत्तर में सागरीय सतह का तापमान सामान्य की तुलना में बढ़ जाता है। उष्णकटिबंधीय मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में सतह का तापमान सामान्य से अत्यंत कम हो जाता है और थर्मोक्लाइन सतह के काफी समीप आ जाती है तथा उद्वेलन (upwelling) की प्रक्रिया तीव्र होने से गहरे समुद्र से शीतल जल सतह की ओर गतिशील होने लगता है। जब तीव्र पवनें ऊपरी वायुमंडल को अपेक्षाकृत अधिक आर्द्रता प्रदान करती हैं, तो ऑस्ट्रेलिया के उत्तर में स्थित क्षेत्र में संवहन प्रक्रिया और मेघों के निर्माण में वृद्धि होती है तथा वॉकर परिसंचरण तीव्र हो जाता है।
साथ ही, यह सुझाव दिया गया है कि वॉकर परिसंचरण हिंद महासागर डाईपोल (IOD) से भी अंतर्संबंधित हो सकता है। इसलिए, ऐसा देखा जाता है कि वॉकर परिसंचरण में परिवर्तन भारतीय मानसून को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित करता है। इन दोनों के मध्य अंतर्सम्बंधता की समझ हेतु अधिकाधिक शोध और अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है।
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