गुट-निरपेक्षता के सिद्धांत का संक्षिप्त परिचय
प्रश्न: गुट-निरपेक्षता ने काफी विवादित होने के बावजूद भारत की विदेश नीति संबंधी विषयों में वर्षों से अपना महत्व बनाए रखा है। टिप्पणी कीजिए।
दृष्टिकोण
- गुट-निरपेक्षता के सिद्धांत का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- भारत की विदेश नीति से संबंधित विषयों में गुट-निरपेक्षता की प्रासंगिकता एवं इसके क्रमिक विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर
गुट-निरपेक्षता विश्व में प्रचलित प्रभुत्व की राजनीति के प्रति भारत के दृष्टिकोण का एक विशिष्ट पहलू है। भारत की विदेश नीति में गुट-निरपेक्षता को एक मूल सिद्धांत के रूप में अंतःस्थापित किया गया है, जिसका उद्देश्य है:
- भारत के इतिहास, अवस्थिति और महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए इसके लिए एक विशिष्ट स्थान को बनाए रखना।
- निर्णयन की स्वायत्तता की सुरक्षा करना।
- राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा हेतु बहुपक्षवाद का अनुसरण करना।
गुट-निरपेक्षता का अर्थ अत्यधिक विवाद का विषय रहा है। उदाहरण के लिए:
- यह गुट-निरपेक्ष आन्दोलन से सम्बद्ध है, जिसे भारत के सहयोग से 1961 में प्रारंभ किया गया था
- शीतयुद्धोतर परिदृश्य में यह रणनीतिक स्वायत्तता बनाये रखने के लिए एक साधन बन गया।
- हाल ही में, बहु-गुटीयता (multi-alignment) एक ही समय में कई देशों के साथ सुदृढ़ संबंधों को बढ़ावा देना।
इसके साथ ही गुट-निरपेक्षता की नीतिगत अभिव्यक्तियां एवं साधन वर्षों से विवाद का विषय रहे हैं। उदाहरण के लिए 1971 में सोवियत संघ के साथ संधि को भारत के गुट-निरपेक्षता से भटकाव के रूप में देखा गया। इसी प्रकार शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् भी भारत की सहभागिता एवं गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता पर कई प्रश्न उठाए गए। समकालीन समय में भारत का संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर झुकाव देखा जा रहा है।
इसके बावजूद, भारत की स्थिति को देखते हुए, इसके व्यापक और अत्यंत नम्य रूप में गुट-निरपेक्षता वर्तमान में भी प्रासंगिक है। उदाहरण के लिए किसी एक शक्ति पर निर्भर होने की अपेक्षा भारत ने संयुक्त अरब अमीरात से इज़राइल तथा संयुक्त राज्य अमेरिका से रूस तक के देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी की है।
बहुपक्षवाद द्वारा चिन्हित बहुध्रुवीय व्यवस्था के लिए भारत की खोज कुछ देशों के मध्य प्रभुत्व की राजनीति में उलझे बिना राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के उपायों से भी प्रेरित है। उदाहरण के लिए BRICS, IBSA, BASIC, G-20 तथा राष्ट्रमंडल आदि जैसे संगठनों में भारत की सदस्यता अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की जटिलताओं को मार्गनिर्देशित करते हुए इनमें भारत की स्वतंत्र अभिव्यक्ति को बनाए रखने की इसकी इच्छा को रेखांकित करती है। इसी प्रकार विश्व व्यापार संगठन या जलवायु संबंधी वार्ताओं जैसे मंचों पर भारत ने किसी कठोर फ़ॉर्मूले के तहत स्वयं को इनसे संबद्ध नहीं किया है, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता किए बिना जटिल मुद्दों पर प्रगति हेतु विभिन्न देशों के साथ कार्य करना स्वीकार किया है।
यद्यपि संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के मध्य उभरते संघर्ष के वर्तमान परिदृश्य में गुट-निरपेक्षता भारत के लिए एकमात्र विकल्प है। अतः, निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सकता है कि संरचनात्मक दृष्टि से अस्थिर वर्तमान बहुध्रुवीय वैश्विक परिवेश में गुटनिरपेक्षता जटिल गठबंधनों तथो अवसरों के प्रबंधन हेतु प्रासंगिक है।
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