बाँस की कृषि : भारतीय वन अधिनियम, 1927 में किए गए संशोधन

प्रश्न: बाँस को इसके अनगिनत वाणिज्यिक अनुप्रयोगों के कारण हरित सोना (ग्रीन गोल्ड) के रूप में भी जाना जाता है। भारत में बाँस के वितरण और इस उद्योग के संबंध में सरकार द्वारा हाल में उठाए क़दमों की चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • बाँस के विभिन्न अनुप्रयोगों- लकड़ी, हस्तशिल्प, भोजन, कागज एवं लुगदी, इत्यादि एवं आजीविका की सुरक्षा हेतु इसकी प्रासंगिकता की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  • बाँस की कृषि हेतु अनुकूल परिस्थितियों का विवरण दीजिए और प्रमुख बाँस उत्पादक क्षेत्रों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • बजट 2018-19 में उल्लिखित  पहलों, पुनर्गठित राष्ट्रीय बाँस मिशन और भारतीय वन अधिनियम, 1927 में किए गए संशोधनों को चिन्हित कीजिए।

उत्तर

बाँस, जो घास प्रजाति का एक सदस्य है, देश में ग्रामीण जीवन एवं संस्कृति का मुख्य आधार है। इसके बहुमुखी उपयोग जैसे कि निर्माण, ईंधन की लकड़ी, कागज, हस्तशिल्प, भोजन एवं चारा और यहाँ तक कि औषधीय अनुप्रयोग के कारण इसे ‘हरित सोना’ कहा जाता है। इसका उपयोग पारंपरिक लकड़ी के एक विकल्प के रूप में किया जाता है और इसे ‘गरीबों की लकड़ी’ भी कहा जाता है।

बांस सामान्यतः उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है, परंतु यह प्राकृतिक रूप से उपोष्ण कटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में भी उत्पन्न होता है। चीन और भारत में विश्व का 50% से अधिक बाँस उत्पन्न होता है। यह तीव्रता से विकसित होने वाली प्रजाति है, जो कि विस्तृत विविधता वाली जलवायु तथा विभिन्न मृदाओं में भी विकसित हो सकती है। भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2017 के अनुसार, भारत में कुल 15.69 मिलियन हेक्टेयर बांस क्षेत्र है, जोकि विगत वर्ष के आँकड़ों में वृद्धि को दर्शाता है। मध्यप्रदेश के पश्चात् अरुणाचल प्रदेश में बाँस की कृषि सर्वाधिक कृषि क्षेत्र पर की जाती है। बाँस जम्मूकश्मीर को छोड़कर लगभग पूरे देश में पाया जाता है। पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में बाँस 50% से अधिक क्षेत्र पर आच्छादित है।

बाँस के वाणिज्यिक दोहन के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों (विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत) में लाभकारी रोजगार और आय का सृजन किया जा सकता है। बाँस को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदम –

  • वन्य क्षेत्रों के बाहर विकसित होने वाले बाँस को भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत परिभाषित वृक्ष की परिभाषा के दायरे से बाहर कर दिया गया है। इसका तात्पर्य यह है, कि अंतर्राज्यीय व्यापार हेतु बाँस की कटाई एवं परिवहन के लिए परमिट की आवश्यकता नहीं होगी, जो पूर्व में अनिवार्य थी।
  • बजट 2018-19 में, एक पुनर्गठित राष्ट्रीय बाँस मिशन (Re-structured National Bamboo Mission) लॉन्च किया गया। जिसका उद्देश्य चयनित राज्यों में कृषि के अंतर्गत क्षेत्र का विस्तार करने, शुरुआत से लेकर अंत तक समाधानों के साथ मूल्य श्रृंखला के एकीकरण, हस्तशिल्प विकास, कौशल विकास इत्यादि पर ध्यान केंद्रित करने के लिए क्षेत्र-आधारित क्षेत्रीय विभेदित रणनीति को कार्यान्वित करना है।
  • विभिन्न राज्य सरकारें राज्य बाँस बोर्डों का सुदृढ़ीकरण कर रही हैं तथा बाँस उत्पादन को प्रोत्साहित करने हेतु विभिन्न उपाय कर रही हैं। उदाहरणार्थ, हाल ही में, महाराष्ट्र ने बाँस को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक कंपनी की स्थापना की है।

सरकारी सहायता महत्वपूर्ण है क्योंकि इस उद्योग में वृहत रोजगार क्षमता व्याप्त है। अतः, इस संदर्भ में सरकार द्वारा निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:

  • सभी विभागों द्वारा बांस के फर्नीचर की 10% खरीद को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए ,
  • वियतनाम और चीन से अगरबत्ती के आयात पर रोक लगाना,
  • इसकी पर्यावरण अनुकूल प्रकृति के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना,
  • इसके प्रोत्साहन को समन्वित करने हेतु सरकार द्वारा एक बाँस विकास प्राधिकरण की स्थापना की जानी चाहिए, इत्यादि।

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