मानव-वन्यजीव संघर्ष : दृष्टांतों के पीछे उत्तरदायी कारण
प्रश्न: मानव-वन्यजीव संघर्ष के बढ़ते दृष्टांतों के पीछे उत्तरदायी कारणों पर चर्चा कीजिए और इनसे निपटने के लिए कुछ शमनकारी उपायों का सुझाव दीजिए।
दृष्टिकोण
- मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं का उल्लेख करते हुए संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- इस समस्या के मूल कारकों को रेखांकित कीजिए।
- इन समस्याओं से निपटने हेतु कुछ प्रभावी एवं रचनात्मक शमनकारी उपायों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर
मानव-वन्यजीव संघर्ष अनेक प्रजातियों के अस्तित्त्व के समक्ष व्याप्त प्रमुख खतरों में से एक है तथा यह स्थानीय मानव आबादी हेतु भी एक गंभीर संकट है। हाल के समय में, भारत में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप पशु एवं मानव दोनों के जीवन की क्षति हुई है।
इस समस्या के मूल कारक :
- अनियोजित विकास एवं नगरीकरण
- वन क्षेत्रों में रेखीय अवसंरचनात्मक परियोजनाओं (विद्युत पारेषण लाइन) का विस्तार।
- वनों एवं वन्यजीव रिज़र्व के निकट अनियोजित बस्तियां।
- वन्यजीव क्षेत्रों में सड़क नेटवर्क (राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्ग) के घनत्व में वृद्धि के कारण वन्यजीव गलियारों का विस्थापन अथवा उनका बाधित होना।
- निम्नलिखित के लिए वन भूमि का प्रयोग
- वन भूमि का गैर-वन उद्देश्यों जैसे- खनन, सड़क और विकासात्मक परियोजनाओं आदि के लिए उपयोग करना।
- वन क्षेत्रों की सीमा तक कृषि का विस्तार करना जिसके कारण वन्यजीवों के पर्यावास क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
- वन्यजीव संरक्षण परियोजनाएं
- संरक्षण परियोजनाओं के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन से वन्यजीवों की आबादी में वृद्धि हुई है।
- हालांकि, वन्यजीवों के लिए प्राकृतिक शिकारों का घटता आधार उन्हें वैकल्पिक स्रोतों की खोज हेतु बाध्य करता है।
- जनसंख्या विस्फोट और संकुचित होते वन क्षेत्रों ने सीमित संसाधनों हेतु प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न की है।
प्रभावी एवं रचनात्मक शमनकारी उपाय
- राष्ट्रीय वन्यजीव कार्यवाही योजना (2017-2031) का प्रभावी क्रियान्वयन, जो बढ़ते मानव-पशु संघर्ष की जांच हेतु लोगों को प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण भाग बनाने की मांग करती है।
- सर्वोत्तम पद्धतियों से सीख: छत्तीसगढ़ एवं झारखंड राज्यों द्वारा इस प्रकार का ऐप्लीकेशन विकसित किया गया है, जिसके माध्यम से क्षेत्र में हाथियों की आबादी को ट्रैक किया जा सकता है। इस पद्धति को अन्य राज्यों द्वारा भी अपनाया जाना चाहिए।
- वन सीमांतों (forest fringes) का विकास तथा वन्यजीव क्षेत्रों में अनावश्यक मानवीय हस्तक्षेपों की रोकथाम एवं नियंत्रण करना।
- वन्यजीवों की स्वतंत्र आवागमन को सुगम बनाने हेतु वन्यजीव गलियारों का पुनरुद्धार या पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए।
- वन्यजीव क्षेत्रों के निकट स्थित मानव बस्तियों को अन्यत्र पुनर्स्थापित करना।
- अवैध शिकार की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु निगरानी को सुदृढ़ बनाना, जिससे वन्यजीव क्षेत्र में पर्याप्त शिकार आधार को सुनिश्चित किया जा सके।
- राज्य स्तर पर स्थायी रूप से मानवयुक्त बचाव इकाइयों (rescue units) की स्थापना तथा समस्याग्रस्त पशुओं हेतु बचाव केन्द्रों का निर्माण करना।
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