कृषि और किसानों की आय की बदलती प्रवृत्ति का संक्षिप्त विवरण : 2022 तक किसानों की आय को दोगुनी करने के लिए आवश्यक रणनीतियां

प्रश्न: जब किसानों को उनकी उपज के लिए पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाता है तो ऐसे में उच्च उपभोक्ता कीमतों की विडंबना कृषि विपणन में एक आमूलचूल सुधार की मांग करती है। इस संबंध में सरकार द्वारा उठाये गए विभिन्न कदमों की चर्चा कीजिए। साथ ही, उपभोक्ता कीमतों और किसानों की प्राप्त होने वाले मूल्यों के बीच अन्तराल को और कम करने के तरीके सुझाइए।

दृष्टिकोण

  • कृषि और किसानों की आय की बदलती प्रवृत्ति का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • कृषि विपणन में किसानों की आय को प्रभावित करने वाले समस्याग्रस्त क्षेत्रों और कारणों पर चर्चा कीजिए।
  • किसानों की बेहतर आय सुनिश्चित करने हेतु कृषि विपणन में सुधार के लिए सरकार और नीति आयोग द्वारा उठाए गए कदमों का विश्लेषण कीजिए।
  • 2022 तक किसानों की आय को दोगुनी करने के लिए आवश्यक रणनीतियां सुझाइए।

उत्तर

  • भारत में कृषि क्षेत्र लगभग 2.75 प्रतिशत दीर्घकालिक औसत वार्षिक दर के साथ निरंतर चक्रीय विकास पथ पर अग्रसर है। हालांकि देश का खाद्य उत्पादन 1950-51 के 51 मिलियन टन (सभी खाद्यानों सहित) के स्तर से बढ़कर 2016-17 में लगभग 275 मिलियन टन (केवल अनाज) हो गया है। परन्तु किसानों की कृषिगत आय में उतनी वृद्धि नहीं हुई है, जितनी स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा दर्शायी गयी थी।
  • किसानों की आय दोगुना करने के विषय पर गठित दलवाई समिति ने स्पष्ट किया है कि उपभोक्ता मूल्य में किसानों का हिस्सा अत्यधिक कम है (यह सामान्यतः15 से 40 प्रतिशत के मध्य होता है)।
  • मुख्यतः भंडारण सुविधाओं के अभाव, निम्न स्तरीय परिवहन व्यवस्था और खराब सड़कों के कारण सभी फलों और सब्जियों का लगभग 40 प्रतिशत नष्ट हो जाता है। अतः, कृषि-विपणन प्रणाली में आमूलचूल सुधार तथा किसान एवं उपभोक्ता के बीच मध्यस्थों की संख्या को कम करने की आवश्यकता है। इससे कीमतों में होने वाले परिवर्तन से प्राप्त लाभ केवल मध्यस्थों को ही नहीं बल्कि किसानों एवं उपभोक्ताओं को भी प्राप्त हो सकेंगे।

कृषि विपणन में समस्याग्रस्त क्षेत्र:

  • गोदाम और भंडारण सुविधाओं का अभाव
  • परिवहन सुविधाओं की कमी
  • ग्रेडिंग और मानकीकरण में समरूपता का अभाव
  • खराब संचालन, पैकिंग, पैकेजिंग और प्रसंस्करण सुविधाएं
  • बाजार संबंधी सूचनाओं का अभाव
  • बड़ी संख्या में मध्यस्थों की उपस्थिति
  • विपणन पर अपर्याप्त शोध

कृषि उत्पाद बाजार समिति (APMC) अधिनियम में समस्याएं:

चूंकि उत्पाद कई हितधारकों और हैंडलरों के माध्यम से खेत से उपभोक्ता तक पहुँचता है, इसलिए इसकी खुदरा कीमत बढ़ जाती है और उपज को हानि होती है। किसानों को मूल्य वृद्धि का लाभ प्राप्त नहीं होता है, परन्तु उपभोक्ताओं द्वारा इसका भुगतान किया जाता है। किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य प्राप्त न होने, कृषिगत आय एवं लाभ कम होने का मुख्य कारण मध्यस्थों की भूमिका है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • APMC अधिनियम के तहत विनियमित बाजार।
  • राज्य के स्वामित्व वाले और इसके द्वारा नियंत्रित भण्डारण गोदाम।
  • विभिन्न फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य।
  • कृषि उपज के लिए मूल्य स्थिरीकरण निधि
  • शीघ्र नष्ट होने वाली उपज के लिए ऑपरेशन “ग्रीन”
  • GrAM (ग्रामीण एग्रीकल्चरल मार्केटिंग) पहल।
  • 2016 में इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (e-NAM) की स्थापना।
  • GrAMs और APMCs में कृषि विपणन की आधारभूत संरचना के विकास और उन्नयन के लिए एक एग्री-मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (Agri-Market Infrastructure Fund) स्थापित किया जाएगा।
  • नीति आयोग द्वारा एग्रीकल्चर मार्केटिंग और फार्म फ्रेंडली रिफॉर्म इंडेक्स आरंभ किया गया, जो नए मॉडल APMC अधिनियम के तहत प्रस्तावित सात प्रावधानों के कार्यान्वयन पर आधारित है।

आगे की राह:नई सोच को बढ़ावा देना

  • किसानों को यह निर्धारित करने हेतु सशक्त बनाना चाहिए कि अपनी उपज को कब, कहाँ, किसे और किस कीमत पर बेचना है।
  • भण्डारण आधारित बिक्री, संस्थागत नवाचारों जैसे उपाय किसानों को बेहतर विपणन करने हेतु सक्षम बनाते हैं।
  • उपभोक्ता मूल्य में किसानों के हिस्से में सुधार के लिए अधिक किसान-उपभोक्ता बाजार स्थापित किए जाने की आवश्यकता है। ये बाजार किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए लाभदायक हैं।

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