मूल्य : सिविल सेवाओं के लिए उनके महत्व

प्रश्न: स्पष्ट कीजिए कि आप निम्नलिखित मूल्यों से क्या समझते हैं और सिविल सेवाओं के लिए उनके महत्व की विवेचना कीजिए

(a) व्यावसायिकता

(b) निष्काम कर्म या नि:स्वार्थ कार्य

दृष्टिकोण

  • व्यावसायिकता को संक्षेप में परिभाषित कीजिए। 
  • सिविल सेवाओं के लिए इसके महत्व को वर्णित कीजिए।
  • निष्काम कर्म की व्याख्या कीजिए।
  • सिविल सेवाओं में इसके महत्व को वर्णित कीजिए।

उत्तर

(a) व्यावसायिकता 

  • व्यावसायिकता का आशय ‘वांछित कार्य को एक प्रभावी रीति से करने हेतु अपेक्षित व्यक्तियों की क्षमता या कौशल’ से है व्यावसायिकता कार्य नैतिकता (work ethic) का एक घटक है। यह व्यक्ति के चरित्र का प्रतिनिधित्व करता है।
  • एक सुदृढ़ कार्य नैतिकता सहयोगियों और अधीनस्थों का सम्मान करते हुए, सत्यनिष्ठा के साथ बेहतर कार्य करने की व्यक्ति की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है।
  • सिविल सेवा में व्यावसायिकता समय एवं कार्य प्रबंधन, वस्तुनिष्ठता, कर्मठता, तटस्थता, निष्ठा, पारदर्शिता, समयनिष्ठा, प्रभावशीलता, निष्पक्षता जैसे मूल्यों को शामिल करती है।

लोक सेवाओं में व्यावसायिकता का महत्व:

  • इसमें समयबद्धता और समयनिष्ठा शामिल है जो कार्य के अत्यधिक भार से ग्रसित नौकरशाही द्वारा निर्धारित समय सीमा में कार्य पूरा किए जाने हेतु महत्वपूर्ण है।
  • व्यावसायिकता का अर्थ किसी कार्यवाही के उत्तरदायित्व के साथ-साथ उसके प्रति जवाबदेही स्वीकार करना भी है।
  • यह प्रभावी कार्यान्वयन के साथ लागत प्रभावी, उन्नत एवं उचित रूप से लक्षित योजनाओं की अवधारणा को सुनिश्चित करती है।
  • यह योजनाओं की निष्पक्ष निगरानी और मूल्यांकन सुनिश्चित करती है और भ्रष्टाचार को समाप्त करने में सहायक होती है।
  • व्यावसायिकता तर्कसंगतता और भावनात्मक पृथकता पर बल देती है। राजनीतिक नेतृत्व में परिवर्तन होने की स्थिति में भी सिविल सेवक तटस्थ रहते हैं।
  • व्यावसायिकता उत्कृष्ट उदाहरण स्थापित करने में सहायता करती है और संस्था की विश्वसनीयता में वृद्धि करती है। यहां तक कि सिविल सेवा (आचरण) नियमावली, 1964 में अनुशंसा की गई है कि सिविल सेवकों को व्यावसायिकता के उच्चतम स्तर तथा अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमताओं के समर्पण के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए।

(b) निष्काम कर्म या नि:स्वार्थ कार्य

निष्काम कर्म या बदले में बिना किसी अपेक्षा के कर्तव्यों का स्वार्थ रहित निष्पादन संबंधी दर्शन भगवद्गीता की प्रमुख शिक्षाओं में से एक है। यह वर्णित करता है कि कृत्यों के परिणामों के सन्दर्भ में किसी भी स्वार्थपूर्ण उद्देश्य, इच्छा या चिंता के बिना कर्तव्यों को निष्पादन किया जाना चाहिए। इस प्रकार के कर्तव्यों से एक संतुलित एवं अधिक कर्तव्यबद्ध समाज का निर्माण करता है।

गुण के रूप में निष्काम कर्म सिविल सेवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण पूँजी है:

  • कर्तव्यों के एक निश्चित समूह का निष्पादन पूर्णतः निस्वार्थ और बिना किसी अपेक्षा के किया जाना चाहिए। इन कर्तव्यों के निर्वहन हेतु ईमानदारी के अतिरिक्त सिविल सेवकों को किसी अन्य बाध्यता (जैसे कि जाति, वंश, धर्म, लिंग आदि पर आधारित) से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
  • उन्हें तनावपूर्ण परिस्थितियों में भी कृत्यों के परिणाम से उत्तेजित नहीं होना चाहिए। यह तभी संभव हो सकता है जब किसी व्यक्ति का अपने कर्तव्य से भावनात्मक जुडाव न हो और उसका ध्यान केवल व्यक्तिगत जवाबदेही, ईमानदारी और सत्यनिष्ठा पर केंद्रित हो।
  • स्वार्थपूर्ण कृत्यों के परिणाम अनैतिक व्यवहार जैसे भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, कदाचार, अक्षमता, शक्ति का दुरुपयोग आदि के रूप में उत्पन्न हो सकते हैं।
  • यह परोपकारिता और स्वार्थ के मध्य तनाव को समाप्त करने में भी सहायक होता है तथा एक ऐसे अधिक समग्र एवं नैतिक प्रशासन के लिए मार्ग प्रशस्त करता है जिसमें जन कल्याण और उपभोक्तावाद संतुलित बने रहते हैं।
  • ऐसी अनेक परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं जिनमें स्थिति व्यक्ति के नियंत्रण में न हो। ऐसे में व्यक्ति परिणाम की किसी भी गारंटी के बिना बस अपनी पूर्ण निष्ठा से कृत्यों का निष्पादन कर सकता है। इससे ऐसी स्थितियों में एक सिविल सेवक प्रेरित और केन्द्रित बना रहता है।

चूँकि निष्काम कर्म अपेक्षा रहित कृत्यों के निष्पादन की शिक्षा देता है, अतः यह कर्ता को किसी भी सांसारिक वस्तु के प्रति अति महत्वाकांक्षी होने या संबद्ध होने से मुक्ति प्रदान करता है। यह मस्तिष्क और मन में संतुलन स्थापित करता है।

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