भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) और इसका संघटन

प्रश्न: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने व्यक्तियों, वर्गों और जातियों के मध्य विद्यमान सभी मतभेदों से ऊपर उठते हुए एकता कायम करने वाली एक कड़ी के रूप में कार्य किया। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) और इसके संघटन के बारे में संक्षेप में चर्चा करें।
  • INC के विभिन्न गुटों और उनके बीच के मतभेदों के बारे में चर्चा करें।
  • बताएं कि कैसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने व्यक्तियों, वर्गों और जातियों के मध्य विद्यमान मतभेदों के बावजूद ‘वास्तव में एकता कायम करने वाली एक कड़ी’ के रूप में कार्य किया है।

उत्तर

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की वास्तविक शक्ति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी, जिसने तत्कालीन राजनीतिक और सामाजिक संरचना को बदल कर रख दिया। यद्यपि इसका गठन शिक्षित मध्यम वर्ग के बुद्धिजीवियों के एक संगठन के रूप में हुआ, किन्तु इसने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और उसके बाद तक, विविध सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोणों तथा व्यक्तियों, वर्गों और जातियों के मध्य विद्यमान मतभेदों के बावजूद, वास्तव में एकता कायम करने वाली एक कड़ी के रूप में कार्य किया।

इसने सभी व्यक्तियों के लिए स्थान बनाया भले ही उनके विचार, मत या विचारधाराएं अलग-अलग रही हों, जैसे :

  • इसने नरमपंथियों, जो संवैधानिक साधनों में विश्वास करते थे और जिन्होंने कानून के ढांचे के भीतर कार्य किया, के साथ साथ गरमपंथियों, जो उग्र तरीकों में विश्वास करते थे, को भी सम्मिलित किया।
  • इस दोनों के विचारधारात्मक मतभेद इस इस स्तर पर थे कि 1907 में सूरत सत्र के दौरान इनके मध्य विभाजन भी हुआ, किन्तु बाद में 1916 में लखनऊ समझौते के तहत वे पुनः एकजुट हो गए। इसने चुनाव लड़ने का सुझाव देने वाले स्वराजवादियों के साथ-साथ परिवर्तन विरोधियों (नो-जर्स), जो परिषद् में प्रवेश का विरोध करते थे एवं इसके स्थान पर रचनात्मक कार्य का पक्ष लेते थे, को भी स्थान दिया।
  • अधिक दृढ़ता से परिपूर्ण नेहरु और बोस जैसे युवाओं के साथ-साथ अधिक धैर्य तथा अनुभव से युक्त गोपाल कृष्ण गोखले जैसे वयोवृद्ध नेताओं को भी स्थान दिया। युवा और उग्र राष्ट्रवादी डोमिनियन स्टेटस की मांग से असंतुष्ट थे। इसके स्थान पर उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता पर बल दिया।
  • इसके सदस्यों में उदारवादी, रूढ़िवादी, समाजवादी, पूंजीवादी आदि शामिल थे।

इसने अपने मंच पर विभिन्न वर्गों से संबंधित लोगों को एकजुट किया :

  • इसने साझा आर्थिक समस्या के विषय में जागरूकता फैलायी।
  • इसने लोगों को भारतीय और औपनिवेशिक हितों के मध्य विरोधाभास के बारे में जानकारी दी जो उनके आर्थिक पिछड़ेपन का कारण था।
  • इसने सभी वर्गों के लोगों का ध्यान आकर्षित किया, यहां तक कि श्रमिकों और पूंजीपतियों जैसे परस्पर विरोधी हितों वाले लोग भी एक साथ आ गए।
  • स्वदेशी आंदोलन में महिलाओं, छात्रों, ज़मींदारों के साथ-साथ शहरों और कस्बों के निम्न मध्यम वर्ग सहित विभिन्न वर्गों ने भागीदारी की।
  • मोंटफोर्ड सुधारों में सांप्रदायिक और वर्ग आधारित निर्वाचक मंडलों के मजबूत होने के बावजूद असहयोग जैसे परवर्ती आंदोलन में अनेक धर्मों और वर्गों के लोगों ने भागीदारी की।
  • पूंजीवादी वर्ग (जो ज्यादातर सविनय अवज्ञा के बजाय संवैधानिक सुधारों का पक्ष लेता था) के कुछ लोगों ने कांग्रेस का समर्थन किया। वास्तव में, कुछ इसमें शामिल हो गए और राष्ट्रहित के लिए जेल भी गए।

इसमें ऊंची जाति के साथ-साथ पिछड़ी जातियों की भी भागीदारी थी:

  • जाति व्यवस्था के सुधार पर अलग-अलग राय रखने के बावजूद भी अम्बेडकर और गांधीजी ने कांग्रेस में एक साथ काम किया।  गांधी ने वर्ण व्यवस्था का समर्थन किया किन्तु जातीय असमानताओं का विरोध किया परन्तु अम्बेडकर एक ऐसी सामाजिक क्रांति चाहते थे जिससे जाति की संस्था का उन्मूलन कर दिया जाए।
  • 1923 में, कांग्रेस ने अस्पृश्यता के उन्मूलन की दिशा में सक्रिय कदम उठाने का फैसला किया।

इस प्रकार, कांग्रेस ने लोगों को एक साझे आर्थिक और राजनीतिक कार्यक्रम पर एकजुट किया तथा उनमें धर्म, जाति और प्रांत के भेद से परे राष्ट्रीय एकता की भावना का संचार किया। इस प्रकार, उस काल की कांग्रेस को तत्कालीन सभी विरोधी विचारों को समाहित करने वाली एक “व्यवस्था” कहा जा सकता है।

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