राष्ट्रीय वन नीति, 1988 की पृष्ठभूमि : नई वन नीति के मसौदे के आधार पर वन नीति में किए जा सकने वाले परिवर्तन
प्रश्न: 1988 की राष्ट्रीय वन नीति (NFP) अपने विषय-क्षेत्र और लक्ष्य की दृष्टि से दूरदर्शी थी। हालांकि, वर्तमान संदर्भ में एक नवीन वन नीति की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए। (150 शब्द)
दृष्टिकोण
- उत्तर के आरम्भ में राष्ट्रीय वन नीति, 1988 की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- बदलते हुए समय में एक नई वन नीति की आवश्यकता का परीक्षण कीजिए।
- नई वन नीति के मसौदे के आधार पर वन नीति में किए जा सकने वाले परिवर्तनों को सुझाइए।
- उस दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिये जिसे नयी वन नीति द्वारा अनिवार्य रूप से अपनाया जाना चाहिए।
उत्तर
राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के दूरदर्शी उद्देश्यों के अंतर्गत पारिस्थितिकीय सुरक्षा, प्राकृतिक रूप से विविध वनों के संरक्षण तथा जनजातियों एवं वनों पर निर्भर अन्य लोगों की आजीविका सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति पर बल दिया गया था। इसके अतिरिक्त इस वन नीति के अंतर्गत सामुदायिक वन भूमि की देखभाल हेतु ग्राम सभा तथा पंचायतों के रूप में स्थानीय स्वशासन की आवश्यकताओं की पहचान भी की गई थी।
इस प्रकार राष्ट्रीय वन नीति, 1988 का स्वरुप अनिवार्य रूप से प्रगतिशील था परन्तु उदारीकरण के बाद के युग में होने वाले परिवर्तनों से निपटने हेतु एक नवीन राष्ट्रीय वन नीति की आवश्यकता है क्योंकि:
- भारत द्वारा वर्ष 2030 तक 2.5 – 3 बिलियन टन के समतुल्य कार्बन डाइऑक्साइड के प्रच्छादन (sequester) के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है। नई वन नीति को हरित भारत मिशन जैसी पहलों के साथ अपने कार्यान्वयन हेतु एक विज़न प्रारूप तैयार करने की आवश्यकता है।
- 1988 की राष्ट्रीय वन नीति में वन क्षेत्रों में वनीकरण गतिविधियों पर बल दिया गया है परन्तु वन क्षेत्रों में निगमों और उद्यमियों के प्रवेश को प्रतिबंधित किया गया है। अत: वनीकरण गतिविधियों को और अधिक सक्षम बनाने हेतु निगमों और उद्यमियों को शामिल करना आवश्यक है।
- वन नीति सभी निम्नीकृत एवं निरावृत भूमियों तथा छोड़ी गई घास भूमियों (जिन्हें प्राय: बंजर भूमि के रूप में गलत रूप में वर्गीकृत किया जाता है और अन्य उद्देश्यों के लिए उनका उपयोग किया जाता है) के लिए वनारोपण कार्यक्रम को निर्धारित करती है।
- वन नीति में नए प्रेरक तत्वों का समावेश अत्यावश्यक है जैसे कि वनों का धारणीय प्रबंधन, मानव-वन्यजीव संघर्षों को कम करना, नगरीय हरित आवरण एवं नगरीय वनों का प्रबंधन, वन्यजीवों के बाह्य -स्थाने (ex-situ) संरक्षण में जैव प्रौद्योगिकी की आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना आदि।
- वनोत्पादों के लिए एक विश्वसनीय प्रमाणन प्रक्रिया का सतत रूप से उपयोग करना।
हालांकि नई वन नीति को निम्नलिखित के माध्यम से वन प्रबंधन के दृष्टिकोण में परिवर्तन की आवश्यकता को भी अपरिहार्य बनाना चाहिए:
- वनों पर मात्रात्मक रूप से ही नहीं बल्कि गुणवत्ता के दृष्टिकोण से भी ध्यान केन्द्रित करना।
- जल चक्र के लिए वन प्रबंधन आरंभ करना।
- वनोत्पाद प्रबंधन पर ध्यान केन्द्रित करना।
- वन प्रबंधन में जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं तथा REDD+ रणनीतियों को एकीकृत करना।
- वन क्षेत्रों के बाहर स्थित हरित वनावरण का प्रबंधन करना।
इस प्रकार यह समय की मांग है कि हमें एक नई वन नीति को अपनाना चाहिए जो पूर्व की वन नीति के प्रगतिशील चरित्र को बनाए रखेगी तथा वर्तमान नवीन आवश्यकताओं को समायोजित करेगी।
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