आर्द्रभूमि : आर्द्रभूमियों की विलुप्ति के पीछे उत्तरदायी कारण

प्रश्न: आर्द्रभूमियां क्या हैं? आर्द्रभूमियों की विलुप्ति के पीछे उत्तरदायी कारणों का विवरण प्रस्तुत करते हुए, उनके प्रभावी संरक्षण हेतु उठाए जा सकने वाले कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण:

  • आर्द्रभूमि को परिभाषित करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
  • आर्द्रभूमियों की विलुप्ति के पीछे उत्तरदायी कारणों को स्पष्ट कीजिए।
  • इनके संरक्षण के लिए उठाए जा सकने वाले उपाय सुझाइए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर:

रामसर अंतरराष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण संधि द्वारा “प्राकृतिक या कृत्रिम, स्थायी या अस्थायी, स्थिर या प्रवाहित, ताजे, खारे या लवणीय जल युक्त, दलदल (marsh), पंक भूमि (fen), पीटभूमि या जलीय क्षेत्रों को अथवा ऐसे समुद्री जल क्षेत्रों को जिनकी गहराई निम्न ज्वार के समय छह मीटर से अधिक न हो”, आर्द्रभूमि के रूप में परिभाषित किया गया है।

आर्द्रभूमियों की उत्पादकता उच्च होती है तथा ये जैविक विविधता की वृद्धि में सहायक होती हैं। ये जल शोधन, बाढ़ के प्रभाव को कम करने, अपरदन को नियंत्रित करने, भूजल पुनर्भरण, सूक्ष्म जलवायु विनियमन जैसी सेवाएं भी प्रदान करते हैं। हालांकि ये देश के सर्वाधिक संकटग्रस्त पर्यावासों में से एक हैं और प्रति वर्ष 2-3 प्रतिशत की दर से विलुप्त हो रहे हैं।

आर्द्रभूमियों के विलुप्त होने के लिए उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं:

  • आर्द्रभूमियों का अतिक्रमण: अनियोजित शहरीकरण, उद्योगों का प्रसार, सड़क निर्माण, जलाशयों और नहरों का निर्माण, बालू खनन इत्यादि के कारण आर्द्रभूमियां सूख गई हैं और रूपांतरित हो गई हैं। परिणामस्वरूप इससे दीर्घकालिक रूप से उल्लेखनीय आर्थिक और पारिस्थितिकीय क्षति होती है।
  • निर्वनीकरण: जलग्रहण क्षेत्रों से वनोन्मूलन से मृदा अपरदन और गाद जमा होने (siltation) की समस्या में वृद्धि हुई है, जिससे आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन हुआ है।
  • प्रदूषण: उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषकों जैसे सीवेज और विषाक्त रसायनों की गैर-प्रतिबंधित डंपिंग के कारण कई स्वच्छ जल युक्त आर्द्रभूमियां प्रदूषित हुई हैं। ।
  • लवणीकरण: अत्यधिक भूजल के दोहन के कारण लवणीकरण में वृद्धि हुई है, जिसने आर्द्रभूमियों के निम्नीकरण और आर्द्रभूमि प्रजातियों के जोखिमों को अत्यधिक बढ़ा दिया है।
  • जलीय कृषि (एक्वाकल्चर): झींगा और मछलियों की मांग से प्राप्त होने वाले आर्थिक प्रोत्साहनों ने आर्द्रभूमि और मैंग्रोव वनों को जलीय कृषि तालाबों में परिवर्तित कर दिया है।
  • नई प्रजातियों का प्रवेश: जलकुंभी (hyacinth) और साल्विनिया जैसी विदेशज पादप प्रजातियों (जो जलमार्गों को अवरुद्ध करती हैं तथा देशज वनस्पतियों के साथ प्रतिस्पर्धा करती हैं) के प्रवेश से आर्द्रभूमियां संकटग्रस्त हुई हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: तापमान में वृद्धि, वर्षा में परिवर्तन, बाढ़ की पुनरावृत्ति में वृद्धि, समुद्र तल में वृद्धि आदि के कारण भी आर्द्रभूमियां प्रभावित हुई हैं।

आर्द्रभूमि के प्रभावी संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

  • आर्द्रभूमि की पहचान करना: आर्द्रभूमि की पहचान करने हेतु वैज्ञानिक मानदंडों की आवश्यकता है। एक स्वतंत्र प्राधिकरण की स्थापना इस संबंध में सहायता कर सकता है।
  • आर्द्रभूमि पर डेटा बैंक का सृजन: चिन्हित रामसर स्थलों के अतिरिक्त विभिन्न तरीकों का उपयोग करके आर्द्रभूमियों के लिए एक डेटा बैंक का सृजन किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र पर्यावरण विभाग ने राज्य में सभी आर्द्रभूमियों पर एक डेटाबेस बनाने के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किया है। इसे अखिल भारतीय आधार पर परिचालित किया जा सकता है। इसी प्रकार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा तैयार किए गए नेशनल वेटलैंड्स एटलस के तहत देश भर में 14.7 मिलियन हेक्टेयर को कवर करते हुए कुल 201,503 आर्द्रभूमियों की पहचान की गई है।
  • संस्थानों के साथ सहयोग: सरकार वेटलैंड्स इंटरनेशनल जैसे संगठनों के साथ सहयोग स्थापित कर सकती है, जो आर्द्रभूमियों और इनके संसाधनों को संधारणीय बनाए रखने और पुनर्स्थापित करने के लिए कार्य करते हैं।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: उपग्रह आधारित रिमोट सेंसर, GIS उपकरण जैसी तकनीकों का अनुप्रयोग प्रभावी प्रबंधन और आर्द्रभूमियों की निगरानी में सहायता कर सकता है।
  • बहु-हितधारक भागीदारी: आर्द्रभूमियों का समग्र प्रबंधन स्थानीय समुदाय के सदस्यों, प्रशिक्षित अकादमिक सदस्यों (academicians), पारिस्थितिकविदों (ecologists), जलविज्ञानियों (hydrologists) आदि की भागीदारी से किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, आर्द्रभूमियों के प्रबंधन के लिए योजना, निष्पादन और निगरानी के संदर्भ में एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
  • जागरुकता का प्रसार करना: स्कूलों और कॉलेजों, जल निकायों के निकट अधिवासित जनसामान्य में आर्द्रभूमियों के महत्व से संबंधित शैक्षणिक कार्यक्रमों का आरंभ करके जागरुकता का प्रसार किया जा सकता है।

आर्द्रभूमियों पर क्षेत्र अत्यधिक विस्तारित है तथा यह कृषि, राजस्व, पर्यटन आदि विभिन्न विभागों के अंतर्गत शामिल है। आर्द्रभूमियों का और अधिक ह्रास होने से बचाने के लिए एक व्यापक और एकीकृत आर्द्रभूमि नीति तैयार करना अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त आर्द्रभूमियों के संरक्षण, नियोजन, प्रबंधन और निगरानी में सहायक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम, आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2010 जैसी पहलों के प्रभावी कार्यान्वयन की भी आवश्यकता है।

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.