पेरिस जलवायु समझौते के उद्देश्य : ‘कैटोवाइस जलवायु पैकेज’

प्रश्न: विश्लेषण कीजिए कि भारत जैसे विकासशील देशों की चिंताओं के संबंध में पेरिस जलवायु समझौते के उद्देश्यों को प्राप्त करने में ‘कैटोवाइस जलवायु पैकेज’ कितना कारगर सिद्ध हुआ है।

दृष्टिकोण

  • कैटोवाइस जलवायु पैकेज में उन प्रावधानों का वर्णन कीजिए जो पेरिस समझौते में निहित जलवायु परिवर्तन व्यवस्था को संचालित करने की योजना को दर्शाते हैं।
  • विकासशील देशों की चिंताओं का उल्लेख करते हुए इनकी प्रतिबद्धता को भी स्पष्ट कीजिए।
  • इन चिंताओं के आलोक में भावी कार्रवाई की एक योजना प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

पेरिस समझौते का उद्देश्य इस शताब्दी के अंत तक वैश्विक स्तर तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे और तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाना है। इस आलोक में, वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 24) में लगभग 200 देशों ने कैटोवाइस, पोलैंड में पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2015 को लागू करने के लिए दिशानिर्देशों को निर्धारित करने पर सहमति व्यक्त की।

ये नियम निम्नलिखित तरीकों से पेरिस समझौते के उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायता करते हैं: 

  • INDCs से संबंधित अनुशासन: देशों के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के अनुसार किए गए कार्यों की निगरानी, सत्यापन और रिपोर्ट करने के लिए संवर्द्धित पारदर्शिता फ्रेमवर्क (ETF) का संचालन किया जाएगा। यह पेरिस समझौते पर प्रगति की समीक्षा सुनिश्चित करेगा।
  • विकसित देशों के लिए दायित्व: पेरिस समझौते में विकसित देशों के लिए उनके प्रावधान और जलवायु वित्त के संग्रहण पर द्विवार्षिक रूप से रिपोर्ट प्रस्तुत करने का एक सामान्य दायित्व था। ये नियम उन 15 विशिष्ट सूचनाओं की पहचान करते हैं जिन्हें राज्यों को “विकासशील देशों को प्रदान किए जाने वाले सार्वजनिक वित्तीय संसाधनों के अनुमानित स्तर” सहित प्रस्तुत करना चाहिए।
  • उत्तरदायित्व और अनुपालन: ये नियम उन मामलों पर विचार करने के लिए एक अनुपालन समिति को अनुमति प्रदान करते हैं जहां देशों ने बाध्यकारी प्रक्रियात्मक दायित्वों का उल्लंघन किया है। इस प्रकार, यदि कोई देश प्रत्येक पांच वर्ष में किए गए योगदान को प्रस्तुत नहीं करता है अथवा एक विकसित देश वित्त के प्रावधान पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करता है, तो समिति इस इस पर उचित कदम उठाएगी।

हालांकि, COP24 में कुछ घटनाक्रमों के संबंध में भारत जैसे विकासशील देशों के मध्य चिंताएं व्याप्त हैं:

  • जलवायु कार्रवाई में वैश्विक उत्तर और दक्षिण (उत्तरी गोलार्द्ध में विकसित देशों और दक्षिणी गोलार्द्ध के विकासशील देशों) के मध्य अंतरों का पुन: उभरना : हालांकि पेरिस समझौता सभी देशों की स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं के साथ आरंभ हुआ, COP 24 सभी देशों के लिए रिपोर्टिंग, निगरानी और मूल्यांकन के समान मानकों के साथ आगे बढ़ा। यद्यपि सभी विकासशील देशों को रिपोर्टिंग आवश्यकताओं में लचीलापन प्रदान किया गया है, लेकिन इन रियायतों के साथ कई शर्तों को भी आरोपित किया गया है ताकि विकासशील देशों को पूर्ण अनुपालन करने के लिए बाध्य किया जा सके।
  • जलवायु वित्तपोषण का मुद्दा: विकासशील देशों का तर्क है कि जलवायु वित्त का अत्यधिक भाग सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त होना चाहिए। हालाँकि, वर्तमान में “रूलबुक” के रूप में निजी क्षेत्र का प्रवाह अथवा ऋण, जो विकासशील देशों की ऋणग्रस्तता को बढ़ाएगा, को UNFCCC के तहत विकसित देश के दायित्वों की पर्याप्त पूर्ति माना जाएगा।
  • समता की उपेक्षा: वित्त के लिए निधि, विकासशील और कमजोर देशों को नई प्रौद्योगिकी हस्तानांतरण के लिए बेहतर शर्तों और नुकसान एवं क्षति के लिए आर्थिक और गैर-आर्थिक समर्थन तथा टेक्स्ट में उनकी न्यायसंगत अनिवार्यता को समाप्त अथवा न्यून किया गया है।
  • कुछ प्रमुख मुद्दों को स्थगित किया जाना: आगामी वार्ताओं (चिली में COP 25) में वित्त, क्षमता निर्माण और बाजार तंत्र पर निर्णयों पर कार्य करने का विवरण जारी रहेगा। समझौते के अंतिम टेक्स्ट में 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी के विशिष्ट लक्ष्यों का भी अभाव है।

एक सफल जलवायु परिवर्तन व्यवस्था के लिए इन चिंताओं का समाधान करना सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए, चिली में आयोजित आगामी COP 25 इन मुद्दों का समाधान और भविष्य के निर्माण का एक परिणाम शामिल होना चाहिए जो पारिस्थितिक रूप से संधारणीय, आर्थिक रूप से व्यवहार्य और सामाजिक रूप से न्यायसंगत हो।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.