सामाजिक न्याय की अवधारणा तथा इसके उद्देश्यों की संक्षिप्त व्याख्या : सामाजिक न्याय के साधन के रूप में आरक्षण नीति के पीछे निहित तर्क

प्रश्न: सामाजिक न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने की इसकी क्षमता पर विशेष बल देते हुए भारत में प्रोन्नति में आरक्षण पर विकसित हो रही नीति की समालोचनात्मक चर्चा कीजिए। (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • सामाजिक न्याय की अवधारणा तथा इसके उद्देश्यों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • सामाजिक न्याय के साधन के रूप में आरक्षण नीति के पीछे निहित तर्कों का उल्लेख कीजिए।
  • आरक्षण नीति के विकास का अति संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  • सामाजिक न्याय के उद्देश्यों की प्राप्ति में इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

सामाजिक न्याय सरकार द्वारा सामाजिक असमानताओं को दूर करने के उद्देश्य से की गई सकारात्मक कार्रवाई या कार्यक्रमों के समग्र समुच्चय को संदर्भित करता है। इसके उद्देश्य हैं:

  • विकास के अवसर में व्यवधान उत्पन्न करने वाले सामाजिक अवरोधों को समाप्त करना।
  • संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करना।
  • विधि के शासन की स्थापना करना।

संविधान सरकार को नागरिकों के किसी भी सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने की शक्ति प्रदान करता है। अतः नौकरियों तथा प्रोन्नति में आरक्षण संबंधी प्रावधान को सामाजिक न्याय के उद्देश्यों को बढ़ावा देने वाले प्रावधान के रूप में माना जाता है।

प्रोन्नति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का विकास

  • 1955 से ही अनुसूचित जातियों (SCs) तथा अनुसूचित जनजातियों (STs) को सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया जा रहा है।
  • इंदिरा साहनी वाद (1992) के निर्णय में इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया था।
  • तत्पश्चात् 77वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1995 द्वारा अनुच्छेद 16 (4A) जोड़ा गया जिसने सरकार को प्रोन्नति में आरक्षण प्रदान करने हेतु सक्षम बनाया।
  • आरक्षण के माध्यम से प्रोन्नत होने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को परिणामी वरिष्ठता प्रदान करने हेतु 85वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2001 के माध्यम से खंड 4A को संशोधित किया गया।
  • एम. नागराज बनाम भारतीय संघ वाद (2006) में, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि सरकार प्रोन्नति से संबंधित मामलों में अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करना चाहती है तो उसे SCs/STs के मध्य से “क्रीमी लेयर” से संबंधित लोगों को पृथक करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, अनुच्छेद 335 के अनुपालन के अतिरिक्त (जो इस प्रकार के मामलों में प्रशासन में दक्षता को विचार का एक बिंदु निर्धारित करता है) न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय में प्रोन्नति में आरक्षण के सन्दर्भ में सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व निर्धारित करने का भी निर्देश दिया गया।
  • इसके प्रत्युत्तर में, संसद द्वारा SCs/STs में से क्रीमी लेयर को पृथक करने की शर्त को समाप्त करने हेतु 117वां संविधान संशोधन विधेयक, 2012 को प्रस्तुत किया गया। इसे पुनः चुनौती दी गई और मामला अभी भी विचाराधीन है।

प्रोन्नति में आरक्षण के पक्ष में तर्क

  • यदि पिछड़े समुदायों (SCs/STs) के सरकारी कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण नहीं दिया जाता है, तो सकारात्मक कार्रवाई का कोई औचित्य नहीं रहेगा।
  • इन वर्गों की कई शताब्दियों पुरानी वंचना और हाशिये पर धकेले जाने की समस्या का समाधान कई स्तरों पर करने की आवश्यकता है, जिसमें प्रोन्नति भी शामिल है।
  • SCs/STS के विरुद्ध एक अंतर्निहित पूर्वाग्रह विद्यमान है, भले ही वे प्रशासन के उच्च स्तर पर पदासीन ही क्यों न हों।

विपक्ष में तर्क

  • यदि विशेषीकृत क्षेत्रों के अंतर्गत प्रोन्नति में आरक्षण का त्याग किया जा सकता है, तो इसे अन्य विभागों से भी समाप्त किया जा सकता है।
  • यह प्रशासन की दक्षता को क्षति पहुंचा सकता है।
  • राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए, सकारात्मक कार्रवाई के लाभों को किसी भी समुदाय को दोबारा प्रदान नहीं किया जाना चाहिए।
  • अनुच्छेद 16 (4A) केवल एक सक्षमकारी प्रावधान है।  यह अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को प्रदत्त कोई विशेष मौलिक अधिकार नहीं है।

हालिया सुनवाईयों के दौरान सरकार ने तर्क दिया था कि विगत 70 वर्षों से नौकरियों में प्रदान किए गए कोटा (quota) ने SCs/STS समुदायों की बहुत कम सहायता की है और इसी कारण प्रोन्नति में आरक्षण प्रदान करना अनिवार्य है। इन समुदायों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का निर्धारण करने हेतु न्यायालय द्वारा मात्रात्मक आंकड़ों की आवश्यकता पर बल दिया गया है। इस मामले में और अधिक स्पष्टता केवल उच्चतम न्यायालय के निर्णय द्वारा ही लाई जा सकेगी।

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