भारत में लॉजिस्टिक्स : शुष्क पत्तनों की अवधारणा का संक्षिप्त वर्णन

प्रश्न: भारत में लॉजिस्टिक्स की चुनौतियों को कम करने में ‘शुष्क पत्तनों एवं उनके महत्त्व पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। साथ ही, उनके विकास में आने वाली चुनौतियों और उनके समाधान हेतु आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • शुष्क पत्तनों की अवधारणा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • भारत में लॉजिस्टिक्स की चुनौतियों को कम करने में उनके महत्त्व का विश्लेषण कीजिए।
  • शुष्क पत्तनों के विकास में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • इन चुनौतियों के समाधान हेतु कुछ प्रभावशाली उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

शुष्क पत्तन अंतर्देशीय टर्मिनल हैं जो अंतरराष्ट्रीय माल के प्रबंधन, अस्थायी भण्डारण, निरीक्षण और कस्टम क्लीयरेंस हेतु सेवाएं प्रदान करते हैं। ये प्राय: विभिन्न परिवहन माध्यमों की उपलब्धता वाले स्थलों पर अवस्थित होते हैं और एक समुद्री बंदरगाह से रेल या सड़क मार्ग द्वारा प्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं। इसमें सामान्यतया इनलैंड कंटेनर डिपो, कंटेनर फ्रेट स्टेशन तथा एयर फ्रेट स्टेशन शामिल होते हैं।

लॉजिस्टिक्स संबंधी चुनौतियों को कम करने में शुष्क बंदरगाहों का महत्त्व 

  • विशिष्ट ऊर्जा लाभों के साथ आपूर्ति श्रृंखला में सुधार और विभिन्न परिवहन तंत्रों (intermodal transport) को इष्टतम उपयोग हेतु अनुकूलित करते हैं।
  • हाल के वर्षों में समुद्री बंदरगाहों द्वारा कंटेनर ट्रैफिक में हुई उच्च वृद्धि के कारण सामना की जाने वाली क्षमता संबंधी समस्याओं को कम किया है।
  • मूल्य-संवर्धक लॉजिस्टिक्स सेवाओं की एक श्रृंखला हेतु महत्वपूर्ण विस्तार हेतु अवसर उपलब्ध करवाते हैं तथा उनमें से कुछ को सुविकसित लॉजिस्टिक्स पार्कों में परिवर्तित होने या SEZs हेतु विशेष केंद्र के रूप में स्थापित होने में सक्षम बनाते हैं।
  • ये अंतर्देशीय गन्तव्य स्थलों हेतु समुद्री कार्गो के पोतांतरण केंद्र के रूप में कार्य करते हैं तथा उनके लिए भंडारण सुविधाएँ भी उपलब्ध करवाते हैं।
  • लॉजिस्टिक्स लागतों में कटौती करते हैं जो वर्तमान में विनिर्माण संबंधी लागतों के लगभग 14-15% हेतु उत्तरदायी हैं।
  • बंदरगाह आधारित विकास पर लक्षित सागरमाला परियोजना के साथ समन्वित होते हैं।

शुष्क पत्तनों के विकास में आने वाली चुनौतियाँ:

  • वित्तीय चुनौतियां: एक शुष्क पत्तन सुविधा का विकास की लागत अत्यधिक होती है। असंतोषजनक निवेश परिवेश और लगभग सरकारी एकाधिकार समस्याजनक कारक हैं तथा इसी कारण संस्थागत निवेशक आकर्षित नहीं होते हैं।
  • संयोजकता: भारत में औद्योगिक बेल्ट अव्यवस्थित है तथा निम्नस्तरीय रेल और सड़क संयोजकता शुष्क बंदरगाहों के साथ एकीकरण को सुनिश्चित करने में प्रमुख चुनौतियों का सृजन कर रही है।
  • अल्प उपयोग: अनियमित और निम्नस्तरीय गुणवत्तायुक्त सेवा स्तरों के कारण। ज्ञातव्य है कि इनके स्थायित्व से संबंधित मुद्दे भी उठाए जाते रहे हैं।
  • अप्रचलित प्रक्रियाएं: जो सीमा शुल्कों और पत्तन स्वीकृतियों आदि से संबंधित हैं इन पत्तनों पर माल की सुगम आवाजाही को बाधित करती हैं।
  • अन्य प्रक्रियात्मक अवरोध: जैसे कि पर्यावरणीय और वन संबंधी स्वीकृतियां, रेललाइनों के ऊपर सड़क पुलों(ROB) के निर्माण हेतु रेलवे से मंजूरी आदि। इसके साथ-साथ भूमि की समयोचित उपलब्धता और भूमि अभिग्रहण एवं पुनर्वास सुनिश्चित करना भी अन्य प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

इन चुनौतियों के समाधान हेतु आवश्यक उपाय

  •  सतत राजस्व प्रवाह के साथ एक सफल व्यवसाय के सृजन हेतु एक शुष्क पत्तन के चतुर्दिक विनिर्माण और उपभोग केंद्र का निर्माण अवश्य किया जाना चाहिए।
  • रेल और सड़क जैसी संयोजक अवसंरचनाओं में वृद्धि इनके विकास हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने हेतु विनियामकीय और निवेश परिवेश में सुधार करना।
  • विधिक सुधारों, एकल खिड़की स्वीकृतियों आदि के माध्यम से विभिन्न विभागीय स्वीकृतियों से संबंधित प्रक्रियात्मक फ्रेमवर्क का सरलीकरण।
  • ग्राहक उन्मुख सेवाएं प्रदान करने हेतु क्षमता निर्माण कार्यक्रमों का संचालन।
  • शुष्क पत्तनों के परिचालन और प्रबंधन में विदेशी फर्मों के साथ निवेश और भागीदारी में वृद्धि करना।

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