कृषि संबद्ध गतिविधियों और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसके योगदान के संदर्भ में संक्षिप्त प्रस्तावना

प्रश्न: आगामी समय में, सम्बद्ध क्षेत्रक कृषि में लचीलापन बढ़ाने एवं आर्थिक प्रतिफल में सुधार लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • कृषि संबद्ध गतिविधियों और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसके योगदान के संदर्भ में संक्षिप्त प्रस्तावना दीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार प्रत्येक प्रमुख सम्बद्ध क्षेत्रक कृषि में लचीलापन बढ़ाएगा और आर्थिक प्रतिफल में सुधार लाएगा।

उत्तर

कृषि और इसके संबद्ध क्षेत्रकों में पशुधन, बागवानी (horticulture), पुष्पकृषि (floriculture), मत्स्य पालन, रेशम कीट पालन (sericulture) और वानिकी सम्मिलित हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं, क्योंकि 2016-17 के दौरान चालू कीमतों पर प्राथमिक क्षेत्र का हिस्सा GVA का 20.5% होने का अनुमान है।

कृषि क्षेत्र, मानसून की अनिश्चितताओं और बाजारों की अस्थिरता के प्रति सुभेद्य है। ऐसे कारकों की बहुलता के कारण किसानों को अत्यधिक जोखिमों का सामना करना पड़ता है। भावी समय में, वैश्विक बाजारों का एकीकरण और जलवायु परिवर्तन के कारण जोखिम में वृद्धि होने की संभावना है। इसे स्वीकार करते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि जोखिमों को कम करने और प्रतिफल को अधिकतम करने के लिए सम्बद्ध गतिविधियों की संभावनाओं का पता लगाया जाए।

कुछ प्रमुख सम्बद्ध क्षेत्र और उनका महत्व

पशुपालन (Animal husbandry)

  • पशुपालन, विशेष रूप से भारत के वर्षा-सिंचित क्षेत्रों में छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण आजीविका और जोखिम न्यूनीकरण रणनीति है।
  • पशुधन सम्पदा, भूमि से सम्बंधित संपत्ति की तुलना में अधिक समान रूप से वितरित की जाती है।  इसके अतिरिक्त, यह आवश्यक खाद्य उत्पादों, भारबाही क्षमता (draught power), उर्वरक, रोजगार, घरेलू आय और निर्यात उपार्जन प्रदान करता है, जिनके परिणामस्वरूप व्यवस्था में अधिक लचीलापन आ सकता है।
  • घरेलू स्तर पर पशुपालन करना काफी हद तक महिलाओं द्वारा संचालित गतिविधि है, इस प्रकार पशुपालन को समर्थन देना महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मत्स्य पालन (Fisheries)

  • हाल के वर्षों में इसमें निरंतर उच्च वृद्धि देखी गई है। यह तटीय समुदायों को स्व-रोजगार के अवसर प्रदान करने के अतिरिक्त मानव आहार के लिए आवश्यक प्रोटीन प्रदान करने में भी सहायक है, इस प्रकार यह उनके जीवन स्तर में सुधार करता है।
  • फार्मिंग एग्रीकल्चर (जैसे चावल की कृषि) का मत्स्य पालन के साथ संयोजन करने से किसानों को अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है। साथ ही साथ, यह चावल की फसल को जैव-उर्वरक भी प्रदान करता है।

बागवानी (Horticulture)

  • कृषि के लिए उपलब्ध भूमि के कम होने की स्थिति में, बागवानी फसलें जैसे-फल, सब्जियां, मसाले, वृक्षारोपण फसलें, सजावटी फसलें (ornament crops) आदि प्रति हेक्टेयर अधिक उपज और पारिश्रमिक प्रदान कर सकती हैं।
  • अधिकांश बागवानी फसलों के वाणिज्यिक होने के कारण इसमें शहरी और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में उत्पादन एवं विपणन क्षेत्रकों में रोज़गार के अवसर सृजित करने की अत्यधिक क्षमता है।
  • इसका उपयोग विविध भौगोलिक और गैर-भौगोलिक विशेषताओं से युक्त व्यापक भौगोलिक क्षेत्रों में किया जा सकता है।
  • यह स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा में भी योगदान करता है, और इस प्रकार देश की मानव पूंजी में भी सुधार होता है।

कृषि वानिकी (Agro-forestry)

  • यह भूमि उपयोग की दक्षता एवं फसल उपज में वृद्धि करता है तथा संपूर्ण वर्ष में दीर्घावधिक उत्पादन को प्रोत्साहित करता है।
  • आधारभूत कृषि (mainstream agriculture) में वृक्षों से प्राप्त होने वाले चारे, ईंधन की लकड़ी और अन्य कार्बनिक पदार्थों को पुनःचक्रित किया जाता है तथा इसका उपयोग प्राकृतिक उर्वरकों के रूप में किया जाता है। इससे भूमि की उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है।
  • यह आजीविका विविधीकरण, भवन निर्माण सामग्री और सस्ता ईंधन आदि प्रदान करती है।

2022 तक कृषि आय को दोगुना करना भारत का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। हालांकि, संभावित जलवायु परिवर्तन की स्थिति से निपटने के लिए हमें उन कृषि पद्धतियों को अपनाना चाहिए, जो लाइफ-साइकल एप्रोच प्रदान करती हैं। ये संबद्ध गतिविधियां जैविक कृषि को समर्थन प्रदान करती हैं, जिसमें किसी संबद्ध गतिविधि से उत्पन्न अपशिष्ट का उपयोग कृषि गतिविधियों में इनपुट के रूप में किया जाता है। अत: इससे निश्चित रूप से किसानों के लिए लचीलेपन और आर्थिक प्रतिफल में वृद्धि होगी।

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