कॉर्पोरेट नीतिशास्त्र

प्रश्न: कॉर्पोरेट नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए इसके महत्व की व्याख्या कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • उत्तर के आरंभ में कॉर्पोरेट नीतिशास्त्र की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • इससे संबंधित मुद्दों तथा सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।
  • देश और जनता के संदर्भ में इसके महत्व पर संक्षिप्त चर्चा करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर:

कॉर्पोरेट नीतिशास्त्र का आशय एक व्यावसायिक संगठन की समस्त गतिविधियों और व्यक्तियों पर लागू होने वाले नैतिक सिद्धांतों के एक समुच्चय से है। ये नैतिक सिद्धांत कॉर्पोरेट प्रशासन, इनसाइडर ट्रेडिंग, रिश्वत, भेदभाव, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) और न्यासिक उत्तरदायित्व (fiduciary responsibilities) जैसे मुद्दों के संबंध में व्यावसायिक नीतियों और पद्धतियों से संबंधित हैं। इस प्रकार कॉर्पोरेट नीतिशास्त्र उन प्रणालियों और प्रक्रियाओं से भी संबंधित है जो किसी संगठन के कर्मचारियों के साथ-साथ संस्थानों एवं निकायों के मध्य निष्पक्ष, न्यायोचित और नैतिक व्यवहार को प्रोत्साहित करती हैं।

सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए महत्त्व

  • सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को जन्म देने वाले मुद्दे: वर्तमान परिदृश्य में व्यावसायिक नैतिकता का पालन न करने के अनेक परिणाम दृष्टिगत हुए हैं। उदाहरण के लिए- पर्यावरण क्षति, श्रमिकों का शोषण, खराब कार्य परिस्थितियां, वेतन की असमानता इत्यादि।
  • भारत के व्यावसायिक परिवेश के संबंध में नकारात्मक धारणा: 2016 में ग्लोबल बिजनेस एथिक्स सर्वे में भारत को निम्न रैंकिंग प्राप्त हुई थी। इसके अतिरिक्त E&Y एशिया-पैसिफिक फ्रॉड सर्वे में यह पाया गया कि भारत के व्यावसायिक परिवेश को रिश्वत जैसी अनैतिक प्रथाएं प्रभावित कर रही हैं। यह विदेशों में व्यापार अनुबंध प्राप्त करने के साथ-साथ भारत में विदेशी निवेश की संभावनाओं के लिए भी नुकसानदेह है।
  • व्यापार करने में कठिनाई: विदेशी निवेशक और कंपनियों ने भारतीय व्यापारियों द्वारा व्यापार वार्ताओं में सद्भाव प्रदर्शित न किए जाने के संबंध में शिकायत की है। इसके साथ ही प्राय: प्रशासन के साथ मिलीभगत के कारण विधिक समझौतों का उल्लंघन किया जाता है। भारत का NPA संकट इसका एक उदाहरण है।
  • अर्थव्यवस्था की सत्यनिष्ठा: व्यापक स्तर पर अनैतिक व्यवहार विश्वास में कमी लाता है। यदि विश्वास में कमी आती है तो व्यवसाय करने की लागत में वृद्धि होगी जिसके परिणामस्वरूप भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता और एक निवेश गंतव्य के रूप में उसका आकर्षण प्रभावित हो सकता है।
  • मूलभूत मानवीय आवश्यकता की पूर्ति: प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह एक मूलभूत आवश्यकता होती है कि वह एक ऐसे संगठन का हिस्सा बन सके जिसके प्रति वह सम्मान और गर्व की अनुभूति करे।
  • बेहतर निर्णय निर्माण और लाभप्रदता: नैतिकता के प्रति सम्मान निर्णय निर्माण के दौरान प्रबंधन को विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और नैतिक पहलुओं पर विचार करने हेतु बाध्य करता है।
  • समाज की सुरक्षा: नीतिशास्त्र देश की कानून व्यवस्था की तुलना में समाज को बेहतर तरीके से सुरक्षित रखने में समर्थ है। उदाहरण के लिए, एक ऐसा HR मैनेजर जो नैतिक दृष्टि से श्रेष्ठ हो, उग्र प्रदर्शन कर रहे कर्मचारियों तक पुलिस की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से पहुंच स्थापित कर सकता है।

वस्तुतः किसी भी प्रकार की अनुपालन और शासन व्यवस्था सुदृढ़ नैतिक तंत्र को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती है। CSR और कंपनी अधिनियम के कार्यान्वयन ने यह सिद्ध किया है। ऐसे में सुदृढ़ कॉर्पोरेट नीतिशास्त्र वाले सामाजिक उद्यमों और व्यावसायिक उद्यमों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। कॉरपोरेट नीतिशास्त्र भ्रष्ट व्यावसायिक प्रथाओं, क्रोनी कैपिटलिज्म के उदय तथा सरकारी क्षेत्र में कॉर्पोरेट भ्रष्टाचार की घटनाओं के आलोक में विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गया है। इस प्रकार कॉर्पोरेट नीतिशास्त्र न केवल संगठन की कार्यप्रणाली और साख के लिए बल्कि व्यापक रूप से किसी भी देश के लोगों के लाभ के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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