राष्ट्रवादी आन्दोलन: लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रतायें

प्रश्न: समय के साथ, राष्ट्रवादी आन्दोलन ने लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रताओं की विचारधारा और संस्कृति का सफलतापूर्वक सृजन किया जो इसकी शक्ति का स्रोत बनीं। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • व्याख्या कीजिए कि भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन ने किस प्रकार लोकतंत्र की विचारधारा एवं संस्कृति को बढ़ावा दिया।
  • व्याख्या कीजिए कि किस प्रकार इसने नागरिक स्वतंत्रताओं की संस्कृति को बढ़ावा दिया।

उत्तर

भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन ने लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रताओं की संस्कृति को सफलतापूर्वक पोषित किया था, क्योंकि इसने लोकप्रिय निर्वाचनों पर आधारित संवैधानिक संस्थाओं को प्रचारित किया तथा असहमति एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सह-अस्तित्व को भी प्रोत्साहित किया।

राष्ट्रवादी आन्दोलन द्वारा लोकतंत्र को पोषित करना

  • जन-आन्दोलनों ने औपनिवेशिक शासन को समाप्त करने तथा सामाजिक रूपांतरण हेतु भारतीय जनसंख्या के एक बड़े भाग का राजनीतिकरण किया।
  • एक हिंसक क्रान्ति के विपरीत एक अहिंसक क्रांति को लाखों लोगों की राजनीतिक लामबंदी तथा व्यापक बहुमत के निष्क्रिय समर्थन की आवश्यकता होती है। उदाहरणार्थ- गांधीजी का सत्याग्रह लोगों की सक्रिय भागीदारी तथा गैरभागीदार लाखों लोगों की सहानुभूति एवं समर्थन पर आधारित था।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को लोकतांत्रिक आधारों पर संगठित किया गया था तथा इसकी नीतियों एवं प्रस्तावों पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करने के पश्चात् पारित किया जाता था। इसने खुले तौर पर और स्वतंत्र रूप में, विविधतापूर्ण और अल्पसंख्यक मतों की अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित किया। विभिन्न राजनीतिक प्रवृत्तियाँ और विचारधाराएँ (कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट, ट्रेड यूनियन, किसान सभा आदि) कांग्रेस के भीतर सह-अस्तित्व के रूप में विद्यमान थीं तथा इन्होंने राजनीतिक लोकतंत्र की भांति कार्य किया।

लोगों की इस दीर्घकालिक भागीदारी ने राजनेताओं को उनकी राजनीतिक क्षमताओं में पूर्ण विश्वास करने में सहायता प्रदान की तथा व्यापक रूप में निर्धनता और निरक्षरता के बावजूद उन्हें वयस्क मताधिकार को दृढ़तापूर्वक लागू करने में सक्षम बनाया।

नागरिक स्वतंत्रताओं को पोषित करना

  • लोकमान्य तिलक, गांधीजी, नेहरु इत्यादि जैसे प्रमुख नेता नागरिक स्वतंत्रताओं के प्रति पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध थे।
  • वर्ष 1931 में कांग्रेस के कराची आधिवेशन में मूल अधिकारों से संबंधित एक प्रस्ताव पारित किया गया था तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी प्रदान की गयी, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1936 में इंडियन सिविल लिबर्टीज यूनियन का गठन हुआ।
  • किसानों, श्रमिकों, विद्यार्थियों आदि से संबंधित राजनीतिक और आर्थिक नीतियों ने सामाजिक एवं आर्थिक असमानताओं को कम किया।
  • एक दूसरे के प्रति आलोचनापूर्ण दृष्टिकोण रखने वाले राजनीतिक समूह भी नागरिक अधिकारों के संरक्षण के संदर्भ में एकमत थे। उदाहरणार्थ- नरमपंथियों ने उग्र-सुधारवादी नेता तिलक के वाक् एवं लेखन के अधिकार का बचाव किया था। इसी प्रकार कांग्रेसियों तथा अहिंसा के समर्थकों ने लाहौर एवं षड्यंत्र के अन्य मामलों में मुकदमा चलाए जाने पर भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों तथा मेरठ षड्यंत्र मामले में कम्युनिस्टों का बचाव किया था।
  • वर्ष 1928 में प्रस्तावित पब्लिक सेफ्टी बिल तथा ट्रेड डिस्प्यूट बिल का उद्देश्य श्रमिक संघों, वाम पंथ तथा कम्युनिस्टों का दमन करना था। केंदीय विधान सभा में इन विधेयकों का प्रबल विरोध किया गया था।

औपनिवेशिक विचारधारा के विरोध में, भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन उदारवादी लोकतांत्रिक विचारों तथा परम्पराओं से अत्यधिक प्रभावित हुआ। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन लोकतंत्र एवं नागरिक स्वतंत्रताओं को भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के आधारभूत तत्व के रूप में स्थापित करने में सफल रहा।

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