राज्यपाल : राज्यपाल से सम्बंधित संवैधानिक प्रावधानों, शक्तियों एवं उसके कार्य
प्रश्न: राज्यपाल की अध्यादेश जारी करने की शक्तियों पर प्रकाश डालिए। साथ ही, राज्य विधायिका द्वारा पारित कोई विधेयक जब उसे प्रस्तुत किया जाता है तब उसके पास उपलब्ध विभिन्न विकल्पों को भी सूचीबद्ध कीजिए।
दृष्टिकोण
- राज्यपाल से सम्बंधित संवैधानिक प्रावधानों, शक्तियों एवं उसके कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- राज्य विधायिका द्वारा पारित कोई विधेयक जब राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब उसके पास उपलब्ध विभिन्न विकल्पों को सूचीबद्ध कीजिए।
- प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए उपायों का सुझाव देते हुए उचित निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 153 राज्यपाल के पद से सम्बंधित है। यह राज्य के कार्यकारी प्रमुख के रूप में कार्य करता है और इसकी स्थिति केंद्र में राष्ट्रपति की स्थिति के समान ही होती है।
राज्यपाल को कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका से सम्बन्धित विस्तृत शक्तियां प्राप्त हैं। राज्यपाल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विधायी शक्तियों में से एक उसकी अध्यादेश जारी करने की शक्ति है। अनुच्छेद 213 के अंतर्गत, राज्यपाल अध्यादेश जारी कर विधि निर्मित कर सकता है, परन्तु इसके लिए निम्नलिखित दो परिस्थितियों का होना आवश्यक है:
- जब राज्य विधानसभा सत्र में न हो या द्विसदनीय विधायिका वाले राज्य के दोनों ही सदन सत्र में न हों।
- जब राज्यपाल को यह समाधान हो जाए कि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं, जिसके कारण तुरंत कार्रवाई करना उसके लिए आवश्यक हो गया है।
अनुच्छेद 213 के अंतर्गत राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित एक अध्यादेश की शक्ति राज्य विधायिका द्वारा निर्मित विधान के समान होती है। इसे कभी भी राज्यपाल द्वारा वापस लिया जा सकता है।
एक विधेयक के अधिनियम बनने के लिए उस पर राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक होती है। जब राज्य विधान मंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब उसके पास अनुच्छेद 200 के अंतर्गत निम्नलिखित विकल्प उपलब्ध होते हैं:
- वह विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर सकता है और विधेयक अधिनियम बन जाता है या,
- आत्यंतिक वीटो– वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति रोक सकता है। ऐसी स्थिति में विधेयक समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बन पाता या,
- निलंबनकारी वीटो – वह विधेयक को (यदि यह धन विधेयक नहीं है) पुनर्विचार के लिए विधायिका को वापस लौटा सकता है। हालांकि यदि राज्य विधानमंडल द्वारा पुनः बिना संशोधन के विधेयक को पारित कर दिया जाता है तो राज्यपाल को अपनी स्वीकृति प्रदान करनी होगी।
- वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है। उसके पश्चात विधेयक को अधिनियम बनाने में उसकी कोई भूमिका नहीं होगी।
अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राष्ट्रपति अनुमति दे सकता है, अनुमति को रोक सकता है या पुनर्विचार के लिए विधेयक वापस लौटा सकता है। कुछ विशिष्ट मामलों में, जैसे – उच्च न्यायालय की स्थिति को प्रभावित करने वाले या राज्य के नीति निदेशक तत्वों से असंगत विधेयकों के सन्दर्भ में राज्यपाल के लिए विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखना अनिवार्य है।
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