मानव पूँजी की अवधारणा तथा आर्थिक विकास में मानव पूँजी की भूमिका
प्रश्न: किसी देश के आर्थिक विकास में मानव पूंजी की भूमिका की व्याख्या करते हुए, भारत में मानव पूंजी निर्माण से संबंधित चुनौतियों एवं अवसरों पर प्रकाश डालिए।
दृष्टिकोण
- मानव पूँजी की अवधारणा तथा आर्थिक विकास में मानव पूँजी की भूमिका की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- भारत में मानव पूँजी निर्माण से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
- भारत में मानव पूँजी निर्माण हेतु अवसरों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर
मानव पूँजी एक देश के मानव संसाधनों के ज्ञान, कौशल, क्षमताओं तथा गुणों का मापन है, जो उनकी उत्पादन क्षमता एवं धनार्जन संभाव्यता को प्रभावित करते हैं।
आर्थिक विकास में मानव पूँजी की भूमिकाः
- उत्पादकता में वृद्धि: यह नवाचारों और सृजनशीलता को प्रोत्साहित करती है। इसके अतिरिक्त यह प्राकृतिक संसाधनों के इष्टतम उपयोग हेतु नवीन प्रौद्योगिकियों को आत्मसात करने की क्षमता का सृजन करती है।
- मानव पूंजी के उच्च स्तरों का परिणाम उच्च रोजगार दरों के रूप में सामने आता है। यह आय स्तरों में वृद्धि करती है तथा आय असमानताओं को कम करने में सहायता करती है।
- समाज के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण लाती है: प्रतिगामी विचारधारा को दूर करती है जिसके फलस्वरूप कार्यबल की भागीदारी दर में वृद्धि होती है, उदाहरणार्थ: लैंगिक रूप से समावेशी रोजगार को प्रोत्साहन।
भारत में मानव पूँजी निर्माण से संबंधित चुनौतियाँ:
- स्वास्थ्य, शिक्षा एवं कौशल विकास पर निम्न व्यय।
- बढ़ती जनसंख्या, विद्यमान सामाजिक और आर्थिक अवसंरचना की प्रति व्यक्ति उपलब्धता को कम करती है।
- निर्धनता का उच्च स्तर और क्षेत्रीय असमानता, जनसंख्या के एक बड़े भाग की बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच को अवरुद्ध करते हैं।
- बढ़ता लैंगिक अंतराल समान अवसरों को बाधित करता है तथा श्रम उत्पादकता को कम करता है।
- प्रतिभा पलायन (ब्रेन-ड्रेन) घरेलू अर्थव्यवस्था में मानव पूँजी निर्माण को मंद करता है।
- कौशल निर्माण प्रक्रिया दीर्घकालिक है, इसलिए यह मंद होती है।
- उदीयमान नवीन प्रौद्योगिकियों को आत्मसात करने हेतु काम के दौरान दिया जाने वाला प्रशिक्षण अपर्याप्त है।
भारत ने विश्व आर्थिक मंच के वैश्विक मानव पूँजी सूचकांक, 2017 में 130 देशों की सूची में 103वां स्थान प्राप्त किया है।
भारत में मानव पूँजी निर्माण हेतु अवसर:
- जनांकिकीय लाभांश- भारत की 65% जनसंख्या 35 वर्ष की आयु से कम है तथा कार्यशील आयु वर्ग (15-64 वर्ष) जनसंख्या के 25% से अधिक है।
- अंग्रेजी बोलने वाली एक बड़ी जनसंख्या तथा सशक्त IT आधार का उपयोग बेहतर कौशल विकास हेतु किया जा सकता है {उदाहरणार्थ ई-लर्निंग हेतु स्वयं (SAWAYM) प्लेटफार्म}।
- कौशल विकास एवं प्रशिक्षण हेतु व्यापक अवसरों के लिए वैश्विक तथा प्रौद्योगिकीय अंतर्संयोजनात्मकता उपलब्ध कराना।
- भारत में स्वास्थ्य और सामाजिक स्थिति में सुधार हेतु एक समर्थन आधार प्रदान करने के लिए संवैधानिक तथा सामाजिकविधिक अधिकारों का प्रावधान।
- सीखने के परिणामों (लर्निंग आउटकम) में सुधार के लिए नीति आयोग का शिक्षा क्षेत्र में मानव पूंजी में परिवर्तन लाने के लिए सतत कार्रवाई (SATH-E) रोडमैप 2018-20200
अन्य पहले जैसे नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF), ITIs की ग्रेडिंग, तक्षशिला (प्रशिक्षकों और मूल्यांकनकर्ताओं का पोर्टल) इत्यादि भारत में मानव पूँजी को बढ़ाने में दूरगामी प्रभाव उत्पन्न करेंगे।
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